गायत्री - मंत्र
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गायत्री साधना द्वारा शक्तिकोशों का उद्भव:मन्त्र विद्या को वैज्ञानिक जानते हैं कि जीभ से जो भी शब्द निकलते हैं, उनका उच्चारण कंठ, तालू, मूर्धा, ओष्ठ, दन्त, जिह्वामूल आदि मुख के विभिन्न अंगों द्वारा होता है.
इस उच्चारण काल में मुख के जिन भागों से ध्वनि निकलती है, उन अंगों के नाडी तंतु शरीर के विभिन्न भागों तक फैलते हैं.
इस फैलाव क्षेत्र में कई ग्रंथियां होती हैं, जिन पर उन उच्चारणों का प्रभाव पड़ता है.
जिन लोगों की कुछ सूक्ष्म ग्रंथियां रोगी या नष्ट हो जाती हैं, उनके मुख से कुछ शब्द रुक रुक कर या अस्पष्ट निकलते हैं.
इसी को हकलाना या तुतलाना कहते हैं. मन्त्रों का गठन इसी आधार पर हुआ है. गायत्री मन्त्र में २४ अक्षर हैं. इसका सम्बन्ध शरीर में स्थित २४ ग्रंथियों से है,
जो जागृत होनेपर सद्बुद्धि प्रकाशक शक्तियों को सतेज करती है.
गायत्री मन्त्र के उच्चारण से सूक्ष्म शरीर का सितार २४ स्थानों को झंकार देता है और उससे ऐसी स्वर-लहरी उत्पन्न होती है,
अदृश्य जगत के महत्वपूर्ण तत्वों पर पड़ता है. यह प्रभाव ही गायत्री साधना के फलों का प्रभाव हेतु है.
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