शामला - यन्त्रं ( शिव - शक्ति का वरदान )
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पौराणिक मतानुसार एक कहावत आती है कि एक बार किसी ढोंगी राक्षस ने अपनी कुत्सित एवं अपराधी इच्छा क़ी पूर्ती हेतु भगवान शिव क़ी उग्र तपस्या किया. आशुतोष भगवान शिव प्रसन्न होकर उससे वर माँगने को कहे. उसने भगवान शिव से उनकी पत्नी पार्वती को ही वरदान में मांग लिया. भगवान वचन वद्ध हो चुके थे. उन्होंने पार्वती को आदेश तों दे दिया कि वह उस राक्षस के साथ चली जाय. किन्तु जब माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि राक्षस ने तों तपस्या किया तों उसे आप ने वरदान दे डाला. किन्तु मैंने जो आज तक तपस्या क़ी, उसका क्या फल मिला? भगवान शिव ने पूछा कि हे शिवा ! आप क्या चाहती है? माता पार्वती ने कहा कि मुझे आप क़ी शक्ति चाहिए. भगवान शिव ने तत्काल अपनी शक्ति को आदेश दिया कि वह पार्वती क़ी हो जाय. भगवान शिव क़ी शक्ति निकल कर माता पार्वती के सम्मुख खड़ी हो गयी. शक्ति ने पूछा कि हे माता ! मेरे लिये क्या आदेश है? माता पार्वती ने कहा कि तुम मेरे इस मुट्ठी क़ी मिट्टी में समा जाओ. माता पार्वती ने एक मुट्ठी मिट्टी ज़मीन से उठाया. और उसमें उन्होंने अपनी शक्ति को प्रवेश कराया. पीछे से भगवान शिव क़ी भी शक्ति उसमें घुस गयी. वह मिट्टी तत्काल एक ठोस चमकीले पत्थर के रूप में परिवर्तित हो गयी. जिससे निकलने वाली किरणों ने तत्काल उस राक्षस को जाला डाला. उस रूद्र-शिवा क़ी शक्ति से युक्त वह पत्थर ही शामला नामक यंत्र से प्रसिद्ध हुआ. इसे रहस्यमय प्रकार से वैदिक सूत्रों में में भी बताया गया है.
"ॐ या ते रूद्र-शिवा तनूराघोरापापकाशिनी तयानास्तन्वा शंतमया गिरीशन्ताभीचाकशीहि. इदम एक रुद्राय नमः. " ------ऋग्वेद- शिव सूक्त.
आप स्वयं देख सकते है कि उपरोक्त सूत्र में भी रूद्र-शिवा का उल्लेख हुआ है. यह एक अति तीव्र, तीक्ष्ण एवं उग्र प्रभाव वाला यंत्र है. सूंडा पत्थर के भष्म को देवालिक, जायफल, त्रिपत्रिका, जटामांसी एवं हल्दी में कूट पीस कर शहद में मिला लें. अपनी पूरी लम्बाई के सूती काले धागे को जला कर उसका भी भष्म बना लें. अपनी जन्म नक्षत्र के अन्न को एक मुट्ठी लेकर उसे भी जलाकर भष्म बना लें. ये सारे मिश्रण एक जगह एकत्रित कर लें. उसके नौ भाग बना लें. जब आप क़ी जन्म नक्षत्र पड़े उस दिन उसकी चौघडिया में अपनी क्षमता के अनुसार चांदी या सोने क़ी अंगूठी बनवा कर केले के पत्ते में प्रथम दिन मिश्रण के एक भाग में ढक कर रख दें. अगले दिन मिश्रण के दूसरे भाग में उसी प्रकार ढक कर रख दें. तथा पहले दिन के मिश्रण को अंगूठी से अलग कर एक जगह रख लें. इसी प्रकार नवो दिन करें. उसके बाद आने वाले अगले मंगल वार या शनिवार को उसे नहा धो कर दाहिनी हाथ के बीच वाली बड़ी अंगुली में धारण कर लें. तथा उन सारे मिश्रणों को किसी साफ़ जगह पर या कही गाँव घर से दूर ज़मीन में गाड़ दें. यह एक अति विलक्षण प्रभाव वाली मुद्रिका यंत्र है.
किन्तु बहुत अफसोस क़ी बात है कि हम जैसे लोग इसे धारण नहीं कर सकते है. कारण यह है कि यह बहुत ही मंहगा यंत्र हो जाता है. सूंडा पत्थर जिसे अंग्रेजी में डेरोलान कहते है, आज क़ी तारीख में लगभग एक लाख रुपये का पडेगा. अतः यह आम आदमी के पहुँच के बाहर क़ी चीज हो गयी है. क्योकि इसे साधते, बनाते, सिद्ध करते लगभग सवा लाख रुपये इसकी कीमत हो जाती है. अब हम जैसा नौकरी पेशे वाला कहाँ से इसे बना पायेगा. किन्तु जैसा विविध ग्रंथो में इसका वर्णन उपलब्ध है, मैंने लिख दिया. सभी मेरे जैसे नहीं है. ढेर सारे लोग समर्थ है जिन्हें इस यंत्र क़ी आवश्यकता है. और वे इसे धारण कर सकते है. इसमें ऊपर दिये गये पदार्थो क़ी मात्रा रुद्रयामल (वेंकटेश्वर प्रभाग) में दिया गया है. यद्यपि यह ग्रन्थ तेलुगु भाषा में है. किन्तु इसका शायद हिंदी एवं अंग्रेजी संसकरण भी उपलब्ध है. फिर भी मै दृढ़ता पूर्वक नहीं कह सकता. यदि शिव मालिका, मार्कंडेय पुराण (बाम्बे प्रकाशन) , तंत्र विधान (रहस्य राघवम), रहस्य वैतालिक एवं पिप्पल आख्यायिका का अध्ययन किया जाय तों इसके बना ने क़ी विशद विधि विधान को प्राप्त किया जा सकता है.
नमस्कार,यह यंत्र आप सिद्ध करते है ?
ReplyDeleteकृपया बताये, धन्यवाद.
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