Friday, September 20, 2013

आइये जानते हैं तुलसी के फायदे...
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1. तुलसी रस से बुखार उतर जाता है। इसे पानी में मिलाकर हर दो-तीन घंटे में पीने से बुखार कम हो जाता है।

2. कई आयुर्वेदिक कफ सिरप में तुलसी का इस्तेमाल अनिवार्य है।यह टी.बी,ब्रोंकाइटिस और दमा जैसे रोंगो के लिए भी फायदेमंद है।

3. जुकाम में इसके सादे पत्ते खाने से भी फायदा होता है।

4. सांप या बिच्छु के काटने पर इसकी पत्तियों का रस,फूल और जडे विष नाशक का काम करती हैं।

5. तुलसी के तेल में विटामिन सी,कै5रोटीन,कैल्शियम और फोस्फोरस प्रचुर मात्रा में होते हैं।

6. साथ ही इसमें एंटीबैक्टेरियल,एंटीफंगल और एंटीवायरल गुण भी होते हैं।

7. यह मधुमेह के रोगियों के लिए भी फायदेमंद है।साथ ही यह पाचन क्रिया को भी मज़बूत करती हैं।

8. तुलसी का तेल एंटी मलेरियल दवाई के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। एंटीबॉडी होने की वजह से यह हमारी इम्यूनिटी भी बढा देती है।

9. तुलसी के प्रयोग से हम स्वास्थय और सुंदरता दोनों को ही ठीक रख सकते हैं।

सावधानी :
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फायदे जानने के बाद तुलसी के सेवन में अति कर देना नुकसानदायक साबित होगा। क्योंकि इसकी तासीर गर्म होती है इसलिए दिन भर में 10-12 पत्तों का ही सेवन करना चाहिए। खासतौर पर महिलाओं के लिए भले ही तुलसी एक वरदान की तरह है लेकिन फिर भी एक दिन में पांच तुलसी के पत्ते पर्याप्त हैं। हां, इसका सेवन छाछ या दही के साथ करने से इसका प्रभाव संतुलित हो जाता है। हालांकि यह आर्थराइटिस, एलर्जी, मैलिग्नोमा, मधुमेह, वायरल आदि रोगों में फायदा पहुंचाती है। लेकिन गर्भावस्था के दौरान इसके सेवन का ध्यान रखना जरूरी है। गर्भावस्था के दौरान अगर दर्द ज्यादा होता है तब तुलसी के काढे से फायदा पहुंच सकता है। इसमे तुलसी के पत्तो को रात भर पानी मे भिगो दें और सुबह उसे क्रश करके चीनी के साथ खाएं ब्रेस्ट- फीडिंग के दौरान भी तुलसी का काढा फायदेमंद होता है। इसके लिए बीस ग्राम तुलसी का रस और मकई के पत्तों रस मिलाएं, इसमें दस ग्राम अश्वगंधा रस और दस ग्राम शहद मिला कर खाएं। तुलसी बच्चेदानी को स्वास्थ रखने के लिए भी सहायक है। हां, एक बात ध्यान रहे कि आपके स्वास्थ पर तुलसी के अच्छे और बुरे दोनों प्रभाव पड सकते हैं इसलिए महिलाओं के लिए हो या बच्चों के लिए, बिना आयुर्वेदाचार्य से परामर्श लिए इसका इस्तेमाल न करे।

Wednesday, September 18, 2013

॥धनलक्ष्मी स्तोत्रम्॥
॥धनदा उवाच॥
देवी देवमुपागम्य नीलकण्ठं मम प्रियम् ।
कृपया पार्वती प्राह शंकरं करुणाकरम् ॥1॥
॥देव्युवाच॥
ब्रूहि वल्लभ साधूनां दरिद्राणां कुटुम्बिनाम् ।
दरिद्र दलनोपायमंजसैव धनप्रदम् ॥2॥
॥शिव उवाच॥
पूजयन् पार्वतीवाक्यमिदमाह महेश्वरः ।
उचितं जगदम्बासि तव भूतानुकम्पया ॥3॥

स सीतं सानुजं रामं सांजनेयं सहानुगम् ।
प्रणम्य परमानन्दं वक्ष्येऽहं स्तोत्रमुत्तमम् ॥4॥

धनदं श्रद्धानानां सद्यः सुलभकारकम् ।
योगक्षेमकरं सत्यं सत्यमेव वचो मम ॥5॥

पठंतः पाठयंतोऽपि ब्रह्मणैरास्तिकोत्तमैः ।
धनलाभो भवेदाशु नाशमेति दरिद्रता ॥6॥

भूभवांशभवां भूत्यै भक्तिकल्पलतां शुभाम् ।
प्रार्थयत्तां यथाकामं कामधेनुस्वरूपिणीम् ॥7॥

धनदे धनदे देवि दानशीले दयाकरे ।
त्वं प्रसीद महेशानि! यदर्थं प्रार्थयाम्यहम् ॥8॥

धराऽमरप्रिये पुण्ये धन्ये धनदपूजिते ।
सुधनं र्धामिके देहि यजमानाय सत्वरम् ॥9॥

रम्ये रुद्रप्रिये रूपे रामरूपे रतिप्रिये ।
शिखीसखमनोमूर्त्ते प्रसीद प्रणते मयि ॥10॥

आरक्त- चरणाम्भोजे सिद्धि- सर्वार्थदायिके ।
दिव्याम्बरधरे दिव्ये दिव्यमाल्यानुशोभिते ॥11॥

समस्तगुणसम्पन्ने सर्वलक्षणलक्षिते ।
शरच्चन्द्रमुखे नीले नील नीरज लोचने ॥12॥

चंचरीक चमू चारु श्रीहार कुटिलालके ।
मत्ते भगवती मातः कलकण्ठरवामृते ॥13॥

हासाऽवलोकनैर्दिव्यैर्भक्तचिन्तापहारिके ।
रूप लावण्य तारूण्य कारूण्य गुणभाजने ॥14॥

क्वणत्कंकणमंजीरे लसल्लीलाकराम्बुजे ।
रुद्रप्रकाशिते तत्त्वे धर्माधरे धरालये ॥15॥

प्रयच्छ यजमानाय धनं धर्मेकसाधनम् ।
मातस्त्वं मेऽविलम्बेन दिशस्व जगदम्बिके ॥16॥

कृपया करुरागारे प्रार्थितं कुरु मे शुभे ।
वसुधे वसुधारूपे वसु वासव वन्दिते ॥17॥

धनदे यजमानाय वरदे वरदा भव ।
ब्रह्मण्यैर्ब्राह्मणैः पूज्ये पार्वतीशिवशंकरे ॥18॥

स्तोत्रं दरिद्रताव्याधिशमनं सुधनप्रदम् ।
श्रीकरे शंकरे श्रीदे प्रसीद मयिकिंकरे ॥19॥

पार्वतीशप्रसादेन सुरेश किंकरेरितम् ।
श्रद्धया ये पठिष्यन्ति पाठयिष्यन्ति भक्तितः ॥20॥

सहस्रमयुतं लक्षं धनलाभो भवेद् ध्रुवम् ।
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च ।
भवन्तु त्वत्प्रसादान्मे धन- धान्यादिसम्पदः ॥21॥

॥ शइति श्री धनलक्ष्मी स्तोत्रं संपूर्णम् ॥

Monday, September 9, 2013

॥वैभव प्रदाता श्री सूक्त॥
हरिः 
ॐ 
हिरण्यवर्णां 
हरिणीं 
सुवर्णरजतस्र​जाम् 

चन्द्रां 
हिरण्मयीं 
लक्ष्मीं 
जातवेदो 
म 
आवह 
॥१॥

तां 
म 
आवह 
जातवेदो 
लक्ष्मीमनपगामिनीम् 

यस्यां 
हिरण्यं 
विन्देयं 
गामश्वं 
पुरुषानहम् 
॥२॥

अश्वपूर्वां 
रथमध्यां 
हस्तिनादप्रबोधिनीम् 

श्रियं 
देवीमुपह्वये 
श्रीर्मा 
देवी 
जुषताम् 
॥३॥

कां 
सोस्मितां 
हिरण्यप्राकारामार्द्रां 
ज्वलन्तीं 
तृप्तां 
तर्पयन्तीम् 

पद्मे 
स्थितां 
पद्मवर्णां 
तामिहोपह्वये 
श्रियम् 
॥४॥

प्रभासां 
यशसा 
लोके 
देवजुष्टामुदाराम् 

पद्मिनीमीं 
शरणमहं 
प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे 
नश्यतां 
त्वां 
वृणे 
॥५॥

आदित्यवर्णे 
तपसोऽधिजातो 
वनस्पतिस्तव 
वृक्षोऽथ 
बिल्वः 

तस्य 
फलानि 
तपसानुदन्तु 
मायान्तरायाश्च 
बाह्या 
अलक्ष्मीः 
॥६॥

उपैतु 
मां 
देवसखः 
कीर्तिश्च 
मणिना 
सह 

प्रादुर्भूतोऽस्मि 
राष्ट्रेऽस्मिन् 
कीर्तिमृद्धिं 
ददातु 
मे 
॥७॥

क्षुत्पिपासामलां 
ज्येष्ठामलक्ष्मीं 
नाशयाम्यहम् 

अभूतिमसमृद्धिं 
च 
सर्वां 
निर्णुद 
गृहात् 
॥८॥

गन्धद्वारां 
दुराधर्षां 
नित्यपुष्टां 
करीषिणीम् 

ईश्वरींग् 
सर्वभूतानां 
तामिहोपह्वये 
श्रियम् 
॥९॥

मनसः 
काममाकूतिं 
वाचः 
सत्यमशीमहि 

पशूनां 
रूपमन्नस्य 
मयि 
श्रीः 
श्रयतां 
यशः 
॥१०॥

कर्दमेन 
प्रजाभूता 
सम्भव 
कर्दम 

श्रियं 
वासय 
मे 
कुले 
मातरं 
पद्ममालिनीम् 
॥११॥

आपः 
सृजन्तु 
स्निग्धानि 
चिक्लीत 
वस 
गृहे 

नि 
च 
देवी 
मातरं 
श्रियं 
वासय 
कुले 
॥१२॥

आर्द्रां 
पुष्करिणीं 
पुष्टिं 
पिङ्गलां 
पद्ममालिनीम् 

चन्द्रां 
हिरण्मयीं 
लक्ष्मीं 
जातवेदो 
म 
आवह 
॥१३॥

आर्द्रां 
यः 
करिणीं 
यष्टिं 
सुवर्णां 
हेममालिनीम् 

सूर्यां 
हिरण्मयीं 
लक्ष्मीं 
जातवेदो 
म 
आवह 
॥१४॥

तां 
म 
आवह 
जातवेदो 
लक्ष्मीमनपगामिनीम् 

यस्यां 
हिरण्यं 
प्रभूतं 
गावो 
दास्योऽश्वान् 
विन्देयं 
पूरुषानहम् 
॥१५॥

यः 
शुचिः 
प्रयतो 
भूत्वा 
जुहुयादाज्यमन्वहम् 

सूक्तं 
पञ्चदशर्चं 
च 
श्रीकामः 
सततं 
जपेत् 
॥१६॥

पद्मानने 
पद्म 
ऊरु 
पद्माक्षी 
पद्मासम्भवे 

त्वं 
मां 
भजस्व 
पद्माक्षी 
येन 
सौख्यं 
लभाम्यहम् 
॥१७॥

अश्वदायि 
गोदायि 
धनदायि 
महाधने 

धनं 
मे 
जुषताम् 
देवी 
सर्वकामांश्च 
देहि 
मे 
॥१८॥

पुत्रपौत्र 
धनं 
धान्यं 
हस्त्यश्वादिगवे 
रथम् 

प्रजानां 
भवसि 
माता 
आयुष्मन्तं 
करोतु 
माम् 
॥१९॥

धनमग्निर्धनं 
वायुर्धनं 
सूर्यो 
धनं 
वसुः 

धनमिन्द्रो 
बृहस्पतिर्वरुणं 
धनमश्नुते 
॥२०॥

वैनतेय 
सोमं 
पिब 
सोमं 
पिबतु 
वृत्रहा 

सोमं 
धनस्य 
सोमिनो 
मह्यं 
ददातु 
॥२१॥

न 
क्रोधो 
न 
च 
मात्सर्य 
न 
लोभो 
नाशुभा 
मतिः 

भवन्ति 
कृतपुण्यानां 
भक्तानां 
श्रीसूक्तं 
जपेत्सदा 
॥२२॥

वर्षन्तु 
ते 
विभावरि 
दिवो 
अभ्रस्य 
विद्युतः 

रोहन्तु 
सर्वबीजान्यव 
ब्रह्म 
द्विषो 
जहि 
॥२३॥

पद्मप्रिये 
पद्म 
पद्महस्ते 
पद्मालये 
पद्मदलायताक्षि 

विश्वप्रिये 
विष्णु 
मनोऽनुकूले 
त्वत्पादपद्मं 
मयि 
सन्निधत्स्व 
॥२४॥

या 
सा 
पद्मासनस्था 
विपुलकटितटी 
पद्मपत्रायताक्षी 

गम्भीरा 
वर्तनाभिः 
स्तनभर 
नमिता 
शुभ्र 
वस्त्रोत्तरीया 
॥२५॥

लक्ष्मीर्दिव्यैर्गजेन्द्रैर्मणिगणखचितैस्स्नापिता 
हेमकुम्भैः 

नित्यं 
सा 
पद्महस्ता 
मम 
वसतु 
गृहे 
सर्वमाङ्गल्ययुक्ता 
॥२६॥

लक्ष्मीं 
क्षीरसमुद्र 
राजतनयां 
श्रीरङ्गधामेश्वरीम् 

दासीभूतसमस्त 
देव 
वनितां 
लोकैक 
दीपांकुराम् 
॥२७॥

श्रीमन्मन्दकटाक्षलब्ध 
विभव 
ब्रह्मेन्द्रगङ्गाधराम् 

त्वां 
त्रैलोक्य 
कुटुम्बिनीं 
सरसिजां 
वन्दे 
मुकुन्दप्रियाम् 
॥२८॥

सिद्धलक्ष्मीर्मोक्षलक्ष्मीर्जयलक्ष्मीस्सरस्वती 

श्रीलक्ष्मीर्वरलक्ष्मीश्च 
प्रसन्ना 
मम 
सर्वदा 
॥२९॥

वरांकुशौ 
पाशमभीतिमुद्रां 
करैर्वहन्तीं 
कमलासनस्थाम् 

बालार्क 
कोटि 
प्रतिभां 
त्रिणेत्रां 
भजेहमाद्यां 
जगदीस्वरीं 
त्वाम् 
॥३०॥

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये 
शिवे 
सर्वार्थ 
साधिके 

शरण्ये 
त्र्यम्बके 
देवि 
नारायणि 
नमोऽस्तु 
ते 
॥३१॥

सरसिजनिलये 
सरोजहस्ते 
धवलतरांशुक 
गन्धमाल्यशोभे 

भगवति 
हरिवल्लभे 
मनोज्ञे 
त्रिभुवनभूतिकरि 
प्रसीद 
मह्यम् 
॥३२॥

विष्णुपत्नीं 
क्षमां 
देवीं 
माधवीं 
माधवप्रियाम् 

विष्णोः 
प्रियसखीं 
देवीं 
नमाम्यच्युतवल्लभाम् 
॥३३॥

महालक्ष्मी 
च 
विद्महे 
विष्णुपत्नीं 
च 
धीमहि 

तन्नो 
लक्ष्मीः 
प्रचोदयात् 
॥३४॥

श्रीवर्चस्यमायुष्यमारोग्यमाविधात् 
पवमानं 
महियते 

धनं 
धान्यं 
पशुं 
बहुपुत्रलाभं 
शतसंवत्सरं 
दीर्घमायुः 
॥३५॥

ऋणरोगादिदारिद्र्यपापक्षुदपमृत्यवः 

भयशोकमनस्तापा 
नश्यन्तु 
मम 
सर्वदा 
॥३६॥

य 
एवं 
वेद 
ॐ 
महादेव्यै 
च 
विष्णुपत्नीं 
च 
धीमहि 

तन्नो 
लक्ष्मीः 
प्रचोदयात् 
ॐ 
शान्तिः 
शान्तिः 
शान्तिः 
॥३७॥