Saturday, July 19, 2014


तिथि  अनुसार  आहार 
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प्रतिपदा को कूष्माण्ड(कुम्हड़ा, पेठा) न खाये, क्योंकि यह धन का 
नाश करने वाला है।
द्वितीया को बृहती (छोटा गन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है।
तृतीया को परवल खाना शत्रुओं की वृद्धि करने वाला है।
चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है।
पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है।
षष्ठी को नीम की 🌳पत्ती, फल या दातुन मुँह में डालने से नीच योनियों
की प्राप्ति होती है।
सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है था शरीर का नाश
होता है।
अष्टमी को नारियल का फल खाने से बुद्धि का नाश होता है।
नवमी को लौकी खाना गोमांस के समान त्याज्य है।
एकादशी को शिम्बी(सेम), द्वादशी को पूतिका(पोई) अथवा त्रयोदशी
को बैंगन खाने से पुत्र का नाश होता है।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रान्ति, चतुर्दशी और अष्टमी तिथि, रविवार,
श्राद्ध और व्रत के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और
लगाना निषिद्ध है।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)
रविवार के दिन मसूर की दाल, अदरक और लाल रंग का साग नहीं
खाना चाहिए।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण खंडः 75.90)
सूर्यास्त के बाद कोई भी तिलयुक्त पदार्थ नहीं खाना चाहिए।
(मनु स्मृतिः 4.75)
लक्ष्मी की इच्छा रखने वाले को रात में दही और सत्तू नहीं खाना
चाहिए। यह नरक की प्राप्ति कराने वाला है।
(महाभारतः अनु. 104.93)
दूध के साथ नमक, दही, लहसुन, मूली, गुड़, तिल, नींबू, केला,
पपीता आदि सभी प्रकार के फल, आइसक्रीम, तुलसी व अदरक
का सेवन नहीं करना
चाहिए। यह विरूद्ध आहार है।
दूध पीने के 2 घंटे पहले व बाद के अंतराल तक भोजन न करें।
बुखार में 🍼दूध पीना साँप के जहर के समान है।
काटकर देर तक रखे हुए फल तथा कच्चे फल जैसे कि आम,
अमरूद, 🍋पपीता आदि न खायें। फल भोजन के पहले खायें। रात
को 🍋🍌फल नहीं खाने चाहिए।
एक बार पकाया हुआ भोजन दुबारा गर्म करके खाने से शरीर में गाँठें
बनती हैं, जिससे टयूमर की बीमारी हो सकती है।
अभक्ष्य-भक्षण करने (न खाने योग्य खाने) पर उससे उत्पन्न पाप
के विनाश के लिए पाँच दिन तक गोमूत्र, गोमय, दूध, दही तथा घी
का आहार करो।

Friday, July 11, 2014

कामाक्षी  स्त्रोतम......
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कामाक्षी   स्तोत्रम्
कल्पानोकह_पुष्प_जाल_विलसन्नीलालकां मातृकां
कान्तां कञ्ज_दलेक्षणां कलि_मल_प्रध्वंसिनीं कालिकाम् ।
काञ्ची_नूपुर_हार_दाम_सुभगां काञ्ची_पुरी_नायिकां
कामाक्षीं करि_कुम्भ_सन्निभ_कुचां वन्दे महेश_प्रियाम् ॥१॥
 काशाभांशुक_भासुरां प्रविलसत्_कोशातकी_सन्निभां
चन्द्रार्कानल_लोचनां सुरुचिरालङ्कार_भूषोज्ज्वलाम् ।
ब्रह्म_श्रीपति_वासवादि_मुनिभिः संसेविताङ्घ्रि_द्वयां
कामाक्षीं गज_राज_मन्द_गमनां वन्दे महेश_प्रियाम् ॥२॥
 ऐं क्लीं सौरिति यां वदन्ति मुनयस्तत्त्वार्थ_रूपां परां
वाचाम् आदिम_कारणं हृदि सदा ध्यायन्ति यां योगिनः ।
बालां फाल_विलोचनां नव_जपा_वर्णां सुषुम्नाश्रितां
कामाक्षीं कलितावतंस_सुभगां वन्दे महेश_प्रियाम् ॥३॥
 यत्_पादाम्बुज_रेणु_लेशम् अनिशं लब्ध्वा विधत्ते विधिर्_
विश्वं तत् परिपाति विष्णुरखिलं यस्याः प्रसादाच्चिरम् ।
रुद्रः संहरति क्षणात् तद् अखिलं यन्मायया मोहितः
कामाक्षीं अति_चित्र_चारु_चरितां वन्दे महेश_प्रियाम् ॥४॥
 सूक्ष्मात् सूक्ष्म_तरां सुलक्षित_तनुं क्षान्ताक्षरैर्लक्षितां
वीक्षा_शिक्षित_राक्षसां त्रि_भुवन_क्षेमङ्करीम् अक्षयाम् ।
साक्षाल्लक्षण_लक्षिताक्षर_मयीं दाक्षायणीं सक्षिणीं
कामाक्षीं शुभ_लक्षणैः सुललितां वन्दे महेश_प्रियाम् ॥५॥
 ओङ्काराङ्गण_दीपिकाम् उपनिषत्_प्रासाद_पारावतीम्
आम्नायाम्बुधि_चन्द्रिकाम् अध_तमः_प्रध्वंस_हंस_प्रभाम् ।
काञ्ची_पट्टण_पञ्जराऽऽन्तर_शुकीं कारुण्य_कल्लोलिनीं
कामाक्षीं शिव_कामराज_महिषीं वन्दे महेश_प्रियाम् ॥६॥
 ह्रीङ्कारात्मक_वर्ण_मात्र_पठनाद् ऐन्द्रीं श्रियं तन्वतीं
चिन्मात्रां भुवनेश्वरीम् अनुदिनं भिक्षा_प्रदान_क्षमाम् ।
विश्वाघौघ_निवारिणीं विमलिनीं विश्वम्भरां मातृकां
कामाक्षीं परिपूर्ण_चन्द्र_वदनां वन्दे महेश_प्रियाम् ॥७॥
 वाग्_देवीति च यां वदन्ति मुनयः क्षीराब्धि_कन्येति च
क्षोणी_भृत्_तनयेति च श्रुति_गिरो याम् आमनन्ति स्फुटम् ।
एकानेक_फल_प्रदां बहु_विधाऽऽकारास्तनूस्तन्वतीं
कामाक्षीं सकलार्ति_भञ्जन_परां वन्दे महेश_प्रियाम् ॥८॥
 मायाम् आदिम्_कारणं त्रि_जगताम् आराधिताङ्घ्रि_द्वयाम्
आनन्दामृत_वारि_राशि_निलयां विद्यां विपश्चिद्_धियाम् ।
माया मानुष रूपिणीं मणि_लसन्मध्यां महामातृकां
कामाक्षीं करि राज मन्द_गमनां वन्दे महेश प्रियाम् ॥९॥
 कान्ता काम_दुधा करीन्द्र_गमना कामारि_वामाङ्क_गा
कल्याणी कलितावतार_सुभगा कस्तूरिका_चर्चिता
कम्पा_तीर_रसाल_मूल_निलया कारुण्य_कल्लोलिनी
कल्याणानि करोतु मे भगवती काञ्ची_पुरी देवता ॥१०॥

Thursday, July 10, 2014

* अपर्णा  अप्सरा  साधना 

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अपसरा साधना स्पष्ट शब्दो मेँ यह काम भावना की साधना है। अप्सरा का अर्थ एसी देवी वर्ग से है जोसौंदर्य की द्रष्टि से अनुपमेय हो। मुख की सुन्दरता के साथ साथ देह व वाणी सौँन्दर्य न्रत्य संगीतकाव्य-हास्य-विनोद सभी प्रकार के सौंदर्योँ से भरपूर हो।जिसे देख कर मन मोहित हो काम स्फुरन आरंम्भ हो जाए..............
कुंकुमपंअकलंकितदेहा गौरपयोधरकपम्पितहारा।नूपूरहंसरणत्पदपदूमाकं नवशीकुरुते भुविरामा॥

र्थ-जिसका शरीर केसर के उबटन से सुन्दर बना हुआ है, जिसके गुलाबी स्तनोँ पर मोती का हार झूल रहा है चरण कमल मे नुपूर रुपी हंस शब्द करतेँ हो। एसी लोकोत्तर सुन्दरी किसे अपने वश मे नहिकर सकती।

आवश्यक सामग्री
-गुलाबजल,गुलाब का इत्र, अप्सरा का चित्र,दीपक, शुद्ध घी या चमेली का तेल, एक बेजोट,कोरा श्वेत वस्त्र केसर दो गुलाब के फूल,शंख की माला, श्वेत या कंबल का आसन, सफेद धोती गमझा,
दिन व समय-किसी भी मास की एक तारीख को या किसी भी पुष्य नक्षत्र मे की जा सकती है। रात्रि 11 बजे करे।@मंत्र-ॐ ल्रं ठं ह्रां सः सः[OM LRAM THM HRAM SH SH]
विधी-साधना के करने से पूर्व बेजोट पर श्वेत वस्त्र कोरा वस्त्र बिछा कर अप्सरा का चित्र रखेँ! दीपक जला कर केसर से पूजन करे।उक्त विधी द्वारा अंगो को चित्र मे स्पर्श करें! [>समस्त अप्सराओ की साधना मे यह वैदिक विधी प्रयोग की जा सकती है।

अं नारिकेल रुपायै नमः-शिरसिआं वासुकी रुपायै नमः-केशायइं सागर रुपायै नमः- नेत्रयोईँ-मत्यस्य रुपायै नमः -भ्रमरेउं मधुरायै नमः- कपोलेऊं गुलपुष्पायै नमः- मुखेएं गह्वरायै नमः-चिबुकेऐं पद्मपत्रायै नमः-अधरोष्ठेओं दाडिमबीजायै नमः-दंतपंक्तौऔं हंसिन्यै नमः-ग्रिवायैअं पुष्प वल्ल्यै नमः-भुजायोःअः सूर्यचंद्रमाय नमः-कुचेकं सागरप्रगल्भायै नमः- वक्षेखं पीपरपत्रकायै नमः-उदरौगं वासुकीझील्यै नमः-नाभौघं गजसुंडायै नमः-जंघायैचं सौंदर्यरुपायै नमः पादयौघं हरिणमोहिन्यै नमः-चरणेजं आकाशाय नमः-नितम्भयोझं जगतमोहिन्यै नमः-रुपेटं काम प्रियायै नमः- सर्वांगेअब अप्सरा के भावोँ की कल्पना करेँठं देवमोहिन्यै नमः-गत्यमौडं विश्व मोहिन्यै नमः-चितवनेढं अदोष रुपायै नमः-द्रष्ट्यैतं अष्टगंधायै नमः-सुगंधेषुथं देवदुर्लभायै नमः-प्रणयंदं सर्वमोहिन्यै नमः-हास्येघं सर्वमंगलायै नमः-कोमलांग्यैनं धनप्रदायै नमः- लक्ष्म्यैपं देहसुखप्रदाय नमः-रत्यैफं कामक्रिडायै नमः-मधुरेबं सुखप्रदायै नमः-हेमवत्यैभं आलिंगनायै नमः-रुपायैमं रात्रौसमाप्त्यैनमः-गौर्यैयं भोगप्रदायै नमः-भोग्यैरं रतिक्रयायै नमः-अप्सरायैलं प्रणयप्रियायै नमः-दिव्यांगनायैवं मनोवांछितप्रदायनमः-अप्सरायैशं सर्वसुखप्रदायै नमः-योगरुपायैषं कामक्रिडायै नमः-देव्यैसं जलक्रिडायै नमः-कोमलांगिन्यैहं स्वर्ग प्रदायै नमः-अर्पणाप्सरायै

अब एक गुलाब का पुष्प चित्र के पास रखे गुराब का इत्र रुई मे ले कर चित्र के पास रख दे। एवं अब स्वयं इत्र लगावेँ। एक मुलैठी या इलायची चबा जाऐ।अब लोटे मे जल ले उसमेँ गुलाब जल व गंगा जल मिला कर 

विनयोग करेँॐ अस्य श्री अर्पणा अप्सरा मंत्रस्य कामदेव ऋषि पंक्ति छंद काम क्रिडेश्वरी देवता सं सौन्दर्य बीजं कं कामशक्ति अं कीलकं श्री अर्पणाप्सरा सिध्दयर्थं रति सुख प्रदाय प्रिया रुपेण सिद्धनार्थमंत्र जपे विनयोगःन्यास/करन्यासॐअद्वितीयसौँदर्यनमः शिरषिॐकामक्रिड़ासिध्दायैनमःमुखेॐआलिंगनसुखप्रदायैनमः ह्रिदीॐदेहसुखप्रदायैनमः गुह्योॐआजन्मप्रियायैनमः पादयोॐमनोवांछितकार्यसिद्धायै नमः करसंपुटेॐ दरिद्रनाशय विनियोगायैनमः सरवांगेॐसुभगायै अंगुष्ठाभ्यां नमःॐसौन्दर्यायै तर्जनीभ्यां नमःॐरतिसुखप्रदाय मध्यमाभ्यां नमःॐदेहसुखप्रदाय अनामिकाभ्याम नमःॐ भोगप्रदाय कनिष्ठाभ्यां नमःॐ आजन्मप्रणयप्रदायै करतलपृष्ठाभ्यांनमःध्यानहेमप्रकारमध्ये सुरविटपटले रत्नपीठाधिरुढांयक्षीँ बालां स्मरामः परिमल कुसुमोद्भासिधम्मिल्लभाराम पीनोत्तुंग स्तननाढ्य कुवलयनयनां रत्नकांचीकराभ्यां भ्राम द्भक्तोत्पलाभ्यां नवरविवसनां रक्तभूषांगरागाम्रात्री

 काल मेँ मन मे प्रेमिकासे मिलने का भाव रख कर 11 शंख की माला से जाप करेँ। 5 माला पूर्ण हो जाने पर पर प्रमाव प्रत्यक्ष होने लगता हैनाना प्रकार की क्रिडा अप्सरा द्वारा की जाती है विचलित हुए बिना जप पूर्ण हो जाए तो वचन हरा लेँ।@विशेषसाधना से एक दिन पूर्व ही साधना कक्ष को साफ कर लेना चाहिए अर्धरात्री से मौन रखे कर अकले दिन रात मेँ साधना से पूर्व मौन खत्म होता है व्यसन कामुकता पूर्णतः वर्जित है। साधना से पूर्व गुरु,गणेश,शिव,इष्ट पूजन आवश्यक है आसन शुद्धी माला संस्करण आसन जाप आदी कर लेना चाहिए ताकी साधना की सफलता की संभावना बनी रहे ये सभी साधनाओँ का आधार होते है@भाव की प्रधानतायह साधना काम भाव की है अर्थ ये नही की आप कामुक भाव से करे। भाव ये है की एक प्रेमी अपनी प्रेयसी के प्रेम मे व्याकुल उसे पुकार रहा है। 

नोट- ये साधना एक दिवसी अवश्य है परन सरल नहि सात्विक्ता से रह कर, मौन रह कर, काम क्रोध लोभ मोह त्याग कर, मनको शांत रख कर ही आप साधना मे अपनी सफलता की संभावना को बढा सकतेँ है सामग्री को बदला जाए या इनके विकल्पो का प्रयोग करना वर्जित है।।याद रखे गाण्डिवधारी अर्जुन जैसा धनुर्धर खुद को अप्सरा के श्राप से नहि बचा पाया था। अतः किसी भी साधना या शक्ती को सहज न समझेँ। देवराज इन्द्र द्वारा इन्हे साधना भंग करने हेतु पहुँचाया जाता रहा अतः ये इस कार्य मे निपुण होतीँ है अतः साधक विचलित न हो ये आवश्यक है।