Saturday, August 24, 2013

यदि  शनि   अशुभ  हो तो करें  ये उपाय 
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१.  साबुत  उड़द  के ५ दाने  सरसों  के दीपक  में दाल कर  रोज़  मुख्य  द्वार   पर  रखें  |

२.  रोज़  एक काली  मिर्च  गुड़  के  साथ  प्रातः  खाली  मुह  सेवन करें |

३.  भोजन  के बाद एक लौंग  खाएं |

४.  काज़ल  की ८  डिब्बी  ८  बादाम के साथ  के साथ 
काले कपडे में  बांन्ध  कर  किसी  बक्से  में रखें  |

५ . यदि  शनि  कन्या के विवाह  में बाधक हो तो  २५० 
ग्राम  राइ  काले कपडे में बांध कर  शनिवार  को  पीपल 
की जड़ में रखें  |

६.  किसी  मिटटी  के बर्तन  में  शहद  भर कर ...या  
बांसुरी  में  शक्कर  भर कर  वीराने  में दबाएँ |

७. बीमारी में अनंतमूल  की जड़  लाल कपडे में  बांध कर  अपनी  बाँह  में बांधें |

रमेश दुबे .............

Friday, August 23, 2013

:: Klim ::

Klim (pronounced “kleem”) is the softer, watery or more feminine aspect of Krim. As Krim is electrical or projective, Klim has a magnetic quality that draws things to us. It can also be used to hold or fix things in place.

Klim carries the Akarshana Shakti or the “power of attraction.” It relates to Krishna, who grants bliss (Ananda) as a deity, and to Sundari, the Goddess of love and beauty. Klim is the seed mantra of desire (Kama Bija) and helps us to achieve our true wishes in life. Klim can be used relative to any deity we would like to access to fulfill our wishes. Klim is the mantra of love and devotion, increasing the love energy within our hearts. For this reason, it is one of the most benefic mantras, and one of the safest and most widely used.

Relative to Ayurveda, Klim is mainly a Kapha (water)-promoting mantra and is particularly good for the reproductive system and for the plasma and skin. It promotes Kledaka Kapha (the digestive fluids of the stomach), increasing our capacity for nourishment. Most importantly, it is specific for Tarpaka Kapha, the Soma of the brain that promotes well-being, soothing the nerves and calming the heart. It strengthens the immune system and brings contentment to the entire being. Klim is not specifically an astrological mantra, but is sometimes used for Venus or the Moon. For Vaastu, it can bring the energy of Divine love and beauty into the dwelling.

Klim can have a harsh side as well. It can be used to fix, to stop or to nail down, or to hold things under the power of wishes, though such usage is not as common as its benefic application.

Klim is not specifically an astrological mantra, but is sometimes used for Venus or the Moon.
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Saturday, August 17, 2013

कनक -  धारा  स्त्रोतम 
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॥कनकधारा स्तोत्रम्॥
अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताऽखिल-विभूतिरपाङ्गलीला माङ्गल्यदाऽस्तु मम मङ्गळदेवतायाः ॥1॥

मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः प्रेमत्रपा-प्रणहितानि गताऽऽगतानि ।
मालादृशोर्मधुकरीव महोत्पले या सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥2॥

विश्वामरेन्द्रपद-वीभ्रमदानदक्ष आनन्द-हेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणर्द्ध मिन्दीवरोदर-सहोदरमिन्दिरायाः ॥3॥

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्द आनन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थित-कनीनिकपक्ष्मनेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥4॥

बाह्वन्तरे मधुजितः श्रित कौस्तुभे या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला, कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥5॥

कालाम्बुदाळि-ललितोरसि कैटभारे-धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्ति-भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥6॥

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत् प्रभावान् माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।
मय्यापतेत्तदिह मन्थर-मीक्षणार्धं मन्दाऽलसञ्च मकरालय-कन्यकायाः ॥7॥

दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा मस्मिन्नकिञ्चन विहङ्गशिशौ विषण्णे ।
दुष्कर्म-घर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण-प्रणयिनी नयनाम्बुवाहः ॥8॥

इष्टाविशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते ।
दृष्टिः प्रहृष्ट-कमलोदर-दीप्तिरिष्टां पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥9॥

गीर्देवतेति गरुडध्वजभामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर-वल्लभेति ।
सृष्टि-स्थिति-प्रलय-केलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥10॥

श्रुत्यै नमोऽस्तु नमस्त्रिभुवनैक-फलप्रसूत्यै रत्यै नमोऽस्तु रमणीय गुणाश्र​यायै ।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्र निकेतनायै पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तम-वल्लभायै ॥11॥

नमोऽस्तु नालीक-निभाननायै नमोऽस्तु दुग्धोदधि-जन्मभूत्यै ।
नमोऽस्तु सोमामृत-सोदरायै नमोऽस्तु नारायण-वल्लभायै ॥12॥

नमोऽस्तु हेमाम्बुजपीठिकायै नमोऽस्तु भूमण्डलनायिकायै ।
नमोऽस्तु देवादिदयापरायै नमोऽस्तु शार्ङ्गायुधवल्लभायै ॥13॥

नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायै नमोऽस्तु विष्णोरुरसि स्थितायै ।
नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायै नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै ॥14॥

नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायै नमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै ।
नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायै नमोऽस्तु नन्दात्मजवल्लभायै ॥15॥

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रिय-नन्दनानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरुहाक्षि ।
त्वद्-वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि मामेव मातरनिशं कलयन्तु नान्यत् ॥16॥

यत्कटाक्ष-समुपासनाविधिः सेवकस्य सकलार्थसम्पदः ।
सन्तनोति वचनाऽङ्गमानसैः स्त्वां मुरारि-हृदयेश्वरीं भजे ॥17॥

सरसिज-निलये सरोजहस्ते धवळतरांशुक-गन्ध-माल्यशोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवन-भूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥18॥

दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट स्वर्वाहिनीविमलचारु-जलप्लुताङ्गीम् ।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिराजगृहिणीम मृताब्धिपुत्रीम् ॥19॥

कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूर-तरङ्गितैरपाङ्गैः ।
अवलोकय मामकिञ्चनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥20॥

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमीभिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम् ।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते भुविबुधभाविताशयाः ॥21॥

॥ श्रीमदाध्यशङ्कराचार्यविरचितं श्री कनकधारा स्तोत्रम् समाप्तम् ॥

Friday, August 16, 2013

विवाह  बाधा  निवारक   प्रयोग 
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मंगल चंडिका प्रयोग
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प्रथम :- मंत्र और स्त्रोत्र प्रयोग
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यह प्रयोग मंगली लोगो को मंगल की वजह से उनके विवाह, काम-धंधे में आ रही रूकावटो को दूर कर देता है
मंत्र:- ॐ ह्रीं श्रीं कलीम सर्व पुज्ये देवी मंगल चण्डिके ऐं क्रू फट् स्वाहा ||

देवी भगवत के अनुसार अन्य मंत्र :- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्व पुज्ये देवी मंगल चण्डिके हूँ हूँ फट् स्वाहा )

दोनों में से कोई भी मन्त्र जप सकते है 

ध्यान :-

देवी षोडश वर्षीया शास्वत्सुस्थिर योवनाम| सर्वरूप गुणाढ्यं च कोमलांगी मनोहराम|
स्वेत चम्पक वऱॅणाभाम चन्द्र कोटि सम्प्रभाम| वन्हिशुद्धाशुका धानां रत्न भूषण भूषिताम|
बिभ्रतीं कवरीभारं मल्लिका माल्य भूषितं| बिम्बोष्ठिं सुदतीं शुद्धां शरत पद्म निभाननाम|
ईशदहास्य प्रसन्नास्यां सुनिलोत्पल लोचनाम| जगद धात्रीं च दात्रीं च सर्वेभ्य सम्पत्प्रदाम|
संसार सागरेघोरे पोत रूपां वरां भजे|

स्त्रोत्र:-

||शंकर उवाच||
रक्ष रक्ष जगन मातर देवी मंगल चण्डिके | हारिके विपदां राशे: हर्ष मंगल कारिके ||
हर्ष मंगल दक्षे च हर्ष मंगल चण्डिके | शुभ मंगल दक्षे च शुभ मंगल चण्डिके ||
मंगले मंगलार्हे च सर्व मंगल मंगले | सतां मंगलदे देवी सर्वेषां मंग्लालये ||
पूज्या मंगलवारे च मंगलाभीष्ट दैवते | पूज्य मंगल भूपस्य मनुवंशस्य संततम ||
मंगलाधिष्ठात्रिदेवी मंगलानां च मंगले | संसार मंगलाधारे मोक्ष मंगलदायिनी ||
सारे च मंगलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम | प्रति मंगलवारे च पूज्य च मंगलप्रदे ||
स्त्रोत्रेणानेन शम्भुश्च स्तुत्वा मंगल चंडीकाम | प्रति मंगलवारे च पूजां कृत्वा गत: शिव: ||
देव्याश्च मंगल स्त्रोत्रम यं श्रुणोति समाहित: | तन्मंगलं भवेत्श्चान्न भवेत् तद मंगलं || 

विधि विधान :-

मंगलवार को संध्या समय पर स्नान करके पवित्र होकर एक पंचमुखी दीपक जलाकर माँ मंगल चंडिका की पूजा श्रधा भक्ति पूर्वक करे/ माँ को एक नारियल और खीर का भोग लगाये | उपरोक्त दोनों में से किसी एक मंत्र का मन ही मन १०८ बार जप करे तथा स्त्रोत्र का ११ बार उच्च स्वर से श्रद्धा पूर्वक प्रेम सहित पाठ करे | ऐसा आठ मंगलवार को करे | आठवे मंगलवार को किसी भी सुहागिन स्त्री को लाल ब्लाउज, लाल रिब्बन, लाल चूड़ी, कुमकुम, लाल सिंदूर, पान-सुपारी, हल्दी, स्वादिष्ट फल, फूल आदि देकर संतुष्ट करे | अगर कुंवारी कन्या या पुरुष इस प्रयोग को कर रहे है तो वो अंजुली भर कर चने भी सुहागिन स्त्री को दे , ऐसा करने से उनका मंगल दोष शांत हो जायेगा | इस प्रयोग में व्रत रहने की आवश्यकता नहीं है अगर आप शाम को न कर सके तो सुबह कर सकते है | 
यह अनुभूत प्रयोग है और आठ सप्ताह में ही चमत्कारिक रूप से शादी-विवाह की समस्या, धन की समस्या, व्यापार की समस्या, गृह-कलेश, विद्या प्राप्ति आदि में चमत्कारिक रूप से लाभ होता है |

2. जिस कन्या का विवाह न हो पा रहा हों, वह भगवती पार्वती के चित्र या मूर्ति के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाकर प्रतिदिन निम्न मंत्र का 11 माला जाप 10 दिनों तक करें- हे गौरि शंकरार्द्धागि यथा शंकरप्रिया। तथा मां कुरू कल्याणि कान्तकान्तां सुदुर्लभाम्।।

3. जिन लडकों का विवाह नहीं होता है, उन्हें निम्नलिखित मंत्र का नित्य 11 माला जप करना चाहिए- ओम् क्लीं पत्नी मनोरम देहि मनोवृत्तानुसारिणीम। तारणी दुर्ग संसार सागरस्य कुलोद्भावाम ||

4. विवाह योग्य लडके और लडकियां प्रत्येक गुरूवार को स्नान के जल में एक चुटकी पिसी हल्दी डालकर स्नान करें। गुरूवार के दिन आटे के दो पेडों पर थोडी-सी हल्दी लगाकर, थोडी गुड और चने की दाल गाय को खिलाएं। इससे विवाह का योग शीघ्र बनता है।

6. बृहस्पतिवार को केले के वृक्ष के समक्ष गुरूदेव बृहस्पति के 108 नामों के उच्चारण के साथ शुद्ध घी का दीपक जलाकर, जल अर्पित करें।

7. यदि किसी कन्या की कुंडली में मंगली योग होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा है तो वह मंगलवार को "मंगल चंडिका स्तोत्र" का तथा शनिवार को "सुंदरकांड" का पाठ करें। 

8. किसी भी शुक्लपक्ष की प्रथमा तिथि को प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर राम-सीता के संयुक्त चित्र का षोडशोपचार पूजन कर अग्रलिखित चौपाई का 108 जाप करे। यह उपाय 40 दिन किया जाता है। कन्या को उसके अस्वस्थ दिनों की छूट है। जब तक वह पुन: शुद्ध न हो जाए, तब तक यह प्रयोग न करें। अशुद्ध तथा शुद्ध होने के बाद के दिनों को मिलाकर ही दिनों की गिनती करनी चाहिए। कुल 40 दिनों में कहीं न कहीं रिश्ता अवश्य हो जाएगा। चौपाई इस प्रकार है- सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पुरहि मनकामना तुम्हारी।|

9. जो कन्या पार्वती देवी की पूजा करके उनके सामने प्रतिदिन निम्नलिखित मंत्र का एक माला जप करती है, उसका विवाह शीघ्र हो जाता है- कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि। नन्दगोपसुतं देवं पतिं मे कुरू ते नम:।।

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Thursday, August 15, 2013

तांत्रिक  अभिकर्म  से  सुरक्षा  :-
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१. पीली सरसों, गुग्गल, लोबान व गौघृत इन सबको मिलाकर इनकी धूप बना लें व सूर्यास्त के 1 घंटे भीतर उपले जलाकर उसमें डाल दें। ऐसा २१ दिन तक करें व इसका धुआं पूरे घर में करें। इससे नकारात्मक शक्तियां दूर भागती हैं।

२. जावित्री, गायत्री व केसर लाकर उनको कूटकर गुग्गल मिलाकर धूप बनाकर सुबह शाम २१ दिन तक घर में जलाएं। धीरे-धीरे तांत्रिक अभिकर्म समाप्त होगा।

३. गऊ, लोचन व तगर थोड़ी सी मात्रा में लाकर लाल कपड़े में बांधकर अपने घर में पूजा स्थान में रख दें। शिव कृपा से तमाम टोने-टोटके का असर समाप्त हो जाएगा।

४. घर में साफ सफाई रखें व पीपल के पत्ते से ७ दिन तक घर में गौमूत्र के छींटे मारें व तत्पश्चात् शुद्ध गुग्गल का धूप जला दें।

५. कई बार ऐसा होता है कि शत्रु आपकी सफलता व तरक्की से चिढ़कर तांत्रिकों द्वारा अभिचार कर्म करा देता है। इससे व्यवसाय बाधा एवं गृह क्लेश होता है अतः इसके दुष्प्रभाव से बचने हेतु सवा 1 किलो काले उड़द, सवा 1 किलो कोयला को सवा 1 मीटर काले कपड़े में बांधकर अपने ऊपर से २१ बार घुमाकर शनिवार के दिन बहते जल में विसर्जित करें व मन में हनुमान जी का ध्यान करें। ऐसा लगातार ७ शनिवार करें। तांत्रिक अभिकर्म पूर्ण रूप से समाप्त हो जाएगा।

६. यदि आपको ऐसा लग रहा हो कि कोई आपको मारना चाहता है तो पपीते के २१ बीज लेकर शिव मंदिर जाएं व शिवलिंग पर कच्चा दूध चढ़ाकर धूप बत्ती करें तथा शिवलिंग के निकट बैठकर पपीते के बीज अपने सामने रखें। अपना नाम, गौत्र उच्चारित करके भगवान् शिव से अपनी रक्षा की गुहार करें व एक माला महामृत्युंजय मंत्र की जपें तथा बीजों को एकत्रित कर तांबे के ताबीज में भरकर गले में धारण कर लें।

७. शत्रु अनावश्यक परेशान कर रहा हो तो नींबू को ४ भागों में काटकर चौराहे पर खड़े होकर अपने इष्ट देव का ध्यान करते हुए चारों दिशाओं में एक-एक भाग को फेंक दें व घर आकर अपने हाथ-पांव धो लें। तांत्रिक अभिकर्म से छुटकारा मिलेगा।

८. शुक्ल पक्ष के बुधवार को ४ गोमती चक्र अपने सिर से घुमाकर चारों दिशाओं में फेंक दें तो व्यक्ति पर किए गए तांत्रिक अभिकर्म का प्रभाव खत्म हो जाता है।

Wednesday, August 14, 2013

सर्व संकट  हरण  --- प्रयोग  
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सर्वा  बाधासु  घोरासु  , वेद्नाभ्यर्दितोपि  !!

स्मरनममैचरितमं , नरो   मुच्यते  संकटात !!!

...................  ॐ  नमः  शिवाय ...............

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उपयुक्त  मंत्र से " सप्त-श्लोकी  दुर्गा "  के ११  बार  सम्पुट - पाठ  
करने से सब  प्रकार  के  संकटों   से  छुटकारा   मिल जाता है  |  प्रत्येक 
पाठ  करने के बाद  ऊपर लिखे  * सम्पुट मंत्र  *  के साथ   स्वाहा जोड़ कर ११ बार  नीचे लिखी  सामग्री  से  हवन करें ||

१. अर्जुन की छाल का चूर्ण  
२. गाय का घी 
३. शुद्ध  शहद 
४. मिश्री
५. खीर  

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उपुक्त 


Sunday, August 11, 2013

धन  प्राप्ति  के  सरल  उपाय 
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धन प्राप्ति के लिए कुछ लोग लक्ष्मी माता का पूजन करते हैं, कुछ तुलसी का पौधा घर में रखकर प्रतिदिन सुबह शाम घी का दीपक जलाते हैं और कुछ लोग प्रति शुक्रवार लक्ष्मी-नारायण मंदिर जाकर सफेद रंग की मिठाई चढ़ाते हैं, लेकिन यहां प्रस्तुत हैं इससे कुछ भिन्न उपाय।

1. लक्ष्मी का प्रतीक कौड़ियां : पीली कौड़ी को देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। कुछ सफेद कौड़ियों को केसर या हल्दी के घोल में भिगोकर उसे लाल कपड़े में बांधकर घर में स्थित तिजोरी में रखें। कौड़ियों के अलावा एक नारियल की विधि-विधान से पूजा कर उसे चमकीले लाल कपड़े में लपेटकर तिजोरी में रख दें।

2. शंख का महत्व : शंख समुद्र मंथन के समय प्राप्त चौदह अनमोल रत्नों में से एक है। लक्ष्मी के साथ उत्पन्न होने के कारण इसे लक्ष्मी भ्राता भी कहा जाता है। यही कारण है कि जिस घर में शंख होता है वहां लक्ष्मी का वास होता है। घर में शंख जरूर रखें।

3. पीपल की पूजा : प्रति शनिवार को पीपल को जल चढ़ाकर उसकी पूजा करेंगे तो धन और समृद्धि में बढ़ोत्तरी होगी। 

4. ईशान कोण : घर का ईशान कोण हमेशा खाली रखें। हो सके तो वहां पर जलभरा एक पात्र रखें। चाहे तो वहां जल कलश भी रख सकते हैं।

5. बांसुरी रखें घर में : बांस निर्मित बांसुरी भगवान श्रीकृष्ण को अतिप्रिय है। जिस घर में बांसुरी रखी होती है, वहां के लोगों में परस्पर प्रेम तो बना रहता है और साथ ही सुख-समृद्धि भी बनी रहती है।
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Thursday, August 8, 2013

मौली  ( कलावा  )  क्यों  बाँधते हैं :-------
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किसी भी शुभ कार्य से पहले जैसे कोई पूजा - अनुष्ठान, गृह प्रवेश, दीपावली की पूजा या अन्य कोई भी पूजन सर्वप्रथम पंडित जी यजमान (यज्ञमान) को तिलक करते हैं और मौली बांधते हैं फिर पूजा आरम्भ होती है ! मौली बांधतेसमय इस मंत्र का उच्चारण किया जाता है:-

येन बद्धो बलीराजा दावेंद्रो महाबलः !
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे माचल माचल !!

ये प्रथा कब शुरू हुई और इसके महत्त्व के विषय में अनेक आख्यान शास्त्रों में मौजूद हैं !मौली बाँधने की परंपरा तब से चली आ रही है, जब से महान, दानवीरों में अग्रणी महाराज बलि की अमरता के लिए वामन भगवान् ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था !
इसे रक्षा कवच के रूप में भी शरीर पर बांधा जाता है !इन्द्र जब वृत्रासुर से युद्ध करने जा रहे थे तब इंद्राणी शची ने इन्द्र की दाहिनी भुजा पर रक्षा-कवच के रूप में मौली को बाँध दिया था और इन्द्र इस युद्ध में विजयी हुए !.जिसका अपना धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व है.
स्वास्थ्य के अनुसार मौली-बंधन से वात पित्त और कफ तीनों का शरीर में संतुलन बना रहता है और शरीर नीरोग रहता है! साधारणतया हम देखते हैं,कि यदि कोई कर्मकांडी पुरोहित जो कई दिनों तक चलने वाले अनुष्ठान में हैं और दुर्भाग्यवश उनके कुटुंब में किसी निकट संबंधी की मृत्यु हो जाती है तो भी उनको "सूतक" का दोष नहीं लगता है और वो अपना अनुष्ठान निर्विघ्न पूरा कर सकते हैं, क्योंकि उनहोंने पूजन आरम्भ होने पर बंधी जाने वाली मौली बाँध रखी है! यानी की मौली के प्रभाव से उस बड़े अनुष्ठान पर बाधा टल जाती है !
शास्त्रों का ऐसा मत है कि मौलि बांधने से त्रिदेव - ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा तीनों देवियों- लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है. ब्रह्मा की कृपा से "कीर्ति", विष्णु की अनुकंपा से "रक्षा बल" मिलता है तथा शिव "दुर्गुणों" का विनाश करते हैं. इसी प्रकार लक्ष्मी से "धन", दुर्गा से "शक्ति" एवं सरस्वती की कृपा से "बुद्धि" प्राप्त होती है.
मौलि बांधना उत्तम स्वास्थ्य भी प्रदान करती है. चूंकि मौलि बांधने से त्रिदोष- वात, पित्त तथा कफ का शरीर में सामंजस्य बना रहता है. शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण हाथ की कलाई में होता है, अतः यहां मौली बांधने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है. इसे बांधने से बीमारी अधिक नहीं बढती है. ब्लड प्रेशर, हार्ट एटेक, डायबीटिज और लकवा जैसे रोगों से बचाव के लिये मौली बांधना हितकर बताया गया है. मौली शत प्रतिशत कच्चे धागे (सूत) की ही होनी चाहिये.

मौलि बांधने की प्रथा तब से चली आ रही है जब दानवीर राजा बलि के लिए वामन भगवान ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था. शास्त्रों में भी इसका इस श्लोक के माध्यम से मिलता है -
येन बद्धो बलीराजा दानवेन्द्रो महाबल:
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल"..

इस मंत्र का सामान्यत: यह अर्थ लिया जाता है कि दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूं. हे रक्षे!(रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो.
धर्मशास्त्र के विद्वानों के अनुसार इसका अर्थ यह है कि रक्षा सूत्र बांधते समय ब्राह्मण या पुरोहत अपने यजमान को कहता है कि जिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे अर्थात् धर्म में प्रयुक्त किए गये थे, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं, यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूं. इसके बाद पुरोहित रक्षा सूत्र से कहता है कि हे रक्षे तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना. इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करना है.

कभी कभी मानव के लिए अशुभ ग्रहों के कुप्रभाव जीवन में कष्ट ले आते हैं. इससे पराजित होकर मनुष्य यत्र-तत्र भटकता रहता है. बड़े-बड़े सेठ, साहूकार एवं सम्राटों के सुनहरे स्वप्न छिन्न भिन्न हो जाते हैं. जीवन आकाश में दुखों के बादल छाए रहते हैं. इन्हीं उलझनों से बचने के लिए रक्षासूत्र सच्चे गुरु के द्वारा मंदिर में प्रभु के आशीर्वाद से धारण करना चाहिए.
पुरुषों तथा अविवाहित कन्याओं के दाएं हाथ में तथा विवाहित महिलाओं के बाएं हाथ में मौली बांधा जाता है. जिस हाथ में कलावा या मौली बांधें उसकी मुट्ठी बंधी हो एवं दूसरा हाथ सिर पर हो. इस पुण्य कार्य के लिए व्रतशील बनकर उत्तरदायित्व स्वीकार करने का भाव रखा जाए. पूजा करते समय नवीन वस्त्रों के न धारण किए होने पर मोली हाथ में धारण अवश्य करना चाहिए. धर्म के प्रति आस्था रखें. मंगलवार या शनिवार को पुरानी मौली उतारकर नई मोली धारण करें. संकटों के समय भी रक्षासूत्र हमारी रक्षा करते हैं.
वाहन, कलम, बही खाते, फैक्ट्री के मेन गेट, चाबी के छल्ले, तिजोरी पर पवित्र मौली बांधने से लाभ होता है, महिलाये मटकी, कलश, कंडा, अलमारी, चाबी के छल्ले, पूजा घर में मौली बांधें या रखें. मोली से बनी सजावट की वस्तुएं घर में रखेंगी तो नई खुशियां आती है.नौकरी पेशा लोग कार्य करने की टेबल एवं दराज में पवित्र मौली रखें या हाथ में मौली बांधेंगे तो लाभ प्राप्ति की संभावना बढ़ती है।
The Concept  of Prakriti
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 the concept of prakrati has basically come from Ayurveda and its root also lies in Matchmaking astrology. 

As per ayurveda, Prakriti can be of 3 different types:

Vata(this basically represent Kinetic energy, Space+ Air), 
pitta(Thermal energy-Fire + water) and 
kapha(Potential energy, earth + water)

Just like Prakiti we have 3 nadi's which corresponds to each prakriti

Adi nadi- Vata Prakriti
Madhya nadi-Pitta Prakriti
Antaya Nadi-Kapha Prakriti

People born with moon in Ashwani , Ardra , Punarvasu ,Uttaraphalguni ,Hasta , Jyeshta , Moola , Shatabisha & Poorvabhadrapada nakshatra have Adi Nadi

People born with moon in Bharani , Mrigashira , Pushya , Poorvaphalguni , Chitra , Anuradha , Poorvashadha , Dhanshitha & Uttarabhadrapada nakshatra have Madhya Nadi .

People born with moon in Kritika , Rohini , Aslesha , Magha , Swati , Vishakha , Uttarashadha , Sravana & Revati Nakshtras have Antya Nadi 

Hence if I am born in Dhanishtha nakshatra(Moon nakshatra) ,then my prakriti would be taken as Pitta as Dhanishtha nakshatra falls under Madhaya nadi which corresponds to Pitta prakriti.

During matchmaking, Nadi Dosha exists if bride and groom both have same Nadi. In these cases marriage should not be conducted between the couple. Presence of Nadi dosha directly affects the health and Vitality of the couple as well as their children or progeny. Still conclusion w.r.t to the possibility of the marriage must not be made solely on the base of this nadi dosha. 

Actually nadi dosha directly affects the pulse, hence governs health factors, In earlier days and even now Ayurvedic Doctors can identify the disease in person's body just by feeling the pulse (or nadi ) of the native.




















भगवान  परशुराम  स्त्रोतमः
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कराभ्यां परशुं चापं दधानं रेणुकात्मजं!
जामदग्न्यं भजे रामं भार्गवं क्षत्रियान्तकं!!१!!

नमामि भार्गवं रामं रेणुका चित्तनन्दनं!
मोचितंबार्तिमुत्पातनाशनं क्षत्रनाशनम्!!२!!

भयार्तस्वजनत्राणतत्परं धर्मतत्परम्!
गतगर्वप्रियं शूरं जमदग्निसुतं मतम्!!३!!

वशीकृतमहादेवं दृप्त भूप कुलान्तकम्!
तेजस्विनं कार्तवीर्यनाशनं भवनाशनम्!!४!!

परशुं दक्षिणे हस्ते वामे च दधतं धनुः !
रम्यं भृगुकुलोत्तंसं घनश्यामं मनोहरम्!!५!!

शुद्धं बुद्धं महाप्रज्ञापण्डितं रणपण्डितं!
रामं श्रीदत्तकरुणाभाजनं विप्ररंजनम्!!६!!

मार्गणाशोषिताभ्ध्यंशं पावनं चिरजीवनम्!
य एतानि जपेन्द्रामनामानि स कृति भवेत्!!७!!

Wednesday, August 7, 2013

महिलाओं    के   लिए   सुझाव 
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१ . यदि  कोई स्त्री  सूर्य गृह  से पीड़ित  हो  तो  लाल 
चन्दन का टुकड़ा  अपने तकिये के नीचे  हमेशा रखना  
चाहिए ..........

२. यदि  दांपत्य  जीवन में कुंठा   और तनाव  हो तो 
शुद्ध गाय  के घी  का दीपक   शयनकक्ष में  नित्य शाम 
को जलाएं ..........

३ . अपने  शयनकक्ष में अंगीठी  , चिमटा , कढ़ाही ,
तवा , छलनी  , मूसल , इमाम  दस्ता  आदि   नहीं रखने चाहिए ............
शिखा  का  महत्व  क्यों  है :---
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प्रणाम दोस्तों,

आप देखते होंगे की कई ब्राह्मण शिर के ऊपर शिखा रखते हे परन्तु शास्त्र के अनुसार सभी को शिखा रखनी चाहिए | शिखा को हिंदू धर्म का उपलक्षण माना गया हे | प्रकृति और विज्ञानं के नियमों को ध्यान में रख कर यह शिखा शास्त्र तैयार किया गया हे | मनु भगवान ने प्रत्येक व्यक्ति को शिखा संस्कार यानी चौलकर्म करने को कहा हे | शिखा कितनी बड़ी हो, इस सम्बन्ध में शास्त्र का वचन हे की इसका आकार गोखुर( गाय के खुर ) के बराबर होना चाहिए |

शिखा का मर्म समजने के लिए हमें सर्वप्रथम मस्तक की रचना समझनी चाहिए | मस्तक के दो भाग होते हे जो आपस में जुड़े होते हे | शारीर के अंदर तिन नाडिया प्रवाह करती हे, इडा, पिंगला और सुषुम्ना नाडी, इन तिन में से सुषुम्ना नाडी मस्तक के दोनों कपालो के मध्य से उर्ध्व दिशा की और जाती हे | वैसे मानव उत्क्रांति का सर्वोच्च पड़ाव आत्मसाक्षात्कार हे | यह आत्मसाक्षात्कार सुषुम्ना नाडी के माध्यम से होता हे | और सुषुम्ना नाडी अपान मार्ग से होती हुई मस्तक द्वारा ब्रह्मरंध्र में विलीन हो जाती हे | ब्रह्मरंध्र ज्ञान, कर्म और इच्छा - इन तीनों शक्तियो का संगम हे | इसी कारण मस्तक के अन्य भागो की अपेक्षा ब्रह्मरंध्र को अधिक ठंडापन स्पर्श करना जरुरी है | इस लिए उतने भाग पर केश होना बहुत आवश्यक हे| जब बाहर के वातावरण में ठण्ड होंने पर भी यह शिखा के केश के कारन शिर के ऊपर ब्रह्मरंध्र में पर्याप्त रूप से उष्णता बनी रहती हे |

यजुर्वेद में शिखा को इन्द्र्योनी कहा गया हे | हमारे शारीर में कर्म - ज्ञान और इच्छा की उर्जा ब्रह्मरंध्र के माध्यम से ही इन्दिर्यो को प्राप्त होती हे | अगर सीधे सादे शब्दों में कहे तो ये हमारे शारीर का एंटेना हे - जैसे दूरदर्शन और आकाशवाणी के प्रसारण को हम एंटेना के माध्यम से पकड़ते हे ठीक उसी तरह ब्रह्माण्ड की उर्जा प्राप्त करने के लिए शिखा अत्यंत आवश्यक हे | इसे अंग्रेजी भाषा में "पिनिअल ग्लेंड" कहा जाता हे | इस ग्रंथि का सही स्थान ब्रह्मरंध्र के पास रहता हे - यह ग्रंथि जितनी ज्यादा संवेदनशील होती हे, मानव का विकास उतना ही अधिक होता हे |

मन्त्र पुरुश्चरण और अनुष्ठान के समय शिखा को गांठ बांधनी चाहिए | इसका कारण यह हे की गांठ बांधने से मन्त्र स्पंदन द्वारा उत्पन्न होने वाली उर्जा शारीर में एकत्रित होती हे | और शिखा की वजह से यह उर्जा बहार जाने से रुक जाती हे | और हमें मन्त्र जप का सम्पूर्ण लाभ प्राप्त होता हे

Thursday, August 1, 2013

अथर्ववेदीय सूर्योपनिषत्
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ॐ भद्रं कर्णेभिः श्रुनुयामा देवाः
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राह
स्थिरैरंगाई स्तुश्तुवाम्सस्तानूभिः व्यशेम देवहितं यदायुह

स्वस्ति न इन्द्रो वृधाश्रवाह स्वस्ति नह पूषा विश्ववेदाः
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो ब्रिहस्पतिर दधातु
ॐ शांतिः, शांतिः, शांतिः
हरिः ॐ अथ सूर्याथर्वाङ्गिरसं व्याख्यास्यामः .
ब्रह्मा ऋषिः . गायत्री छन्दः . आदित्यो देवता .
हंसः सोऽहमग्निनारायणयुक्तं बीजम् . हृल्लेखा शक्तिः .
वियदादिसर्गसंयुक्तं कीलकम् .
चतुर्विधपुरुषार्थसिद्ध्यर्थे विनियोगः 
षट्स्वरारूढेन बीजेन षडङ्गं रक्ताम्बुजसंस्थितम् .
सप्ताश्वरथिनं हिरण्यवर्णं चतुर्भुजं
पद्मद्वयाभयवरदहस्तं कालचक्रप्रणेतारं
श्रीसूर्यनारायणं य एवं वेद स वै ब्राह्मणः
ॐ भूर्भुवःसुवः . ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि . धियो यो नः प्रचोदयात्
सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च . सूर्याद्वै खल्विमानि
भूतानि जायन्ते .
सूर्याद्यज्ञः पर्जन्योऽन्नमात्मा नमस्त आदित्य
त्वमेव प्रत्यक्षं कर्मकर्तासि . त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि .
त्वमेव प्रत्यक्षं विष्णुरसि .
त्वमेव प्रत्यक्षं रुद्रोऽसि . त्वमेव प्रत्यक्षमृगसि .
त्वमेव प्रत्यक्षं यजुरसि .
त्वमेव प्रत्यक्षं सामासि . त्वमेव प्रत्यक्षमथर्वासि .
त्वमेव सर्वं छन्दोऽसि .
आदित्याद्वायुर्जायते . आदित्याद्भूमिर्जायते . आदित्यादापो
जायन्ते . आदित्याज्ज्योतिर्जायते .
आदित्याद्व्योम दिशो जायन्ते . आदित्याद्देवा जायन्ते .
आदित्याद्वेदा जायन्ते .
आदित्यो वा एष एतन्मण्डलं तपति . असावादित्यो ब्रह्म
आदित्योऽन्तःकरणमनोबुद्धिचित्ताहङ्काराः . आदित्यो वै
व्यानः समानोदानोऽपानः प्राणः .
आदित्यो वै श्रोत्रत्वक्चक्षूरसनघ्राणाः . आदित्यो वै
वाक्पाणिपादपायूपस्थाः .
आदित्यो वै शब्दस्पर्शरूपरसगन्धाः . आदित्यो वै
वचनादानागमनविसर्गानन्दाः 
आनन्दमयो ज्ञानमयो विज्ञानानमय आदित्यः . नमो मित्राय
भानवे मृत्योर्मा पाहि .
भ्राजिष्णवे विश्वहेतवे नमः . सूर्याद्भवन्ति भूतानि
सूर्येण पालितानि तु .
सूर्ये लयं प्राप्नुवन्ति यः सूर्यः सोऽहमेव च . चक्षुर्नो
देवः सविता चक्षुर्न उत पर्वतः .
चक्षुर्धाता दधातु नः . आदित्याय विद्महे सहस्रकिरणाय
धीमहि . तानः सूर्यः प्रचोदयात् 
सविता पश्चात्तात्सविता
पुरस्तात्सवितोत्तरात्तात्सविताधरात्तात् .
सविता नः सुवतु सर्वतातिं सविता नो रासतां दीर्घमायुः
ॐइत्येकाक्षरं ब्रह्म . घृणिरिति द्वे अक्षरे . सूर्य
इत्यक्षरद्वयम् . आदित्य इति त्रीण्यक्षराणि .
एतस्यैव सूर्यस्याष्टाक्षरो मनुः . यः सदाहरहर्जपति स
वै ब्राह्मणो भवति स वै ब्राह्मणो भवति 
सूर्याभिमुखो जप्त्वा महाव्याधिभयात्प्रमुच्यते .
अलक्ष्मीर्नश्यति . अभक्ष्यभक्षणात्पूतो भवति .
अगम्यागमनात्पूतो भवति . पतितसम्भाषणात्पूतो भवति .
असत्सम्भाषणात्पूतो भवति .
मध्याह्ने सूराभिमुखः पठेत् .
सद्योत्पन्नपञ्चमहापातकात्प्रमुच्यते .
सैषां सावित्रीं विद्यां न किञ्चिदपि न
कस्मैचित्प्रशंसयेत् 
य एतां महाभागः प्रातः पठति स भाग्यवाञ्जायते .
पशून्विन्दति . वेदार्थं लभते .
त्रिकालमेतज्जप्त्वा क्रतुशतफलमवाप्नोति . यो हस्तादित्ये
जपति स महामृत्युं तरति य एवं वेद ..
इत्युपनिषत् ..
हरिः ॐ
इति सूर्योपनिषत्समाप्ता