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द्वितीय स्वरूप -- ब्रम्ह्चारिणी
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दुर्गा का द्वितीय रूपी ब्रह्मचारिणी हैं। यहाँ ब्रह्मचारिणी का तात्पर्य तपश्चारिणी है। इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप से प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। अतः ये तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से विख्यात हैं। नवरात्रि के द्वितीय दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। इनकी उपासना से मनुष्य के तप, त्याग, वैराग्य सदाचार, संयम की वृद्घि होती है तथा मन कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होता।
दधानापरपद्माभ्यामक्षमालाककमण्डलम्।
देवी प्रसीदतुमयिब्रह्मचारिणयनुत्तमा॥
भगवती दुर्गा की नौ शक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है।
ब्रह्मा का अर्थ है तपस्या। तप का आचरण करने वाली
भगवती जिस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया।
वेदस्तत्वंतपो ब्रह्म, वेद, तत्व और ताप ब्रह्मा अर्थ है।
ध्यान:-
=====
वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलुधरांब्रह्मचारिणी शुभाम्।
गौरवर्णास्वाधिष्ठानस्थितांद्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधानांब्रह्मरूपांपुष्पालंकारभूषिताम्।
पदमवंदनांपल्लवाधरांकातंकपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखींनिम्न नाभिंनितम्बनीम्।।
ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है।
इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हाथ में कमंडल रहता है।
स्तोत्र:-
=====
तपश्चारिणीत्वंहितापत्रयनिवारणीम्।
ब्रह्मरूपधराब्रह्मचारिणींप्रणमाम्यहम्।।
नवचग्रभेदनी त्वंहिनवऐश्वर्यप्रदायनीम्।
धनदासुखदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रियात्वंहिभुक्ति-मुक्ति दायिनी
शांतिदामानदाब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्।
कवच:-
=====
त्रिपुरा मेहदयेपातुललाटेपातुशंकरभामिनी
अर्पणासदापातुनेत्रोअधरोचकपोलो॥
पंचदशीकण्ठेपातुमध्यदेशेपातुमाहेश्वरी
षोडशीसदापातुनाभोगृहोचपादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातुब्रह्मचारिणी॥
भगवती ब्रह्मचारिणी का ध्यान, स्तोत्र और कवच का पाठ करने से स्वाधिष्ठान चक्र जाग्रत होता है।
जिससे मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य सदाचार संयम की वृद्धि होती है।
"ब्रह्मचारिणी स्तुति"
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त्रिपुरां त्रिर्गुणाधारां मार्गज्ञानस्वरूपिणीम् ।
त्रैलोक्यवन्दितां देवीं त्रिमूर्ति प्रणमाम्यहम् ॥
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द्वितीय स्वरूप -- ब्रम्ह्चारिणी
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दुर्गा का द्वितीय रूपी ब्रह्मचारिणी हैं। यहाँ ब्रह्मचारिणी का तात्पर्य तपश्चारिणी है। इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप से प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। अतः ये तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से विख्यात हैं। नवरात्रि के द्वितीय दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। इनकी उपासना से मनुष्य के तप, त्याग, वैराग्य सदाचार, संयम की वृद्घि होती है तथा मन कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होता।
दधानापरपद्माभ्यामक्षमालाककमण्डलम्।
देवी प्रसीदतुमयिब्रह्मचारिणयनुत्तमा॥
भगवती दुर्गा की नौ शक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है।
ब्रह्मा का अर्थ है तपस्या। तप का आचरण करने वाली
भगवती जिस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया।
वेदस्तत्वंतपो ब्रह्म, वेद, तत्व और ताप ब्रह्मा अर्थ है।
ध्यान:-
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वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलुधरांब्रह्मचारिणी शुभाम्।
गौरवर्णास्वाधिष्ठानस्थितांद्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधानांब्रह्मरूपांपुष्पालंकारभूषिताम्।
पदमवंदनांपल्लवाधरांकातंकपोलांपीन पयोधराम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखींनिम्न नाभिंनितम्बनीम्।।
ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है।
इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हाथ में कमंडल रहता है।
स्तोत्र:-
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तपश्चारिणीत्वंहितापत्रयनिवारणीम्।
ब्रह्मरूपधराब्रह्मचारिणींप्रणमाम्यहम्।।
नवचग्रभेदनी त्वंहिनवऐश्वर्यप्रदायनीम्।
धनदासुखदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रियात्वंहिभुक्ति-मुक्ति दायिनी
शांतिदामानदाब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्।
कवच:-
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त्रिपुरा मेहदयेपातुललाटेपातुशंकरभामिनी
अर्पणासदापातुनेत्रोअधरोचकपोलो॥
पंचदशीकण्ठेपातुमध्यदेशेपातुमाहेश्वरी
षोडशीसदापातुनाभोगृहोचपादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातुब्रह्मचारिणी॥
भगवती ब्रह्मचारिणी का ध्यान, स्तोत्र और कवच का पाठ करने से स्वाधिष्ठान चक्र जाग्रत होता है।
जिससे मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य सदाचार संयम की वृद्धि होती है।
"ब्रह्मचारिणी स्तुति"
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त्रिपुरां त्रिर्गुणाधारां मार्गज्ञानस्वरूपिणीम् ।
त्रैलोक्यवन्दितां देवीं त्रिमूर्ति प्रणमाम्यहम् ॥
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