Sunday, March 22, 2015


हनुमान  पञ्च- रत्न  स्त्रोतम 
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वीताखिल-विषयेच्छं जातानन्दाश्रु-फुलकमत्यच्छं
सीतापति-दूताद्यं वातात्मजमद्य भावये हृदयम् ॥ 1

तरुणारुण-मुखकमलं करुणारस-पूर-पूरितापाङ्गं
संजीवनमाशासे मञ्जुल-महिमानं-अन्जनाभाग्यम् ॥ 2

शंबरवैरि-शरातिगं-अम्बुजदल-वपुललोचनोदारं
कंबुगलं-अनिलदिष्टं बिम्बज्वलितोष्टं-एकमवलम्बे ॥ 3

दूरीकृतसीतार्तिः प्रकटीकृतराम-वैभवस्फूर्तिः
दारित-दशमुख-कीर्तिः पुरतो मम भातु हनुमतो मूर्तिः ॥ 4

वानर-निकराध्यक्षं दानवकुल-कुमुदरविकर-सदृशम्
दीनजनावनदीक्षं पवन-तपः-पापपुञ्जकं-अद्राक्षम् ॥ 5

फल -श्रुति 

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एतत्पवनसुतस्य स्तोत्रं यः पठति पञ्चरत्नाख्यं
चिरमिह निखिलान् भोगान् भुक्त्वा श्रीरामभक्ति-
भाग्भवति ॥


प्रेषक :- रमेश  दुबे  " पंडित "



Thursday, March 19, 2015

नवरात्री   पर   विशेष  :-

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A - गोमती चक्र
1. अगर किसी का व्यापार न चल रहा हो या व्यापार को कोई नजर लग गई हो या व्यापार में कोई परेशानी बार बार आ रही हो तो अपने व्यापार कि चोखट पर ११ गोमती चक्र एवं ३ लघु नारियल सिद्ध करके शुभ महुर्त में किसी लाल कपड़े में बांध कर टांग दें व् उस पर लाल कामिया सिंदूर का तिलक कर दें ध्यान रखे ग्राहक उस के निचे से निकले बस कुछ ही दिनों में आप का व्यापार तरकी पर होगा

2. व्यवसाय स्थान पर पीतल के लोटे में जल रखा जाये और साथ गोमती चक्र उसके अन्दर डालकर खुला रखा जाये तथा जिस स्थान पर व्यापारी की बैठक है उसके दक्षिण-पश्चिम दिशा में इसे ऊपर की तरफ़ स्थापित करने के बाद रखा जाये सुबह को उस लोटे से सभी गोमती चक्र को निकाल कर उस पानी को व्यसाय स्थान के बाहर छिडक दिया जाये और नया पानी भरकर फ़िर से गोमती चक्र डालकर रख दिया जाये तो व्यवसाय में बारह दिन के अन्दर ही फ़र्क मिलना शुरु हो जाता है।

3. व्यापर स्थान पर ग्यारह सिद्ध गोमती चक्र और एक ९ मुखी रुद्राक्ष लाल कपड़े में बांध कर धन रखने वाले स्थान पर रख दे तो व्यापर में बढ़ोतरी होती जाएगी।

B - हत्था जोड़ी
प्राण प्रतिष्ठित की हुई हत्था जोड़ी लेकर मंगलवार के दिन लाल सिंदूर में डालकर पूजा स्थल पर रख दें. और प्रतिदिन संध्या में घी का दीपक जलाकर इस मंत्र का जाप करें. व्यापारी अपने तिजोरी में रखें।

मंत्र - ह्रीं ऐश्वर्य श्रीं धन धान्याधिपत्यै ऐं पूर्णत्य
लक्ष्मी सिद्धये नमः

C - सियार सिंगी
सिद्ध सियार सिंगी के जोड़े को व्यापर स्थल में स्थापित करने से समुचित धन लाभ होता है किन्तु ये व्यक्ति की गृह दशा से भी प्रभावित होती है और ऐसे में कभी कभी लाभ नहीं देती।
यदि ऐसा हो तो सियार सिंगी को शमी और नागदोन की जड़ के साथ व्यापर स्थल में स्थापित करें। नित्य धूप दें। कुछ ही दिनों में असर दिखने लगेगा।

D- इंद्रजाल
दुकान व्यापार स्थल के दक्षिण दिशा में लगाने से व्यापार में उन्नति होती है और दुश्मनों प्रतिद्वंदियों द्वारा किये कराये के असर से बचाव होता है।

E- मोती शंख
- किसी शुभ नक्षत्र या दीपावली में मोती शंख को घर में स्थापित कर रोज

श्री महालक्ष्मै नम:

108 बार बोलकर 1-1 चावल का दाना शंख में भरते रहें। इस प्रकार 11 दिन तक करें। बाद में शंख और चावल एक लाल कपड़े की पोटली बनाकर तिजोरी या रूपये गहने आदि रखने के स्थान पर रख दें। यह प्रयोग करने से आर्थिक तंगी समाप्त हो जाती है।
यदि गुरु पुष्य योग में मोती शंख को कारखाने में स्थापित किया जाए तो कारखाने में तेजी से आर्थिक उन्नति होती है।
व्यापार घाटे में हो तो धन स्थान पर मोतीशंख रखने से अर्थ लाभ होता है।

F- सहदेवी
. धन-धान्य-व्यापार वृद्धि के लिए :-
A. विधिवत सिद्ध की हुई जड़ को लाल वस्त्र में लपेट कर तिजोरी मे रखने से अभीष्ट धन-वृद्धि होती है l
B . दुकान या व्यापारिक प्रतिष्ठान के प्रवेश द्वार के ऊपर लाल वस्त्र में लघु नारियल के साथ अभिमंत्रित कर भीतर की और लटकने से व्यापार में उन्नति होती है।

G- काली हल्दी
1 किसी की जन्मपत्रिका में गुरू और शनि पीडि़त है, जिससे धन न रुकता हो या कम धंधा बार बार ठप हो जाता हो तो वह जातक यह उपाय करें- शुक्लपक्ष के प्रथम गुरूवार से नियमित रूप से काली हल्दी पीसकर तिलक लगाने से ये दोनों ग्रह शुभ फल देने लगेंगे।
2 . यदि किसी के पास धन आता तो बहुत है किन्तु टिकता नहीं है, उन्हे यह उपाय अवश्य करना चाहिए। शुक्लपक्ष के प्रथम शुक्रवार को चांदी की डिब्बी में काली हल्दी, नागकेशर व सिन्दूर को साथ में रखकर मां लक्ष्मी के चरणों से स्पर्श करवा कर धन रखने के स्थान पर रख दें। यह उपाय करने से धन रूकने लगेगा।
3 . यदि आपके व्यवसाय में निरन्तर गिरावट आ रही है, तो शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरूवार को पीले कपड़े में काली हल्दी, 11 अभिमंत्रित गोमती चक्र, चांदी का सिक्का व 11 अभिमंत्रित धनदायक कौड़ियां बांधकर 108 बार
ऊँ नमो भगवते वासुदेव नमः
का जाप कर धन रखने के स्थान पर रखने से व्यवसाय में प्रगतिशीलता आ जाती है।
4 . यदि आपका व्यवसाय मशीनों से सम्बन्धित है, और आये दिन कोई मॅहगी मशीन आपकी खराब हो जाती है, तो आप काली हल्दी को पीसकर केशर व गंगा जल मिलाकर प्रथम बुधवार को उस मशीन पर स्वास्तिक बना दें। यह उपाय करने से मशीन जल्दी खराब नहीं होगी।

H- दक्षिणावर्ती शंख
- विधिवत सिद्ध दक्षिणावर्ती शंख को व्यापारिक संसथान में स्थापित करने से ग्राहकों की कभी कमी नहीं होती और व्यापार दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करता है।
- इसमें रात्रि में गंगाजल मिश्रित दूध भर कर सुबह व्यापारिक प्रतिष्ठान में बाहर से भीतर की ओर छिड़कते हुए जाने से धंधे को किसी भी पडोसी या प्रतिद्वंदी की नज़र नहीं लगती, किसी भी प्रकार का तंत्र मंत्र द्वारा किया गया व्यापार बंध निष्फल हो जाता है।

I - डाब / कुश का बाँदा
किसी शुभ नक्षत्र या विशेषतः भरणी नक्षत्र में इसे प्राप्त कर विधि विधान श्री सुक्त या लक्ष्मी मंत्र से पूजन कर घर की या दुकान की तिजोरी में रखने से दुकान के द्वार के भीतरी ओर लटकाने से धन में वृद्धि होती है ग्राहकों का आवक बनी रहती है और धन चक्र उत्तम गति से चलता है।

J- श्वेतार्क गणपति
जिनके पास धन न रूकता हो या कमाया हुआ पैसा उल्टे सीधे कामोँ मेँ जाता हो उन्हेँ अपने घर मेँ श्वेतार्क गणपति की स्थापना करनी चाहिए।
जो लोग कर्ज मेँ डूबे हैँ उनके लिए कर्ज मुक्ति का इससे सरल अन्य कोई उपाय नही है।
दुकान में अलमारी या गल्ले में रखने से धनागम सुचारू रूप से चलता रहता है और व्यापर में न तो मंदी आती है न किसी विरोधी की बुरी नज़र या किये कराये का असर होता है।

K- जल कुम्भी
यदि व्यापर मंदा हो तो शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार को जल कुम्भी (तालाबों में उगने वाली बेल) करीब डेढ़ फुट लम्बी लाकर स्वछ जल से धोकर एक चौकी पर पिला वस्त्र बिछकर स्थापित करे। लक्ष्मी स्वरुप मानकर उसका विधिवत पूजन करे चन्दन रोली अर्पित करें अक्षत चढ़ाएं लौंग इलायची चढ़ाएं और सवा पाव चावल , ३ हल्दी की गांठ और 7 कमल गट्टे के बीज की ढेरी के साथ लपेट कर उसे उत्तर दिशा में लटका दें। नित्य धुप दें परन्तु बार बार खोलकर न देखे।
कुछ ही दिनों में आर्थिक स्थिरता आने लगेगी.

L - नवग्रह की समिधा
नवग्रह की स्समिधा लाकर उनका पूजन कर प्रतेक गृह के बीज मन्त्रों का २१ बार जप करें और उन्हें एक सफ़ेद वस्त्र में लपेट कर अपनी दुकान के मंदिर में स्थापित करें। इससे यदि ग्रहों के दुष्प्रभाव से व्यापर में मंडी आ रही होगी तो लाभ मिलेगा।

रमेश  दुबे  .......................  ९४१७० ४७३७४ .................

Friday, March 6, 2015

** बजरंग  बाण  का अमोघ - विलक्षण प्रयोग 


ये है बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग:-
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भौतिक मनोकामनाओं की पुर्ति के लिये बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग

* आप अपने इष्ट कार्य की सिद्धि के लिए मंगल अथवा शनिवार का दिन चुन लें। हनुमानजी का एक चित्र या मूर्ति जप करते समय सामने रख लें। ऊनी अथवा कुशासन बैठने के लिए प्रयोग करें। अनुष्ठान के लिये शुद्ध स्थान तथा शान्त वातावरण आवश्यक है। घर में यदि यह सुलभ न हो तो कहीं एकान्त स्थान अथवा एकान्त में स्थित हनुमानजी के मन्दिर में प्रयोग करें।

* हनुमान जी के अनुष्ठान मे अथवा पूजा आदि में दीपदान का विशेष महत्त्व होता है। पाँच अनाजों (गेहूँ, चावल, मूँग, उड़द और काले तिल) को अनुष्ठान से पूर्व एक-एक मुट्ठी प्रमाण में लेकर शुद्ध गंगाजल में भिगो दें। अनुष्ठान वाले दिन इन अनाजों को पीसकर उनका दीया बनाएँ। बत्ती के लिए अपनी खुद की लम्बाई के बराबर कलावे का एक तार लें अथवा एक कच्चे सूत को लम्बाई के बराबर काटकर लाल रंग में रंग लें। इस धागे को पाँच बार मोड़ लें। इस प्रकार के धागे की बत्ती को सुगन्धित तिल के तेल में डालकर प्रयोग करें। समस्त पूजा काल में यह दिया जलता रहना चाहिए। हनुमानजी के लिये गूगुल की धूनी की भी व्यवस्था रखें।

* जप के प्रारम्भ में यह संकल्प अवश्य लें कि आपका कार्य जब भी होगा, हनुमानजी के निमित्त नियमित कुछ भी करते रहेंगे।यदि आप परिवार के किसी और व्यक्ति के लिए कर रहे है तब संकल्प में उस व्यक्ति के नाम से संकल्प ले कि " में अमुक व्यक्ति के अमुक कार्य हेतु इस प्रयोग को कर रहा हूँ ."

* अब शुद्ध उच्चारण से हनुमान जी की छवि पर ध्यान केन्द्रित करके बजरंग बाण का जाप प्रारम्भ करें। “श्रीराम–” से लेकर “–सिद्ध करैं हनुमान” तक एक बैठक में ही इसकी एक माला जप करनी है।

* गूगुल की सुगन्धि देकर जिस घर में बगरंग बाण का नियमित पाठ होता है, वहाँ दुर्भाग्य, दारिद्रय, भूत-प्रेत का प्रकोप और असाध्य शारीरिक कष्ट आ ही नहीं पाते। समयाभाव में जो व्यक्ति नित्य पाठ करने में असमर्थ हो, उन्हें कम से कम प्रत्येक मंगलवार को यह जप अवश्य करना चाहिए।

बजरंग बाण ध्यान
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श्रीराम
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अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं।
दनुज वन कृशानुं, ज्ञानिनामग्रगण्यम्।।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं।
रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।।

दोहा
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निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।

चौपाई
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जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।।
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै।।
जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा।।
बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा।।
अक्षय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।।
लाह समान लंक जरि गई। जै जै धुनि सुर पुर में भई।।
अब विलंब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होई दुख करहु निपाता।।
जै गिरधर जै जै सुख सागर। सुर समूह समरथ भट नागर।।
ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले। वैरहिं मारू बज्र सम कीलै।।
गदा बज्र तै बैरिहीं मारौ। महाराज निज दास उबारों।।
सुनि हंकार हुंकार दै धावो। बज्र गदा हनि विलम्ब न लावो।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीसा।।
सत्य होहु हरि सत्य पाय कै। राम दुत धरू मारू धाई कै।।
जै हनुमन्त अनन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत है दास तुम्हारा।।
वन उपवन जल-थल गृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।
पाँय परौं कर जोरि मनावौं। अपने काज लागि गुण गावौं।।
जै अंजनी कुमार बलवन्ता। शंकर स्वयं वीर हनुमंता।।
बदन कराल दनुज कुल घालक। भूत पिशाच प्रेत उर शालक।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बैताल वीर मारी मर।।
इन्हहिं मारू, तोंहि शमथ रामकी। राखु नाथ मर्याद नाम की।।
जनक सुता पति दास कहाओ। ताकी शपथ विलम्ब न लाओ।।
जय जय जय ध्वनि होत अकाशा। सुमिरत होत सुसह दुःख नाशा।।
उठु-उठु चल तोहि राम दुहाई। पाँय परौं कर जोरि मनाई।।
ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमंता।।
ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल दल।।
अपने जन को कस न उबारौ। सुमिरत होत आनन्द हमारौ।।
ताते विनती करौं पुकारी। हरहु सकल दुःख विपति हमारी।।
ऐसौ बल प्रभाव प्रभु तोरा। कस न हरहु दुःख संकट मोरा।।
हे बजरंग, बाण सम धावौ। मेटि सकल दुःख दरस दिखावौ।।
हे कपिराज काज कब ऐहौ। अवसर चूकि अन्त पछतैहौ।।
जन की लाज जात ऐहि बारा। धावहु हे कपि पवन कुमारा।।
जयति जयति जै जै हनुमाना। जयति जयति गुण ज्ञान निधाना।।
जयति जयति जै जै कपिराई। जयति जयति जै जै सुखदाई।।---------------------