Wednesday, July 31, 2013


श्री  हर  -  गौरी  साधना 
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 भगवान शिव जी तो औघड़ दानी है फिर माँ शक्ति का वरदान भी साथ हो तो सोने पे सुहागा माना जाता है | हर गौरी साधना भी इन्हीं साधनाओ में एक है जो साधको को सम्पूर्ण सुख सौभाग्य की प्राप्ति सहज ही करा देती फिर चाहे किसी मंगल कार्य में वाधा हो या शादी न हो रही हो और बेरोजगार हो जा कोई विशेष कार्य ना बन रहा हो, कार्य में बार-बार बाधा आ रही हो माँ गौरी के आशीर्वाद से समस्त बाधाएं हट जाती ................................



विधि –

  • यह साधना धैर्य के साथ करे | इस के लिए वस्त्र पीले अथवा सफ़ेद ज्यादा उचित रहते है | आप लाल रंग के वस्त्र भी धारण कर सकते हैं |
  • आसन लाल या पीला ले |
  • दिशा – उतर दिशा सब से उचित है | साधक पूर्व दिशा में मुख भी कर सकते है |
  •  साधना काल में अखंड घी की ज्योत लगा सकते है |
  • भोग खीर और मेवो का लगाये | फल और पुष्प धूप दीप से पूजन करे माँ गौरी को सिंगार और चुनरी भेंट करे भगवान शंकर जी को सफ़ेद वस्त्र और गणेश जी को पीला वस्त्र सवा दो-दो  मीटर का भेंट करे | एक लकड़ी के बेजोट पर पीला वस्त्र विछाकर  भगवान शिव और माँ पार्वती का सुंदर चित्र स्थापित करे साथ में गणेश जी अथवा सद्गुरुदेव जी का चित्र स्थापित करे उसका पूजन एवं गणेश जी का पूजन पंचौपचार विधि से करे।
  • साधना काल में अखंड घी की ज्योत लगाये जो पूरी रात्री जलती रहे | सद्गुरुदेव जी का पूजन कर साधना हेतु मानसिक आज्ञा ले फिर गणेश पूजन कर भगवान शंकर और माँ गौरी का पूजन कर अपनी मनोकामना 5 वार बोले फिर निम्न मंत्र की 51 माला जप करे | साधना के दोरान बहुत  दिव्य अनुभव होते है इस लिए अपने गुरु जी के सिवा किसी से इन की चर्चा ना करे | यह मंत्र मुझे अपने एक बरिष्ट गुरु भाई से प्राप्त हुया था | इस के और भी बहुत से लाभ हैं |

    करन्यास

     ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः

     ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः

     ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः

     ह्रैं  अनामिकाभ्यां नमः

     ह्रौं  कनिष्टकाभ्यां नमः

     ह्रः करतल करपृष्ठाभ्यां नमः

 

       अङ्गन्यास

       ह्रां हृदयाय नमः

       ह्रीं शिरसे स्वाहा

       ह्रूं शिखायै वषट्

       ह्रैं कवचाय हूम

       ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्

       ह्रः अस्त्राय फट्

      

      मंत्र – || ह्रीं ॐ हर गौरी ह्रीं ॐ फट ||

Friday, July 19, 2013

माँ  बगलामुखी  खड्ग - माला  मंत्र 
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यह स्तोत्र शत्रुनाश एव परविद्या छेदन करने वाला एवं रक्षा कार्य हेतु प्रभावी है ।
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साधारण साधकों को कुछ समय आवेश व आर्थिक दबाव रहता है, अतः पूजा उपरान्त नमस्तस्यादि शांति स्तोत्र पढ़ने चाहिये ।
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विनियोगः- ॐ अस्य श्रीपीताम्बरा बगलामुखी खड्गमाला मन्त्रस्य नारायण ऋषिः, त्रिष्टुप् छन्दः, बगलामुखी देवता, ह्लीं बीजं, स्वाहा शक्तिः, ॐ कीलकं, ममाभीष्टसिद्धयर्थे सर्वशत्रु-क्षयार्थे जपे विनियोगः ।
हृदयादि-न्यासः-नारायण ऋषये नमः शिरसि, त्रिष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, बगलामुखी देवतायै नमः हृदि, ह्लीं बीजाय नमः गुह्ये, स्वाहा शक्तये नमः पादयो, ॐ कीलकाय नमः नाभौ, ममाभीष्टसिद्धयर्थे सर्वशत्रु-क्षयार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
षडङ्ग-न्यास - कर-न्यास – अंग-न्यास -
ॐ ह्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः
बगलामुखी तर्जनीभ्यां नमः शिरसे स्वाहा
सर्वदुष्टानां मध्यमाभ्यां नमः शिखायै वषट्
वाचं मुखं पद स्तम्भय अनामिकाभ्यां नमः कवचाय हुम्
जिह्वां कीलय कनिष्ठिकाभ्यां नमः नेत्र-त्रयाय वौषट्
बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः अस्त्राय फट्

ध्यानः-
हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे -


मध्ये सुधाब्धि-मणि-मण्डप-रत्न-वेद्यां, सिंहासनोपरि-गतां परि-पीत-वर्णाम् ।
पीताम्बराभरण-माल्य-विभूषितांगीं, देवीं स्मरामि धृत-मुद्-गर-वैरि-जिह्वाम् ।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं, वामेन शत्रून् परि-पीडयन्तीम् ।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन, पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि ।।

मानस-पूजनः- इस प्रकार ध्यान करके भगवती पीताम्बरा बगलामुखी का मानस पूजन करें -
ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (अधोमुख-कनिष्ठांगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (अधोमुख-तर्जनी-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-तर्जनी-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ रं वह्नयात्मकं दीपं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि । (ऊर्ध्व-मुख-मध्यमा-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ वं जल-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-अनामिका-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ शं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-सर्वांगुलि-मुद्रा) ।


खड्ग-माला-मन्त्रः-
ॐ ह्लीं सर्वनिन्दकानां सर्वदुष्टानां वाचं मुखं स्तम्भय-स्तम्भय बुद्धिं विनाशय-विनाशय अपरबुद्धिं कुरु-कुरु अपस्मारं कुरु-कुरु आत्मविरोधिनां शिरो ललाट मुख नेत्र कर्ण नासिका दन्तोष्ठ जिह्वा तालु-कण्ठ बाहूदर कुक्षि नाभि पार्श्वद्वय गुह्य गुदाण्ड त्रिक जानुपाद सर्वांगेषु पादादिकेश-पर्यन्तं केशादिपाद-पर्यन्तं स्तम्भय-स्तम्भय मारय-मारय परमन्त्र-परयन्त्र-परतन्त्राणि छेदय-छेदय आत्म-मन्त्र-यन्त्र-तन्त्राणि रक्ष-रक्ष, सर्व-ग्रहान् निवारय-निवारय सर्वम् अविधिं विनाशय-विनाशय दुःखं हन-हन दारिद्रयं निवारय निवारय, सर्व-मन्त्र-स्वरुपिणि सर्व-शल्य-योग-स्वरुपिणि दुष्ट-ग्रह-चण्ड-ग्रह भूतग्रहाऽऽकाशग्रह चौर-ग्रह पाषाण-ग्रह चाण्डाल-ग्रह यक्ष-गन्धर्व-किंनर-ग्रह ब्रह्म-राक्षस-ग्रह भूत-प्रेतपिशाचादीनां शाकिनी डाकिनी ग्रहाणां पूर्वदिशं बन्धय-बन्धय, वाराहि बगलामुखी मां रक्ष-रक्ष दक्षिणदिशं बन्धय-बन्धय, किरातवाराहि मां रक्ष-रक्ष पश्चिमदिशं बन्धय-बन्धय, स्वप्नवाराहि मां रक्ष-रक्ष उत्तरदिशं बन्धय-बन्धय, धूम्रवाराहि मां रक्ष-रक्ष सर्वदिशो बन्धय-बन्धय, कुक्कुटवाराहि मां रक्ष-रक्ष अधरदिशं बन्धय-बन्धय, परमेश्वरि मां रक्ष-रक्ष सर्वरोगान् विनाशय-विनाशय, सर्व-शत्रु-पलायनाय सर्व-शत्रु-कुलं मूलतो नाशय-नाशय, शत्रूणां राज्यवश्यं स्त्रीवश्यं जनवश्यं दह-दह पच-पच सकल-लोक-स्तम्भिनि शत्रून् स्तम्भय-स्तम्भय स्तम्भनमोहनाऽऽकर्षणाय सर्व-रिपूणाम् उच्चाटनं कुरु-कुरु ॐ ह्लीं क्लीं ऐं वाक्-प्रदानाय क्लीं जगत्त्रयवशीकरणाय सौः सर्वमनः क्षोभणाय श्रीं महा-सम्पत्-प्रदानाय ग्लौं सकल-भूमण्डलाधिपत्य-प्रदानाय दां चिरंजीवने । ह्रां ह्रीं ह्रूं क्लां क्लीं क्लूं सौः ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय राजस्तम्भिनि क्रों क्रों छ्रीं छ्रीं सर्वजन संमोहिनि सभास्तंभिनि स्त्रां स्त्रीं सर्व-मुख-रञ्जिनि मुखं बन्धय-बन्धय ज्वल-ज्वल हंस-हंस राजहंस प्रतिलोम इहलोक परलोक परद्वार राजद्वार क्लीं क्लूं घ्रीं रुं क्रों क्लीं खाणि खाणि , जिह्वां बन्धयामि सकलजन सर्वेन्द्रियाणि बन्धयामि नागाश्व मृग सर्प विहंगम वृश्चिकादि विषं निर्विषं कुरु-कुरु शैलकानन महीं मर्दय मर्दय शत्रूनोत्पाटयोत्पाटय पात्रं पूरय-पूरय महोग्रभूतजातं बन्धयामि बन्धयामि अतीतानागतं सत्यं कथय-कथय लक्ष्मीं प्रददामि-प्रददामि त्वम् इह आगच्छ आगच्छ अत्रैव निवासं कुरु-कुरु ॐ ह्लीं बगले परमेश्वरि हुं फट् स्वाहा ।

विशेषः- मूलमन्त्रवता कुर्याद् विद्यां न दर्शयेत् क्वचित् ।
विपत्तौ स्वप्नकाले च विद्यां स्तम्भिनीं दर्शयेत् ।
गोपनीयं गोपनीयं गोपनीयं प्रयत्नतः ।
प्रकाशनात् सिद्धहानिः स्याद् वश्यं मरणं भवेत् ।
दद्यात् शानताय सत्याय कौलाचारपरायणः ।
दुर्गाभक्ताय शैवाय मृत्युञ्जयरताय च ।
तस्मै दद्याद् इमं खड्गं स शिवो नात्र संशयः ।
अशाक्ताय च नो दद्याद् दीक्षाहीनाय वै तथा ।
न दर्शयेद् इमं खड्गम् इत्याज्ञा शंकरस्य च ।।
।। श्रीविष्णुयामले बगलाखड्गमालामन्त्रः ।।

Thursday, July 18, 2013

कुछ  सामान्य  उपाय :-
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१. धन  प्राप्ति के लिए  ----एक  पान के पत्ते पर कुमकुम से "   श्रीं  "  लिख कर  शुक्रवार  को रखें !!
 प्रत्येक  शुक्रवार   पण का पत्ता बदलते  रहें .........

२. मंगल  वार  को या शनिवार  को  बना हुआ  पान सपर्पित करने से  मनोकामना  की  प  र्ति  होती है !!

३.  यदि  रोगी  को मंगलवार  को पान के पत्ते पर  गुलाब की  पखु री  रख कर  २१ बार  वार कर  मंदिर में 
रखने से ..... रोग  में अवश्य ही आराम मिलता है .......

४. गणपति  की लौंग   और सुपारी  पूजा करें --- गणेश चतुर्थी के दिन --- किसी आवश्यक कार्य पर जाने से पहले  लौंग  व्  सुपारी अपने साथ  ले जाएँ ......कार्य -स्थल पर  पंहुच  कर लौंग  मुह  में रख लें 
और  सुपारी वापस  आ कर  पूजा स्थल  पर रख ले  ..........

रमेश   दुबे 
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Monday, July 15, 2013



स्वर्णा - आकर्षण  भैरव - स्त्रोत
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।। श्री मार्कण्डेय उवाच ।।

भगवन् ! प्रमथाधीश ! शिव-तुल्य-पराक्रम !
पूर्वमुक्तस्त्वया मन्त्रं, भैरवस्य महात्मनः ।।
इदानीं श्रोतुमिच्छामि, तस्य स्तोत्रमनुत्तमं ।
तत् केनोक्तं पुरा स्तोत्रं, पठनात्तस्य किं फलम् ।।
तत् सर्वं श्रोतुमिच्छामि, ब्रूहि मे नन्दिकेश्वर !।।

।। श्री नन्दिकेश्वर उवाच ।।
इदं ब्रह्मन् ! महा-भाग, लोकानामुपकारक !
स्तोत्रं वटुक-नाथस्य, दुर्लभं भुवन-त्रये ।।
सर्व-पाप-प्रशमनं, सर्व-सम्पत्ति-दायकम् ।
दारिद्र्य-शमनं पुंसामापदा-भय-हारकम् ।।
अष्टैश्वर्य-प्रदं नृणां, पराजय-विनाशनम् ।
महा-कान्ति-प्रदं चैव, सोम-सौन्दर्य-दायकम् ।।
महा-कीर्ति-प्रदं स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः ।
न वक्तव्यं निराचारे, हि पुत्राय च सर्वथा ।।
शुचये गुरु-भक्ताय, शुचयेऽपि तपस्विने ।
महा-भैरव-भक्ताय, सेविते निर्धनाय च ।।
निज-भक्ताय वक्तव्यमन्यथा शापमाप्नुयात् ।
स्तोत्रमेतत् भैरवस्य, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मनः ।।
श्रृणुष्व ब्रूहितो ब्रह्मन् ! सर्व-काम-प्रदायकम् ।।

विनियोगः- ॐ अस्य श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-स्तोत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-देवता, ह्रीं बीजं, क्लीं शक्ति, सः कीलकम्, मम-सर्व-काम-सिद्धयर्थे पाठे विनियोगः ।

ध्यानः-
मन्दार-द्रुम-मूल-भाजि विजिते रत्नासने संस्थिते ।
दिव्यं चारुण-चञ्चुकाधर-रुचा देव्या कृतालिंगनः ।।
भक्तेभ्यः कर-रत्न-पात्र-भरितं स्वर्ण दधानो भृशम् ।
स्वर्णाकर्षण-भैरवो भवतु मे स्वर्गापवर्ग-प्रदः ।।

।। स्तोत्र-पाठ ।।

ॐ नमस्तेऽस्तु भैरवाय, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मने,
नमः त्रैलोक्य-वन्द्याय, वरदाय परात्मने ।।
रत्न-सिंहासनस्थाय, दिव्याभरण-शोभिने ।
नमस्तेऽनेक-हस्ताय, ह्यनेक-शिरसे नमः ।
नमस्तेऽनेक-नेत्राय, ह्यनेक-विभवे नमः ।।
नमस्तेऽनेक-कण्ठाय, ह्यनेकान्ताय ते नमः ।
नमोस्त्वनेकैश्वर्याय, ह्यनेक-दिव्य-तेजसे ।।
अनेकायुध-युक्ताय, ह्यनेक-सुर-सेविने ।
अनेक-गुण-युक्ताय, महा-देवाय ते नमः ।।
नमो दारिद्रय-कालाय, महा-सम्पत्-प्रदायिने ।
श्रीभैरवी-प्रयुक्ताय, त्रिलोकेशाय ते नमः ।।
दिगम्बर ! नमस्तुभ्यं, दिगीशाय नमो नमः ।
नमोऽस्तु दैत्य-कालाय, पाप-कालाय ते नमः ।।
सर्वज्ञाय नमस्तुभ्यं, नमस्ते दिव्य-चक्षुषे ।
अजिताय नमस्तुभ्यं, जितामित्राय ते नमः ।।
नमस्ते रुद्र-पुत्राय, गण-नाथाय ते नमः ।
नमस्ते वीर-वीराय, महा-वीराय ते नमः ।।
नमोऽस्त्वनन्त-वीर्याय, महा-घोराय ते नमः ।
नमस्ते घोर-घोराय, विश्व-घोराय ते नमः ।।
नमः उग्राय शान्ताय, भक्तेभ्यः शान्ति-दायिने ।
गुरवे सर्व-लोकानां, नमः प्रणव-रुपिणे ।।
नमस्ते वाग्-भवाख्याय, दीर्घ-कामाय ते नमः ।
नमस्ते काम-राजाय, योषित्कामाय ते नमः ।।
दीर्घ-माया-स्वरुपाय, महा-माया-पते नमः ।
सृष्टि-माया-स्वरुपाय, विसर्गाय सम्यायिने ।।
रुद्र-लोकेश-पूज्याय, ह्यापदुद्धारणाय च ।
नमोऽजामल-बद्धाय, सुवर्णाकर्षणाय ते ।।
नमो नमो भैरवाय, महा-दारिद्रय-नाशिने ।
उन्मूलन-कर्मठाय, ह्यलक्ष्म्या सर्वदा नमः ।।
नमो लोक-त्रेशाय, स्वानन्द-निहिताय ते ।
नमः श्रीबीज-रुपाय, सर्व-काम-प्रदायिने ।।
नमो महा-भैरवाय, श्रीरुपाय नमो नमः ।
धनाध्यक्ष ! नमस्तुभ्यं, शरण्याय नमो नमः ।।
नमः प्रसन्न-रुपाय, ह्यादि-देवाय ते नमः ।
नमस्ते मन्त्र-रुपाय, नमस्ते रत्न-रुपिणे ।।
नमस्ते स्वर्ण-रुपाय, सुवर्णाय नमो नमः ।
नमः सुवर्ण-वर्णाय, महा-पुण्याय ते नमः ।।
नमः शुद्धाय बुद्धाय, नमः संसार-तारिणे ।
नमो देवाय गुह्याय, प्रबलाय नमो नमः ।।
नमस्ते बल-रुपाय, परेषां बल-नाशिने ।
नमस्ते स्वर्ग-संस्थाय, नमो भूर्लोक-वासिने ।।
नमः पाताल-वासाय, निराधाराय ते नमः ।
नमो नमः स्वतन्त्राय, ह्यनन्ताय नमो नमः ।।
द्वि-भुजाय नमस्तुभ्यं, भुज-त्रय-सुशोभिने ।
नमोऽणिमादि-सिद्धाय, स्वर्ण-हस्ताय ते नमः ।।
पूर्ण-चन्द्र-प्रतीकाश-वदनाम्भोज-शोभिने ।
नमस्ते स्वर्ण-रुपाय, स्वर्णालंकार-शोभिने ।।
नमः स्वर्णाकर्षणाय, स्वर्णाभाय च ते नमः ।
नमस्ते स्वर्ण-कण्ठाय, स्वर्णालंकार-धारिणे ।।
स्वर्ण-सिंहासनस्थाय, स्वर्ण-पादाय ते नमः ।
नमः स्वर्णाभ-पाराय, स्वर्ण-काञ्ची-सुशोभिने ।।
नमस्ते स्वर्ण-जंघाय, भक्त-काम-दुघात्मने ।
नमस्ते स्वर्ण-भक्तानां, कल्प-वृक्ष-स्वरुपिणे ।।
चिन्तामणि-स्वरुपाय, नमो ब्रह्मादि-सेविने ।
कल्पद्रुमाधः-संस्थाय, बहु-स्वर्ण-प्रदायिने ।।
भय-कालाय भक्तेभ्यः, सर्वाभीष्ट-प्रदायिने ।
नमो हेमादि-कर्षाय, भैरवाय नमो नमः ।।
स्तवेनानेन सन्तुष्टो, भव लोकेश-भैरव !
पश्य मां करुणाविष्ट, शरणागत-वत्सल !
श्रीभैरव धनाध्यक्ष, शरणं त्वां भजाम्यहम् ।
प्रसीद सकलान् कामान्, प्रयच्छ मम सर्वदा ।।

।। फल-श्रुति ।

श्रीमहा-भैरवस्येदं, स्तोत्र सूक्तं सु-दुर्लभम् ।
मन्त्रात्मकं महा-पुण्यं, सर्वैश्वर्य-प्रदायकम् ।।
यः पठेन्नित्यमेकाग्रं, पातकैः स विमुच्यते ।
लभते चामला-लक्ष्मीमष्टैश्वर्यमवाप्नुयात् ।।
चिन्तामणिमवाप्नोति, धेनुं कल्पतरुं ध्रुवम् ।
स्वर्ण-राशिमवाप्नोति, सिद्धिमेव स मानवः ।।
संध्याय यः पठेत्स्तोत्र, दशावृत्त्या नरोत्तमैः ।
स्वप्ने श्रीभैरवस्तस्य, साक्षाद् भूतो जगद्-गुरुः ।
स्वर्ण-राशि ददात्येव, तत्क्षणान्नास्ति संशयः ।
सर्वदा यः पठेत् स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः ।।
लोक-त्रयं वशी कुर्यात्, अचलां श्रियं चाप्नुयात् ।
न भयं लभते क्वापि, विघ्न-भूतादि-सम्भव ।।
म्रियन्ते शत्रवोऽवश्यम लक्ष्मी-नाशमाप्नुयात् ।
अक्षयं लभते सौख्यं, सर्वदा मानवोत्तमः ।।
अष्ट-पञ्चाशताणढ्यो, मन्त्र-राजः प्रकीर्तितः ।
दारिद्र्य-दुःख-शमनं, स्वर्णाकर्षण-कारकः ।।
य येन संजपेत् धीमान्, स्तोत्र वा प्रपठेत् सदा ।
महा-भैरव-सायुज्यं, स्वान्त-काले भवेद् ध्रुवं ।।
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मूल-मन्त्रः- “ॐ ऐं क्लां क्लीं क्लूं ह्रां ह्रीं ह्रूं सः वं आपदुद्धारणाय अजामल-बद्धाय लोकेश्वराय स्वर्णाकर्षण-भैरवाय मम दारिद्र्य-विद्वेषणाय श्रीं महा-भैरवाय नमः ।”

Friday, July 5, 2013

कुछ सामान्य उपाय

कुछ  सामान्य  उपाय 
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१. यदि  आप  व्यापार  करते हैं  लाभ  बढ़ाना चाहते हैं  तो  मंगलवार 
को शिव  जी को  तीन  पानी वाले  नारियल  और  ३   अनार  का रस 
हाथ  से निकल कर चढ़ाएं  -- और थोडा  सा प्रसाद  स्वयं  लें ---ऐसा  
पांच  मंगलवार करें ....

२. क़र्ज़  दूर करने के लिए  ---- पत्नी  त्रयोदशी  का व्रत  करे   और 
पति  तीन कटोरी  खीर  शिव  जी पर चढ़ाएं ..............

३. धंधा  ना  चलने पर ---- ५ जायफल  ,  ५ सुपारी  , ५ इलायची  काले  
कपडे  में  बांध  कर  -- पेड़  से  बांध दें ........

४.  यदि  मन में  नौकरी  छूटने  का डर  हो तो --- लाजवर्त  मध्यमा  
ऊँगली में पहने ....

५.  अचानक  नुकसान होने पर  केसर  और  दही  का टीका  लगायें 
और  मंगलवार को  जरूरतमंद  को  शहद   दान करें .......