Sunday, June 29, 2014






मन्त्र रामायण


मानस के मन्त्र
१॰ प्रभु की कृपा पाने का मन्त्र
"मूक होई वाचाल, पंगु चढ़ई गिरिवर गहन।
जासु कृपा सो दयाल, द्रवहु सकल कलिमल-दहन।।"

विधि-प्रभु राम की पूजा करके गुरूवार के दिन से कमलगट्टे की माला पर २१ दिन तक प्रातः और सांय नित्य एक माला (१०८ बार) जप करें।
लाभ-प्रभु की कृपा प्राप्त होती है। दुर्भाग्य का अन्त हो जाता है।

२॰ रामजी की अनुकम्पा पाने का मन्त्र
"बन्दउँ नाम राम रघुबर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को।।"

विधि-रविवार के दिन से रुद्राक्ष की माला पर १००० बार प्रतिदिन ४० दिन तक जप करें।
लाभ- निष्काम भक्तों के लिये प्रभु श्रीराम की अनुकम्पा पाने का अमोघ मन्त्र है।

३॰ हनुमान जी की कृपा पाने का मन्त्र
"प्रनउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानधन।
जासु ह्रदय आगार बसहिं राम सर चाप धर।।"

विधि- भगवान् हनुमानजी की सिन्दूर युक्त प्रतिमा की पूजा करके लाल चन्दन की माला से मंगलवार से प्रारम्भ करके २१ दिन तक नित्य १००० जप करें।
लाभ- हनुमानजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। अला-बला, किये-कराये अभिचार का अन्त होता है।

४॰ वशीकरण के लिये मन्त्र
"जो कह रामु लखनु बैदेही। हिंकरि हिंकरि हित हेरहिं तेहि।।"

विधि- सूर्यग्रहण के समय पूर्ण 'पर्वकाल' के दौरान इस मन्त्र को जपता रहे, तो मन्त्र सिद्ध हो जायेगा। इसके पश्चात् जब भी आवश्यकता हो इस मन्त्र को सात बार पढ़ कर गोरोचन का तिलक लगा लें।
लाभ- इस प्रकार करने से वशीकरण होता है।

५॰ सफलता पाने का मन्त्र
"प्रभु प्रसन्न मन सकुच तजि जो जेहि आयसु देव।
सो सिर धरि धरि करिहि सबु मिटिहि अनट अवरेब।।"

विधि- प्रतिदिन इस मन्त्र के १००८ पाठ करने चाहियें। इस मन्त्र के प्रभाव से सभी कार्यों में अपुर्व सफलता मिलती है।
६॰ रामजी की पूजा अर्चना का मन्त्र
"अब नाथ करि करुना, बिलोकहु देहु जो बर मागऊँ।
जेहिं जोनि जन्मौं कर्म, बस तहँ रामपद अनुरागऊँ।।"

विधि- प्रतिदिन मात्र ७ बार पाठ करने मात्र से ही लाभ मिलता है।
लाभ- इस मन्त्र से जन्म-जन्मान्तर में श्रीराम की पूजा-अर्चना का अधिकार प्राप्त हो जाता है।

७॰ मन की शांति के लिये राम मन्त्र
"राम राम कहि राम कहि। राम राम कहि राम।।"

विधि- जिस आसन में सुगमता से बैठ सकते हैं, बैठ कर ध्यान प्रभु श्रीराम में केन्द्रित कर यथाशक्ति अधिक-से-अधिक जप करें। इस प्रयोग को २१ दिन तक करते रहें।
लाभ- मन को शांति मिलती है।

८॰ पापों के क्षय के लिये मन्त्र
"मोहि समान को पापनिवासू।।"

विधि- रुद्राक्ष की माला पर प्रतिदिन १००० बार ४० दिन तक जप करें तथा अपने नाते-रिश्तेदारों से कुछ सिक्के भिक्षा के रुप में प्राप्त करके गुरुवार के दिन विष्णुजी के मन्दिर में चढ़ा दें।
लाभ- मन्त्र प्रयोग से समस्त पापों का क्षय हो जाता है।

९॰ श्रीराम प्रसन्नता का मन्त्र
"अरथ न धरम न काम रुचि, गति न चहउँ निरबान।
जनम जनम रति राम पद यह बरदान न आन।।"

विधि- इस मन्त्र को यथाशक्ति अधिक-से-अधिक संख्या में ४० दिन तक जप करते रहें और प्रतिदिन प्रभु श्रीराम की प्रतिमा के सन्मुख भी सात बार जप अवश्य करें।
लाभ- जन्म-जन्मान्तर तक श्रीरामजी की पूजा का स्मरण रहता है और प्रभुश्रीराम प्रसन्न होते हैं।

१०॰ संकट नाशन मन्त्र
"दीन दयाल बिरिदु सम्भारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।"

विधि- लाल चन्दन की माला पर २१ दिन तक निरन्तर १०००० बार जप करें।
लाभ- विकट-से-विकट संकट भी प्रभु श्रीराम की कृपा से दूर हो जाते हैं।

११॰ विघ्ननाशक गणेश मन्त्र
"जो सुमिरत सिधि होइ, गननायक करिबर बदन।
करउ अनुग्रह सोई बुद्धिरासी सुभ गुन सदन।।"

विधि- गणेशजी को सिन्दूर का चोला चढ़ायें और प्रतिदिन लाल चन्दन की माला से प्रातःकाल १०८० (१० माला) इस मन्त्र का जाप ४० दिन तक करते रहें।
लाभ- सभी विघ्नों का अन्त होकर गणेशजी का अनुग्रह प्राप्त होता है।

Friday, June 27, 2014

नक्षत्र   से  स्वभाव निर्धारण 
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नक्षत्र संख्‍या में 27 हैं और एक राशि ढाई नक्षत्र से बनती है। नक्षत्र भी जातक का स्वभाव निर्धारित करते हैं।
1. अश्विनी : बौद्धिक प्रगल्भता, संचालन शक्ति, चंचलता व चपलता इस जातक की विशेषता होती है। 
2. भरणी : स्वार्थी वृत्ति, स्वकेंद्रित होना व स्वतंत्र निर्णय लेने में समर्थ न होना इस नक्षत्र के जातकों में दिखाई देता है।
3. कृतिका : अति साहस, आक्रामकता, स्वकेंद्रित, व अहंकारी होना इस नक्षत्र के जातकों का स्वभाव है। इन्हें शस्त्र, अग्नि और वाहन से भय होता है।
4. रोहिणी : प्रसन्न भाव, कलाप्रियता, मन की स्वच्छता व उच्च अभिरुचि इस नक्षत्र की विशेषता है।
5. मृगराशि : बु्द्धिवादी व भोगवादी का समन्वय, तीव्र बुद्धि होने पर भी उसका उपयोग सही स्थान पर न होना इस नक्षत्र की विशेषता है।
6. आर्द्रा : ये जातक गुस्सैल होते हैं। निर्णय लेते समय द्विधा मन:स्थिति होती है, संशयी स्वभाव भी होता है।

7. पुनर्वसु : आदर्शवादी, सहयोग करने वाले व शांत स्वभाव के व्यक्ति होते हैं। आध्‍यात्म में गहरी रुचि होती है।
8. अश्लेषा : जिद्‍दी व एक हद तक‍ अविचारी भी होते हैं। सहज विश्वास नहीं करते व 'आ बैल मुझे मार' की तर्ज पर स्वयं संकट बुला लेते हैं।
9. मघा : स्वाभिमानी, स्वावलंबी, उच्च महत्वाकांक्षी व सहज नेतृत्व के गुण इन जातकों का स्वभाव होता है। 
10. पूर्वा : श्रद्धालु, कलाप्रिय, रसिक वृत्ति व शौकीन होते हैं। 
11. उत्तरा : ये संतुलित स्वभाव वाले होते हैं। व्यवहारशील व अत्यंत परिश्रमी होते हैं। 
12. हस्त : कल्पनाशील, संवेदनशील, सुखी, समाधानी व सन्मार्गी व्यक्ति इस नक्षत्र में जन्म लेते हैं।

13. चित्रा : लिखने-पढ़ने में रुचि, शौकीन मिजाजी, भिन्न लिंगी व्यक्तियों का आकर्षण इन जातकों में झलकता है।
14. स्वा‍ति : समतोल प्रकृति, मन पर नियंत्रण, समाधानी वृत्ति व दुख सहने व पचाने की क्षमता इनका स्वभाव है।
15. विशाखा : स्वार्थी, जिद्‍दी, हेकड़ीखोर व्यक्ति होते हैं। हर तरह से अपना काम निकलवाने में माहिर होते हैं।

16. अनुराधा : कुटुंबवत्सल, श्रृंगार प्रिय, मधुरवाणी, सन्मार्गी, शौकीन होना इन जातकों का स्वभाव है। 
17. ज्येष्ठा : स्वभाव निर्मल, खुशमिजाज मगर शत्रुता को न भूलने वाले, छिपकर वार करने वाले होते हैं। 
18. मूल : प्रारंभिक जीवन कष्टकर, परिवार से दुखी, राजकारण में यश, कलाप्रेमी-कलाकार होते हैं। 

19. पूर्वाषाढ़ा : शांत, धीमी गति वाले, समाधानी व ऐश्वर्य प्रिय व्यक्ति इस नक्षत्र में जन्म लेते हैं। 
20. उत्तराषाढ़ा : विनयशील, बुद्धिमान, आध्यात्म में रूचि वाले होते हैं। सबको साथ लेकर चलते हैं।
21. श्रवण : सन्मार्गी, श्रद्धालु, परोपकारी, कतृत्ववान होना इन जातकों का स्वभाव है। 

22. धनिष्ठा : गुस्सैल, कटुभाषी व असंयमी होते हैं। हर वक्त अहंकार आड़े आता है।
23. शततारका : रसिक मिजाज, व्यसनाधीनता व कामवासना की ओर अधिक झुकाव होता है। समयानुसार आचरण नहीं करते।
24. पुष्य : सन्मर्गी, दानप्रिय, बुद्धिमान व दानी होते हैं। समाज में पहचान बनाते हैं। 

25. पूर्व भाद्रपदा : बुद्धिमान, जोड़-तोड़ में निपुण, संशोधक वृत्ति, समय के साथ चलने में कुशल होते हैं। 
26. उत्तरा भाद्रपदा : मोहक चेहरा, बातचीत में कुशल, चंचल व दूसरों को प्रभावित करने की शक्ति रखते हैं। 
27. रेवती : सत्यवादी, निरपेक्ष, विवेकवान होते हैं। सतत जन कल्याण करने का ध्यास इनमें होता है।

Wednesday, June 18, 2014



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कौन  सी  राशि  आपकी  राशि  के अनुकूल  रहेगी 
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नाम के अक्षर -अकारक राशि -नाम अक्षर :
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1. मेष - सिंह, मीन म,टी,मी,म,दे,दू,दो तुला,कुम्भ रे,रो,ता,ती,सा,सी
2. वृषभ - मकर, कुम्भ खा,खी,गा,गी कर्क,धनु हे,हो,डा,ये,यो,भा
3. मिथुन- वृषभ, तुला ओ,वा,वी वू,रे रो, मेष,वृश्चिक चू,चे,ल,ना,नी
4. कर्क - मेष, मीन चू,चे,ल,दे दो मिथुन,तुला कु,प,ड,रा,रे
5. सिंह - मेष, वृश्चिक चू,चे,ल,ना,नी मिथुन,वृषभ कु,प,ड,वा,वी
6. कन्या - मकर, कुम्भ खी,खु,ग,गी.सा मेष,धनु चू,चे,ल,ये, यो
7. तुला- मकर, वृषभ खी,खू,ओ,वा,वी कर्क,सिंह,मीन ह,ड,म,दे दो,चा
8. वृश्चिक - कर्क, धनु, सिंह हू,हे,ड,खा,म,मी तुला,मिथुन रा,रे,कु,प,ड
9. धनु - मेष, सिंह चू,चे,ल,मा,मी मिथुन,कन्या कु,प,ड,प,पा
10. मकर - वृषभ, तुला आ,वी,वू,रा,रे कर्क,मीन हे हो ड, दे दो
11. कुम्भ - वृषभ, वृश्चिक आ,वी,वू,ना,नी कर्क,धनु हे हो ड,ये,यो
12. मीन - मेष, कर्क चू,चे,चो,हे,हो मिथुन,सिंह कु,प,ड,मा,मी
जानिए ग्रहों के मित्र और शत्रु :
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ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक ग्रह का अधिमित्र, मित्र, सम और शत्रु ग्रह निर्धारित है.
जानिए कुंडली में आप के ऊपर शुभ अथवा अशुभ ग्रहों कि दशा है।
सूर्य : अधिमित्र : चंद्रमा , मित्र : बुध , सम : गुरु, अधिशत्रु : शुक्र और शनि।
चंद्रमा : अधिमित्र : बुध, शुक्र, मित्र : गुरु, शनि, सम : सूर्य, अधिशत्रु : मंगल।
मंगल : मित्र : शनि, सम : सूर्य, चंद्रमा, गुरु, शुक्र अधिशत्रु : बुध।
बुध : अधिमित्र : सूर्य, मित्र: गुरु, सम: चंद्र शुक्र, मंगल अधिशत्रु : शनि।
गुरु : अधिमित्र : मंगल चंद्र , सम: शनि मित्र , सूर्य , अधिशत्रु :शुक्र बुध।
शुक्र : मित्र : गुरु ,सूर्य चंद्र, सम: बुध शनि अधिशत्रु : मंगल।
शनि : मित्र : गुरु, चंद्र मंगल बुध सम: शुक्र , अधिशत्रु :सूर्य ।
राहू : मित्र : गुरु सूर्य चंद्र ,बुध , सम: शनि , अधिशत्रु मंगल।
जानिए ग्रहों की उच्च और नीच की स्थिति :
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प्रत्येक ग्रह किसी एक राशि में निश्चित अंशमान तक उच्च का और उसी अंशमान तक किसी दूसरी राशि में नीच का होता है.
किसी जातक की कुंडली में ग्रहों के उच्च या नीच का होने पर सकारात्मक या नकारत्मक प्रभाव पडता है :
1.सूर्य: सिंह राशि का स्वामी है मेष राशि में उच्च का माना जाता है.तुला राशि में नीच का होता है।
2. मंगल: मेष तथा वृश्चिक राशियों का स्वामी है.मकर राशि में उच्च का तथा कर्क राशि में नीच का माना जाता है।
3.चंद्रमा: यह कर्क राशि का स्वामी है वृष राशि में शुभ और वृश्चिक राशि में अशुभ का होता है।
4. बुध: कन्या और मिथुन राशि का स्वामी है, बुध कन्या राशि में उच्च का और मीन राशि में नीच का होता है
5.गुरू: धनु और मीन राशि का स्वामी है ।यह कर्क राशि में उच्च का और मकर राशि में नीच का होता है।
6.शुक्र: वृष और तुला राशि का स्वामी है .मीन राशि में उच्च का और कन्या राशि में नीच का होता है।
7. शनि: कुंभ और मकर में स्वग्रही होता है.तुला में उच्च का और मेष में नीच का होता है।
8. राहू: धनु और वृश्चिक राशि में नीच का होता है, मिथुन राशि में उच्च का।
9. केतु: धनु और वृश्चिक राशि में उच्च का होता है, मिथुन राशि में नीच का।
बृहस्पति   का  कर्क   राशि  में गोचर  फल 
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ज्‍योतिषीय ग्रंथों के अनुसार बृहस्पति नवग्रहों में सबसे शुभ है। यही कारण है कि गोचर में अधिकांश समय बृहस्पति की स्थिति लोगों के लिए शुभ भी बनी रहती है। सामान्यत: बृहस्पति ग्रह लोगों के लिए कष्टकारी नहीं होता। ऊपर से जब बृहस्पति अपनी उच्चावस्था यानी कि कर्क राशि में हो तो लोगों को और भी शुभफल देता है। 19 जून 2014 को देवगुरु बृहस्पति कर्क राशि में प्रवेश करने वाला है। यह 14 जुलाई 2015 तक इसी राशि में रहेगा। इसका विभिन्न राशियों पर क्या असर पड़ेगा, आइए जानते हैं।


बृहस्‍पति के इस गोचर का विभिन्न राशियों पर क्या असर होगा आइए जानते हैं-
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मेष- आप सुख सुविधाओं का लाभ प्राप्त करेंगे। घर परिवार में सुख शांति रहेगी। यदि आप जमीन जायदाद, घर या वाहन खरीदने की सोच रहें है तो आपकी सोच साकार होगी। आप बड़े अधिकारियों और शक्ति सम्पन्न व्यक्तियों के सम्पर्क में आएंगे। आपके मान सम्मान में इजाफ़ा होगा। यदि आप नौकरी या व्यापार में कुछ बदलाव लाने की सोच रहे हैं तो उसके लिए भी समय शुभ है। पदोन्नति की सम्भावनाएं प्रबल हैं। धर्म-कर्म से भी जुड़ाव रहेगा।

वॄषभ- आत्मविश्वास बढ़ेगा। लोग आपके कार्यों की प्रसंशा करेंगे। आपका मान बढ़ेगा। आपका सामाजिक दायरा भी बढ़ेगा। छोटी यात्राएं सफलदायक सिद्ध होंगी। घर परिवार को लेकर आप कोई महत्वपूर्ण कार्य करना चाहेंगे। वैवाहिक जीवन सुखद रहेगा। सहयोगियों और भागीदारों से सहयोग मिलेगा। बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद मिलता रहेगा। लेकिन स्वास्थ्य को लेकर कुछ हद तक सावधान रहना होगा।

मिथुन- बृहस्पति का यह गोचर धन संचय के लिए बहुत अनुकूल रहेगा। आप घर परिवार के हित में खर्चे भी करेंगे। पारिवार में कोई शुभ कृत्य सम्भव हैं। परिवार के सदस्यों की संख्या में बढोत्तरी भी हो सकती है। कला और साहित्य में आपकी रुचि बढ़ेगी। आपकी लोकप्रियता में भी इजाफ़ा होगा। विरोधियों और प्रतिस्पर्धियों को परास्त कर आप अपने क्षेत्र में बेहतर करेंगे।

कर्क- आपका दिमाग पूरी तरह चैतन्य और सकारात्मक सोच वाला रहेगा। अपनी योग्यता के कारण आप विपरीत परिस्थितियों का सामना करने में समर्थ रहेंगे। मन प्रसन्न रहेगा। घर परिवार में सुख शांति बनी रहेगी। परिवार में कोई शुभ संस्कार हो सकता है। आपकी आमदनी में इजाफ़ा होगा। उच्चाधिकारियों से सम्बंध सुधरेंगे। आपके स्वभाव में दार्शनिकता का भाव जागेगा।

सिंह- बारहवें भाव में बृहस्पति के गोचर को अधिक अनुकूल नहीं कहा गया है अत: आपके मन में कुछ असुरक्षा की भावना रह सकती है। कुछ फ़ालतू के कामों में आप उलझना चाहेंगें तो बेहतर यही रहेगा कि सही दिशा का चयन सावधानी पूर्वक करें। विरोधियों के षडयंत्र को पहचाने और समस्याओं का डट कर सामना करें। जहां तक सम्भव हो बेकार की यात्राओं से बचें।

कन्या- बृहस्पति का गोचर आपके लिए अनुकूल रहेगा। उत्साह से भरकर आप कोई नया प्रयास कर सकते हैं जो आपके करिअर को नई दिशा दे सकता है। मित्र और भाई बन्धु भी खुशहाल रहेंगे। यदि आप किसी कम्पटीशन में भाग ले रहे हैं तो यकीन माने सफलता आपके पाले में आती प्रतीत हो रही है। इस अवधि में आपके भीतर दार्शनिकता के भाव जाग सकते हैं। आप कोई साधना आदि करने का विचार कर सकते हैं।

तुला- बृहस्पति का गोचर आपके दशम भाव में है इसलिए बृहस्पति आपके लिए अधिक से अधिक अच्छे फल देना चाहेगा। आप आपने व्यापार व्यवसाय में बहुत अच्छा करेंगे। यदि आप काम धंधें को विस्तार देने की सोच रहे हैं तो उसके लिए समय काफ़ी अनुकूल है। नौकरी में तरक्की होगी। व्यापार और नौकरी के सिलसिले में भ्रमण करने के खूब मौके मिलेंगे। पारिवारिक जीवन भी सुखद रहेगा।

वृश्चिक- आपके भीतर प्रचुर उत्साह और विश्वास जागेगा, जिसके कारण आप सफलता और सम्मान प्राप्त करेंगे। घर परिवार का माहौल शांत और सुखद रहेगा। परिवार में नये सदस्य की बढोत्तरी। लम्बी यात्राओं के माध्यम से भी फ़ायदा होता नजर आ रहा है। आप किसी धार्मिक या सामाजिक क्षेत्र के मुखिया के सम्पर्क में आ सकते हैं। आपका मन योग क्रिया की ओर लग सकता है।

धनु- बृहस्पति का गोचर वश अष्टम भाव में होना अनुकूल नहीं माना गया है अत: मन कुछ हद तक अशांत रह सकता है। अत: कुछ हद तक अस्वस्थता का अनुभव हो सकता है। लेकिन आपका मन कुछ गूढ़ विद्याओं के प्रति आकृष्ट हो सकता है। कहीं से अचानक धन की प्राप्ति हो सकती लेकिन इस समय पूंजी निवेश करना ठीक नहीं होगा। इस समय आत्मनिर्भर रहना ही उचित होगा।

मकर- बृहस्पति का सप्तम भाव में गोचर अनुकूल परिणाम देने वाला माना गया है अत: आपकी आकांक्षाओं की पूर्ति होगी। घर परिवार का माहौल सुखमय होगा। नौकरी और व्यवसाय में भी प्रगति होगी। व्यवधानों का समापन होगा। विद्वानों की संगति मिलेगी। वैवाहिक मामलों में सफलता मिलेगी। मान-सम्मान में वृद्धि और प्रसिद्धि के योग प्रबल होंगे।

कुंभ- छठे भाव में बृहस्पति का गोचर आपको अधिक मेहनत के बाद ही अनुकूल परिणाम मिल पाएंगे। नौकरी पेशा को अधिक मेहनत करनी पड़ सकती है। विवादों से दूर रहें और विरोधियों की रणनीति को बारीकी से समझें। हालांकि मुकदमाबाजी और न्यायालयों के मामलों के लिये यह समय अच्छा है फ़िर भी आत्मनिर्भरता जरूरी होगी।

मीन- बृहस्पति आपको लाभ पहुंचाने का वादा कर रहा है। अत: घर परिवार में शुभ कृत्य का आयोजन हो सकता है। आपका सही निर्णय आपको सफलता दिलाता रहेगा। व्यापार-व्यवसाय में लाभ होगा। नौकरी में सुखद परिवर्तन सम्भव है। मित्र व हितैषी पूरा सहयोग देंगे। सामाजिक दायरा बढे़गा। धार्मिकक्रिया कलापों से जुड़ाव होगा।


Saturday, June 14, 2014

दत्तात्रेय  तंत्र में वशीकरण 
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दत्तात्रेय तंत्र में वशीकरण प्रयोग भगवान् दत्तात्रेय का उपासना तंत्र शीघ्र कामना की सिद्धि करने वाला माना जाता है। भगवान् दत्तात्रेय को अवतार की संज्ञा दी गयी है। कलियुग में अमर और प्रत्यक्ष देवता के रूप में भगवान् दत्तात्रेय सदा प्रशंसित एवं प्रतिष्ठित रहेंगे।

 दत्तात्रेय तंत्र देवाधिदेव महादेव शंकर के साथ महर्षि दत्तात्रेय का एक संवाद पत्र है।

 मोहन प्रयोग तुलसी-बीजचूर्ण तु सहदेव्य रसेन सह। रवौ यस्तिलकं कुर्यान्मोहयेत् सकलं जगत्।।
 तुलसी के बीज के चूर्ण को सहदेवी के रस में पीस कर तिलक के रूप में उसे ललाट पर लगाएं। उससे उसको देखने वाले मोहित हो जाते हैं।

 हरितालं चाश्वगन्धां पेषयेत् कदलीरसे। गोरोचनेन संयुक्तं तिलके लोकमोहनम्।।
 हरताल और असगन्ध को केले के रस में पीस कर उसमें गोरोचन मिलाएं तथा उसका मस्तक पर तिलक लगाएं तो उसको देखने से सभी लोग मोहित हो जाते हैं।

 श्रृङ्गि-चन्दन-संयुक्तो वचा-कुष्ठ समन्वितः। धूपौ गेहे तथा वस्त्रे मुखे चैव विशेषतः।। राजा प्रजा पशु-पक्षि दर्शनान्मोहकारकः। गृहीत्वा मूलमाम्बूलं तिलकं लोकमोहनम्।।
 काकडा सिंगी, चंदन, वच और कुष्ठ इनका चूर्ण बनाकर अपने शरीर तथा वस्त्रों पर धूप देने तथा इसी चूर्ण से तिलक लगाने पर राजा, प्रजा, पशु और पक्षी उसे देखने मात्र से मोहित हो जाते हैं। इसी प्रकार ताम्बूल की जड़ को घिस कर उसका तिलक करने से लोगों का मोहन होता है।

 सिन्दूरं कुङ्कुमं चैव गोरोचन समन्वितम्। धात्रीरसेन सम्पिष्टं तिलकं लोकमोहनम्।।
 सिन्दूर, केशर, और गोरोचन इन तीनों को आंवले के रस में पीसकर तिलक लगाने से लोग मोहित हो जाते हैं।

 सिन्दूरं च श्वेत वचा ताम्बूल रस पेषिता। अनेनैव तु मन्त्रेण तिलकं लोकनोहनम्।।
 सिन्दूर और सफेद वच को पान के रस में पीस कर आगे उद्धृत किये मंत्र से तिलक करें तो लोग मोहित हो जाते हैं।

 अपामार्गों भृङ्गराजो लाजा च सहदेविका। एभिस्तु तिलकं कृत्वा त्रैलोक्यं मोहयेन्नरः।।
 अपामार्ग-ओंगा, भांगरा, लाजा, धान की खोल और सहदेवी इनको पीस कर उसका तिलक करने से व्यक्ति तीनों लोकों को मोहित कर लेता है।

 श्वेतदूर्वा गृहीता तु हरितालं च पेषयेत्। एभिस्तु तिलकं कृत्वा त्रैलोक्यं मोहयेन्नरः।।
 सफेद दूर्वा और हरताल को पीसकर उसका तिलक करने से मनुष्य तीनों लोकों को मोह लेता है।

 मनःशिला च कर्पूरं पेषयेत् कदलीरसे। तिलकं मोहनं नृणां नान्यथा मम भाषितम्।।
 मैनसिल और कपूर को केले के रस में पीस कर तिलक करने से वह मनुष्यों को मोहित करता है।

 अथ कज्जल विधानम्
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 गृहीत्वौदुम्बरं पुष्पं वर्ति कृत्वा विचक्षणैः। नवनीतेन प्रज्वाल्य कज्जलं कारयेन्निशि।। कज्जलं चांजयेन्नेत्रे मोहयेत् सकलं जगत्। यस्मै कस्मै न दातव्यं देवानामपि दुर्लभम्।।
 बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि गूलर के पुष्प से कपास रूई के साथ बत्ती बनाए और उस बत्ती को नवनीत से प्रज्वलित कर जलती हुई ज्वाला से काजल निकाले तथा उस काजल को रात में अपनी आंखों में लगा लें। इस काजल के लगाने से वह समस्त जगत को मोहित कर लेता है। ऐसा सिद्ध किया हुआ काजल किसी भी व्यक्ति को नहीं दें।

 अथ लेपविधानम् 
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श्वेत-गुंजारसे पेष्यं ब्रह्मदण्डीय-मूलकम्। शरीरे लेपमात्रेण मोहयेत् सर्वतो जगत्।।
 श्वेतगुंजा सफेद घूंघची के रस में बह्मदण्डी की जड़ को पीस लें और उसका शरीर में लेप करें तो उससे समस्त जगत् मोहित हो जाता है।

 पंचांगदाडिमी पिष्ट्वा श्वेत गुंजा समन्विताम्। एभिस्तु तिलकं कृत्वा मोहयेत् सकलं जगत्।। 
अनार के पंचांग (जड़, पत्ते फल, पुष्प और टहनी) को पीसकर उसमें सफेद घुंघुची मिलाकर तिलक लगाएं। इस तिलक के प्रभाव से व्यक्ति समस्त जगत को मोहित कर लेता है। 

मन्त्रस्तु - इन प्रयोगों की सिद्धि के लिए अग्रिम दिए हुए मंत्रों के दस हजार जप करने से लाभ होता है।
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 ”¬ नमो भगवते रुद्राय सर्वजगन्मोहनं कुरु कुरु स्वाहा।“ अथवा ”¬ नमो भगवते कामदेवाय यस्य यस्य दृश्यो भवामि यश्य यश्य मम मुखं पश्यति तं तं मोहयतु स्वाहा।।

 आकर्षण प्रयोग
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 कृष्ण धत्तूरपत्राणां रसं रोचनसंयुतम्। श्वेतकर्वीर लेखन्या भूर्जपत्रे लिखेत् ततः।। मन्त्रं नाम लिखेन्मध्ये तापयेत् खदिराग्निना। शतयोजनगो वापि शीघ्रमायाति नान्यथा।
 काले धतूरे के पत्रों से रस निकालकर उसमें गोरोचन मिलाएं और स्याही बना लें। फिर सफेद कनेर की कलम से भोजपत्र पर जिसका आकर्षण करना हो उसका नाम लिखें और उसके चारों ओर मंत्र लिखें। फिर उसको खैर की लकड़ी से बनी आग पर तपाएं, इससे जिसके लिए प्रयोग किया हो, वह सौ योजन दूर गया हो तो भी शीघ्र ही वापस आ जाता है। 

अनामिकाया रक्तेन लिखेन्मन्त्रं च भूर्जके। यस्य नाम लिखन्मध्ये मधुमध्ये च निक्षिपेत्।। तेन स्यादाकर्षणं च सिद्धयोग उदाहृतः। यस्मै कस्मै न दातव्यं नान्यथा मम भाषितम्।।
 अनामिका अंगुली के रक्त से भोजपत्र पर मंत्र लिखें और मध् य में अभीष्ट व्यक्ति का नाम लिख कर मधु में डाल दें, इसमें जिसका नाम लिखा हुआ होगा उसका आकर्षण हो जाएगा। यह सिद्ध योग कहा गया है।

 अथाकर्षण मंत्र
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 ”¬ नम आदिपुरुषाय अमुकस्याकर्षणं कुरु कुरु स्वाहा।“
 एकलक्षजपान्मन्त्रः सिद्धो भवति सर्वथा। अष्टोत्तरशतजपादग्रे प्रयोगोऽस्य विधीयते।। इस मंत्र का एक लाख बार जप करने से यह मंत्र पूर्ण रूप से सिद्ध हो जाता है। तदंतर प्रयोग से पूर्व इस मंत्र का 108 बार जप करके इसका प्रयोग किया जाता है। 

सर्वजन वशीकरण प्रयोग
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 ब्रह्मदण्डी वचाकुष्ठ चूर्ण ताम्बूल मध्यतः। पाययेद् यं रवौ वारे सोवश्यो वर्तते सदा।।
 ब्रह्मदण्डी, वच और कुठ के चूर्ण को रविवार के दिन पान में डालकर खिला दें। जिसको खिलाया जाए वह सदैव के लिए वश में हो जाता है।

 गृहीत्वा वटमूलं च जलेन सह घर्षयेत्। विभूत्या संयुतं शाले तिलकं लोकवश्यकृत।।
 बड़ के पेड़ की जड़ को पानी में घिस कर उसमें भस्म मिलाएं और उसका तिलक लगाएं तो उसे देखने वाले लोग वशीभूत हो जाते हैं।

 पुष्ये पुनर्नवामूलं करे सप्ताभिमन्त्रितम्। बुद्ध्वा सर्वत्र पूज्येत सर्वलोक वशङ्करः।।
 पुष्य नक्षत्र के दिन पुनर्नवा की जड़ को लाकर उसे वशीकरण मंत्र से सात बार अभिमंत्रित करें और हाथ में बांधे तो वह सर्वत्र पूजित होता है तथा सभी लोग उसके वशीभूत हो जाते हैं।

 पिष्ट्वाऽपामार्गमूलं तु कपिला पयसा युतम्। ललाटे तिलकं कृत्वा वशीकुयोज्जगत्त्रयम्।।
 कपिला गाय के दूध में अपामार्ग आंधी झाड़ा की जड़ को पीस कर ललाट पर तिलक करने से त्रिलोक को भी वश में किया जा सकता है।

 गृहीत्वा सहदेवीं च छायाशुष्कां च कारयेत्। ताम्बूलेन च तच्चूर्ण सर्वलोकवशंकरः।।
 सहदेवी को छाया में सुखाकर उसका चूर्ण बना लें तथा उसे पान में डाल कर खिलाएं तो सभी का वशीकरण हो जाता है। 

रोचना सहदेवीभ्यां तिलकं लोकवश्यकृत्।
 गोरोचन और सहदेवी को मिलाकर उसका तिलक करने वाला सब को वश में कर लेता है।


 गृहीत्वौदुम्बरं मूलं ललाटे तिलकं चरेत्। प्रियो भवति सर्वेषां दृष्टमात्रो न संशयः।।
 उदुम्बर की जड़ को घिस कर उससे जो तिलक लगाता है, उस पर जिसकी दृष्टि पड़ती है, वह उसके वश में हो जाता है। इसमें कोई संशय नहीं है।

 ताम्बूलेन प्रदातव्यं सर्वलोक वशङ्करम्।
 यदि गूलर की जड़ का चूर्ण पान में डालकर खिलाया जाए तो उससे वह वश में हो जाता है जिसे यह खिलाया जाता है।

 सिद्धार्थ देवदाल्योश्च गुटिकां कारयेद् बुधः। मुखे निक्षिप्य भाषेत सर्वलोक वशङ्करम्।।
 सरसों और देवदाली के चूर्ण की गोली बनाकर उसे मुंह में रखकर बातचीत करने से जिससे बात करता है, वह वश में हो जाता है।

 कुङ्कुमं नागरं कुष्ठं हरितालं मनःशिलाम्। अनामिकाया रक्तेन तिलकं सर्ववश्यकृत।।
 केशर, सोंठ, कुठ, हरताल और मैनसिल का चूर्ण करके उसमें अपनी अनामिका अंगुली का रक्त मिलाकर तिलक लगाने से सभी लोग वश में हो जाते हैं।

 गोरोचनं पद्मपत्रं प्रियङ्गुं रक्तचन्दनम्। एषां तु तिलकं भाले सर्वलोक वशङ्करम्।।
 गोरोचन, कमल का पत्र, कांगनी और लाल चंदन इनका ललाट पर तिलक करने से व्यक्ति वश में हो जाते हैं।

 गृहीत्वा श्वेतगुंजां च छयाशुष्कां तु कारयेत्। कपिला पयसा सार्द्ध तिलकं लोकवश्यकृत्।।
 सफेद घुंघुची को छाया में सुखा कर कपिला गाय के दूध में घिस कर तिलक करने से सर्वजन वश में हो जाते हैं।

 श्वेतार्क च गृहीत्वा च छायाशुष्कं तु कारयेत्। कपिला पयसा सार्द्ध तिलकं लोकवश्यकृत्।।
 सफेद मदार (आक) को छाया में सुखा कर कपिला गाय के दूध में घिस कर तिलक करने से सर्वजन वश में हो जाते हैं। 

श्वेतार्क च गृहीत्वा च कपिला दुग्ध मिश्रिताम्। लेपमात्रं शरीरे तु सर्वलोक वशङ्करम्।।
 सफेद दूर्वा को कपिला गाय के दूध में मिलाकर शरीर में लेप करने मात्र से सभी जन वश में हो जाते हैं।

 बिल्वपत्राणि संगृहय मातुलुंगं तथैव च। अजादुग्धेन तिलकं सर्वलोक वशङ्करम्।।
 बिल्व पत्र और बिजोरा नीबू को बकरी के दूध में पीसकर तिलक करने से सर्वजन वश में हो जाते हैं।

 कुमारी मूलमादाय विजया बीज संयुतम्। तलकं मस्तके कुर्यात् सर्वलोक वशङ्करम्।।
 घी कुंवारी की जड़ और भांग के बीज, दोनों को मिलाकर मस्तक पर तिलक करने से सर्वजन वश में हो जाते हैं।

 हरितालं चाश्वगन्धा सिन्दूरं कदली रसः। एषां तु तिलकं भाले सर्वलोक वशङ्करम्।।
 हरताल और असगन्ध को सिन्दूर तथा केले के रस म मिलाकर ललाट पर तिलक करने से सर्वजन वश में हो जाते हैं। 

अपामार्गस्य बीजानि छागदुग्धेन पेषयेत्। अनेन तिलकं भाले सर्वलोक वशङ्करम।।
 अपामार्ग के बीजों को बकरी के दूध में पीसकर उसका कपाल में तिलक लगाने से समस्त जन वश में होते हैं।

 ताम्बूलं तुलसी पत्रं कपिलादुग्धेन पेषितम्। अनेन तिलकं भाले सर्वलोक वशङ्करम्।।
 नागरबेल का पान और तुलसी पत्र को कपिला गाय के दूध में पीस कर उसका मस्तक पर तिलक लगाने से समस्त जन वश में हो जाते हैं।

 धात्रीफलरसैर्भाव्यमश्वगन्धा मनः शिला। अनेन तिलकं भाले सर्वलोक वशङ्करम्।।
 आंवले के रस में मैनसिल और असगंध को मिलाकर ललाट पर तिलक करने से समस्त जन वश में हो जाते हैं।

 अथ वशीकरण मंत्र इन उपर्युक्त वस्तुओं को अभिमंत्रित करने का मंत्र इस प्रकार है- 
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”¬ नमो नारायणाय सर्वलोकान् मम वशं कुरु कुरु स्वाहा।“ 

इसकी प्रयोगात्मक सफलता के लिए एकलक्षजपान्मन्त्रः सिद्धो भवति नान्यथा। अष्टोत्तरशतजपात् प्रयोगे सिद्धिरुत्तमा।।

एक लाख जप से यह मंत्र सिद्ध होता है और प्रयोग के समय इस मंत्र का 108 बार जप करके प्रयोग करने से सफलता मिलती है।

 युवक एवं युवती वशीकरण प्रयोग
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 रविवारे गृहीत्वा तु कृष्णधत्तूरपुष्पकम्। शाखां लतां गृहीत्वा तु पत्रं मूलं तथैव च।। पिष्ट्वा कर्पूरसंयुक्तं कुङ्कुमं रोचनां तथा। तिलकैः स्त्रीवशीभूता यदि साक्षादरुन्धती।।
 रविवार के दिन काले धतूरे के पुष्प, शाखा, लता और जड़ लेकर उनमें कपूर, केशर और गोरोचन पीसकर मिला दें और तिलक बना लें। इस तिलक को मस्तक पर लगाने से स्त्री चाहे वह साक्षात् अरुंधती जैसी भी हो, तो भी वश में हो जाती है। 

काकजङ्घा व तगरं कुङ्कुमं तु मनःशिलाम्।। चूर्ण स्त्रीशिरसि क्षिप्तं वशीकरणमद्भुतम्।।
 काकजङ्घा, तगर, केशर और मैनशिल का चूर्ण बनाकर उसे स्त्री के सिर पर डाले तो वह वश में हो जाती है। यह उत्तम वशीकरण है।

 ब्रह्मदण्डीं समादाय पुष्यार्केण तु चूर्णयेत्। कामार्ता कामिनीं दृष्ट्वा उत्तमाङ्गे विनिक्षिपेत्।। पृष्ठतः सा समायाति नान्यथा मम भाषितम्।
 रवि पुष्य के दिन ब्रह्मदंडी को लाकर उसको पीस लें। तदनंतर जिस काम पीड़ित कामिनी के मस्तक पर वह चूर्ण डाला जाए वह स्त्री ऐसी आकर्षक हो जाती है कि प्रयोग करने वाले पुरुष के पीछे-पीछे वह चली आती है।

 राजवशीकरण प्रयोग 
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कुङ्कुमं चन्दनं चैव कर्पूरं तुलसीदलम्। गवां क्षीरेण तिलकं राजवश्यकरं परम्।।
 केशर, चंदन, कपूर और तुलसी पत्र को गाय के दूध में पीस कर तिलक करने से राजा का वशीकरण हो जाता है।

 करे सुदर्शनं मूलं बद्ध्वा राजप्रियो भवेत्।
 सुदर्शन जामुन की जड़ को हाथ में बांधकर मनुष्य राजा का अथवा अपने बड़े अधिकारी का प्रिय हो जाता है।

 हरितालं चाश्वगन्धां कर्पूरं च मनःशिलाम्। अजाक्षीरेण तिलकं राजवश्यकरं परम्।।
 हरताल, असगंध, कपूर तथा मैनसिल को बकरी के दूध म पीस कर तिलक लगाने से राजा का वशीकरण होता है।

 हरेत् सुदर्शनं मूलं पुष्यभे रविवासरे। कर्पूरं तुलसीपत्रं पिष्ट्वा तु वस्त्रलेपने।। विष्णुक्रान्तस्य बीजानां तैले प्रज्वाल्य दीपके। कज्जलं पातयेद रात्रौ शुचिपूर्व समाहितः।। कज्जलं चांजयेन्नेत्रे राजवश्यकरं परम्।।
 जामुन की जड़ को रविपुष्य के दिन लाए और कपूर तथा तुलसीपत्र के साथ पीस कर एक वस्त्र के ऊपर लपेट लें। तदनंतर अपराजिता के बीजों के तेल से दीपक जलाएं। दीपक से रात्रि में पवित्रता और सावधानी से काजल बनाएं और उसे अपने दोनों नेत्रों में लगा लें। ऐसा करने से राजा का वशीकरण होता है।

 भौमवारे दर्शदिने कृत्वा नित्यक्रियां शुचिः। वने गत्वा हयपामार्गवृक्षं पश्येदुदङ् मुखः।। तत्र विप्रं समाहूय पूजां कृत्वा यथा विधि। कर्षमेकं सुवर्ण च दद्यात् तस्मै द्विजन्मने।। तस्य हस्तेन गृहीणीयादपामार्गस्य बीजकम्। कृत्वा निस्तुषबीजानि मौनी गच्छेन्निजं गृहम्।। रमेशं हृदये ध्यात्वा राजानं खादयेच्च तान्। येनकेनाप्युपायेन यावज्जीवं वशं भवेत्।।
 मंगलवार के दिन वाली अमावस्या को अपना नित्यकर्म करके पवित्रता पूर्वक वन में चला जाए और वहां उत्तर की ओर मुंह करके खड़ा हो, अपामार्ग वृक्ष को देखे। फिर वहां ब्राह्मण को बुलाकर विधिपूर्वक उसकी पूजा करके उसे 16 माशा सुवर्ण दान दें और उसके हाथ से अपामार्ग के बीजों को साफ करके हृदय में भगवान विष्णु का ध्यान करें और जैसे भी बने वे बीज राजा को खिला दें। इस प्रकार प्रयोग करने से राजा जन्म भर के लिए दास बन जाता है।

 तालीस, कुठ और तगर को एक साथ पीस कर लेप बना लें। फिर नर कपाल में सरसों का तेल डालकर रेशमी वस्त्र की बत्ती जलाएं तथा काजल बनाएं। उस काजल को आंखों में लगा लें। इसमें जो भी देखने में आता है वह वश में हो जाता है। यह प्रयोग तीनों लोकों को वश में करने वाला है।

 अपामार्गस्य बीजं तु गृहीत्वा पुष्य भास्करे। खाने पाने प्रदातव्यं राजवश्यकरं परम्।।
 रविपुष्य के दिन अपामार्ग के बीज लाकर उन्हें भोजन में अथवा पानी में मिलाकर यदि राजा को खिला दिया जाए तो वह वश में हो जाता है।

 अथ वशीकरण मंत्र
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 ”¬ नमो भास्कराय त्रिलोकात्मने अमुकं महीपतिं वशं कुरु कुरु स्वाहा।“
 इसका विधान इस प्रकार है - एकलक्षजपादस्य सिद्धिर्भवति नान्यथा। अष्टोत्तरशतजपादस्य प्रयोगे सिद्धिरुत्तमा।। प्रथम पुरश्चरण के रूप में उपर्युक्त मंत्र का एक लाख बार जप कर लें। इससे निश्चित सिद्धि होती है और प्रयोग करने का अवसर आने पर एक सौ आठ बार जप करके प्रयोग करें तो उसमें पूर्ण सफलता प्राप्त होती है।

Friday, June 13, 2014



बीज, वैदिक एवं पौराणिक मन्त्र
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न्याय सिद्धांत एवं वृहद् शाङ्करी के अनुसार –

“यन्नवतां चर्वाण्यमितः तदेव सोक्तिम।” (न्याय सिद्धांत)

“सार्द्धमातृकम् ॡयादि न्रृमुक्तम्नुक्तमिति बोध्यम् तन्बीजमुच्यते।” (वृहद् शाङ्करी)

अर्थात इतर वर्ण सायुज्य रहित पूर्ण अर्थाभाष कराने वाले स्वतंत्र अर्द्ध मात्रिक वर्ण सम्बन्ध को बीज कहते है.
इसके पूर्व मैं यह स्पष्ट कर देना चाहूँगा कि प्रत्येक वर्ण का अपना एक स्वतंत्र अर्थ होता है. यथा—
क–पक्षी
ख–आकाश
ग–जल
घ–वाणी (अंतिम)
——————
न–हम (मैं का बहुवचन) आदि
इस प्रकार इन वर्णो के साथ शरीर की विशेष अंतर्ग्रंथियों को प्रेरित कर जो अन्तःस्थ, ऊष्मवर्ण आदि का उच्चारण किया जाता है उसे बीज कहते है. जैसे
ह- (अन्तःस्थल या ह्रदय) शरीर का ऊर्जा संग्रह केंद्र। यही से पट्ट नाड़िका (Gracio Trabula ) का समायोजन होता है.
र- रम्भ (कशेरुका का प्रथम आभाष) या Procellua Micora अनुकारी तरंगो को आनुपातिक गति प्रदान करता है.
देखें — योगी माहेश्वर कृत ”पिण्ड कल्पाश्रय” का नाद विधान

प्राचीन ऋषि महर्षि एवं मुनि आदि साधक समुदाय ने दीर्घकालिक तपश्चर्या एवं प्राप्त परिणाम एवं अनुभव से यह ज्ञात किया कि इन दोनों अर्द्धमात्रिको का समुच्चय प्रचण्ड एवं तीव्र तरंग प्रक्षेपित करता है. इस प्रकार शक्ति साधना का बीज कण्ठ से बोला जाने वाला “ह” तथा “र” एवं तीसरा अनुस्वार “म” मिलकर परमाणविक शक्ति उत्पन्न करते है जैसे +++ह्रीं
प्रत्येक बीज मन्त्र में दैहिक, दैविक एवं भौतिक प्रकार से सत, रज एवं तम तीनो का जिह्वा, मूर्द्धा एवं तालु (रज के प्रतीक), दन्त, ओष्ठ एवं कण्ठ (सत के प्रतीक) तथा नासिका (तम का प्रतीक) होना अनिवार्य है.

ध्यान रहे , इनके उच्चारण से उद्घोष फल में कोई विकृति या अवरोध न उत्पन्न हो इसलिये यह व्याकरण के प्रतिबन्ध से मुक्त होता है.

“ह्रां, क्लीं, भ्रौं आदि को ही बीज मन्त्र कहा जाता है. इनका अर्थ, उद्देश्य एवं प्रभाव सीमित, एकांगी एवं उग्र प्रभाव वाला होता है. इसमें प्रधानता अभ्यास की होती है. भाव की कोई आवश्यकता नहीं होती है. अभ्यास में विचलन उग्र प्रतिकूल फल देता है. इसकी प्रधानता तंत्र शास्त्र में मानी गयी है.
========वैदिक मन्त्र======

इनका अर्थ असीमित, प्रभाव सौम्य, व्याकरण से  एवं स्वर शास्त्र से अनुशासित होता है. शब्द शास्त्र से इसका पूर्ण नियंत्रण होता है. इसमें अनुशासन एवं भाव दोनों समान रूप से आवश्यक है. चारो वेद की ऋचाएं इनका उदाहरण है. वेद मंत्रो की संख्या निश्चित है.
======पौराणिक मन्त्र=====

स्थिति, एवं भाव के अनुसार इनकी रचना समय समय पर भक्तो एवं आचार्यो द्वारा होती रहती है. इसमें भाव की प्रधान ता होती है. व्याकरण का सीमित नियंत्रण होता है. शब्द शास्त्र आदि की योजना आवश्यक नहीं होती।
========उदाहरण=====

शनि मन्त्र+++++
बीज मन्त्र— शं —–ॐ शं शनैश्चराय नमः
वेद मन्त्र- ॐ शन्नो देवीरभिष्टयरापो भवन्तु पीतये शं यो रभिस्रवन्तु नः
पौराणिक मन्त्र– नीलांजन समाभाषम सूर्यपुत्रं यमाग्रजम।
छायामार्तण्ड सम्भूतं तम नमामि शनैश्चरम।।