Monday, April 28, 2014

दश - महा विद्या :-
.**********************

तंत्र क्षेत्र की १० महाशक्तियां जो ब्रह्माण्ड की सभी गतिविधियों का नियंत्रण करती है, वही आदि शक्ति के दस महारूप दसमहाविद्या के नाम से प्रख्यात है. देवी के सभी रूप अपने आप में विलक्षण तो है ही, साथ ही साथ अपने साधको को हमेशा कल्याण प्रदान करने के लिए तत्पर भी है. हज़ारो साधको के मन की यह अभिलाषा होती है की वह महाविद्या से सबंधित साधना प्रक्रिया पद्धति और प्रयोगों को समजे तथा प्रायोगिक रूप से इन प्रक्रियाओ को अपना कर शक्ति की कृपा के पात्र बने. इन्ही दस महाविद्याओ से सबंधित कई प्रकार के तंत्र प्रयोग सिद्धो के मध्य प्रचलित है, ज्यादातर गृहस्थ साधको के मध्य महाविद्या से सबंधित कुछ ही विशेष प्रयोग प्रकट रूप से प्राप्य है लेकिन गुरुमुखी प्रणाली से विविध गुप्त प्रयोग सन्यासी एवं कुछ गृहस्थ साधको के मध्य भी प्राप्त होते है.
दस महाविद्याओ में देवी भैरवी का नाम साधको के मध्य कई कारणों से प्रख्यात है क्यों की शक्ति का यह एक अतिव तीव्रतम स्वरुप है जिसकी साधना करने पर साधक को तीव्र रूप से फल की प्राप्ति होती है. साथ ही साथ साधक को न सिर्फ आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति होती है, वरन साधक के भौतिक जीवन के अभाव भी दूर होते है. पुरातन तंत्र ग्रंथो में भगवती के भैरवी स्वरुप की भरपूर प्रशंशा की गई है. भगवती का स्वरुप अत्यधिक रहस्यमय है तथा इतनी ही गुढ़ है उनकी साधना पद्धति भी. विश्वसार में इसे श्रृष्टिसंहारकारिणी की संज्ञा दी गई है, क्यों की यह जिव के सर्जन से ले कर संहार तक के पूर्ण क्रम में सूक्ष्म शक्ति के रूप में उपस्थित है. भैरवी से सबंधित त्रिबीज मन्त्र की ख्याति तो निश्चय ही बहोत ही ज्यादा है तथा कई कई साधको ने मन्त्र के माध्यम से नाना प्रकार से लाभों की प्राप्ति की है. लेकिन देवी से सबंधित एक और तीन बीज से युक्त मन्त्र भी है जिसको बीजत्रयात्मिका त्रिपुर भैरवी मन्त्र कहा जाता है. वैसे सामान्य द्रष्टि से इस मन्त्र में विशेषता द्रष्टिगोचर हो या नहीं लेकिन यह मन्त्र अत्यधिक तीव्र मन्त्र है जिसका अनुभव उन सभी साधको ने किया है जिन्होंने इस मन्त्र को अपनाया है.
यह मन्त्र रक्षात्मक है जिससे साधक का सभी शत्रुओ से रक्षण होता है साथ ही साथ यह अस्त्रात्मक मन्त्र भी है, साधक के सभी शत्रुओ का उच्चाटन होता है तथा समस्त शत्रु साधक से दुरी बनाने लगते है. इस मन्त्र प्रयोग से साधक को धन यश पद प्रतिष्ठा लाभ होता है. साधक की गृहस्थी से सबंधित समस्याओ का निराकरण होता है. भगवती की कृपा से साधक के ऊपर हो रहे सभी प्रकार के षड्यंत्र का नाश होता है तथा साधक सभी द्रष्टि से सुरक्षित बना रहता है. इस प्रकार यह लघु प्रयोग एक ही रात्रि में सम्प्पन करने पर साधक को एक साथ कई लाभों की प्राप्ति हो जाती है.
निश्चय ही हर एक गृहस्थ साधक के लिए इस प्रकार के प्रयोग वरदान स्वरुप है तथा तंत्र के क्षेत्र से एक से एक गोपनीय रत्न की प्राप्ति करना सौभाग्य सूचक ही है, फिर भी अगर हम इन प्रयोगों को ना अपनाए तथा अपने जीवन में परिवर्तन न करे तो फिर इसमें दोष किसका है. इस लिए तंत्र के माध्यम से देव शक्ति को प्राप्त कर, उनकी कृपा तथा आशीर्वाद तले हम अपने जीवन को सौंदर्य प्रदान कर सके यह हर एक साधक के लिए संभव तो है ही साथ ही साथ इस प्रकार के अमूल्य प्रयोगों के साथ सहज भी है .
साधक किसी भी शुभ दिन यह प्रयोग कर सकता है. समय रात्री में १० बजे के बाद का ही रहे.
साधक को स्नान आदि से निवृत हो लाल रंग के वस्त्र धारण कर लाल आसान पर उत्तर दिशा की तरफ मुख कर बैठना चाहिए. अपने सामने साधक भैरवी यंत्र या चित्र को स्थापित करे. इसके अलावा एक लघु नारियल और एक पञ्चमुखी रुद्राक्ष साथ में रख दे.
साधक गुरुपूजन, गणपति तथा भैरव पूजन करे. देवी के यंत्र तथा चित्र आदि का भी पूजन करे. गुरुमन्त्र का जाप करे. तथा इसके बाद मूल मन्त्र का न्यास करे.
करन्यास
ॐ ह्स्त्रैं ह्स्क्लीं ह्स्त्रौं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
ॐ ह्स्त्रैं ह्स्क्लीं ह्स्त्रौं तर्जनीभ्यां नमः
ॐ ह्स्त्रैं ह्स्क्लीं ह्स्त्रौं सर्वानन्दमयि मध्यमाभ्यां नमः
ॐ ह्स्त्रैं ह्स्क्लीं ह्स्त्रौं अनामिकाभ्यां नमः
ॐ ह्स्त्रैं ह्स्क्लीं ह्स्त्रौं कनिष्टकाभ्यां नमः
ॐ ह्स्त्रैं ह्स्क्लीं ह्स्त्रौं करतल करपृष्ठाभ्यां नमः
हृदयादिन्यास
ॐ ह्स्त्रैं ह्स्क्लीं ह्स्त्रौं हृदयाय नमः
ॐ ह्स्त्रैं ह्स्क्लीं ह्स्त्रौं शिरसे स्वाहा
ॐ ह्स्त्रैं ह्स्क्लीं ह्स्त्रौं शिखायै वषट्
ॐ ह्स्त्रैं ह्स्क्लीं ह्स्त्रौं कवचाय हूं
ॐ ह्स्त्रैं ह्स्क्लीं ह्स्त्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्
ॐ ह्स्त्रैं ह्स्क्लीं ह्स्त्रौं अस्त्राय फट्
न्यास के बाद साधक देवी का ध्यान कर मन्त्र जाप शुरू करे. यह जाप साधक मूंगामाला या शक्ति माला से करे. साधक को ५१ माला मन्त्र जाप उसी रात्रि में पूर्ण कर लेना चाहिए. साधक हर २१ माला के बाद ५-१० मिनिट का विश्राम ले सकता है.
मूल मन्त्र - ह्स्त्रैं ह्स्क्लीं ह्स्त्रौं (hstraim hskleem hstraum)
प्रयोग पूर्ण होने पर साधक देवी को योनी मुद्रा से जप समर्पण कर श्रद्धासह वंदन करे. दूसरे दिन साधक नारियल तथा रुद्राक्ष को प्रवाहित कर दे. तथा माला को रख ले. यह माला भविष्य में भी यह प्रयोग के लिए उपयोग में ली जा सकती है.

रमेश  दुबे " पंडित "  -----९४१७० ४७३७४ ..............

No comments:

Post a Comment