Thursday, October 29, 2015

बजरंग  वशीकरण मंत्र 
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 Bajrang Vashikaran Mantra
“ॐ पीर बजरङ्गी, राम लक्ष्मण के सङ्गी। जहां-जहां जाए, फतह के डङ्के बजाय। ‘अमुक or Name of specific PERSON को मोह के, मेरे पास न लाए, तो अञ्जनी का पूत न कहाय। दुहाई राम-जानकी की।”
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विधि RULES - ११ माला ११ दिनों तक, उक्त मन्त्र का जप कर ke इसे सिद्ध कर ले। शुभ दिन है ‘हनुमान-जयन्ती’ या ‘राम-नवमी’ । दूध निर्मित पदार्थ या दूध पर प्रयोग के समय ११ बार मन्त्र पढ़कर पिला या खिला देने से, वशीकरण pakka होगा।

Sunday, April 5, 2015

हनुमान  पञ्च- रत्न  स्त्रोतम 
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वीताखिल-विषयेच्छं जातानन्दाश्रु-फुलकमत्यच्छं
सीतापति-दूताद्यं वातात्मजमद्य भावये हृदयम् ॥ 1

तरुणारुण-मुखकमलं करुणारस-पूर-पूरितापाङ्गं
संजीवनमाशासे मञ्जुल-महिमानं-अन्जनाभाग्यम् ॥ 2

शंबरवैरि-शरातिगं-अम्बुजदल-वपुललोचनोदारं
कंबुगलं-अनिलदिष्टं बिम्बज्वलितोष्टं-एकमवलम्बे ॥ 3

दूरीकृतसीतार्तिः प्रकटीकृतराम-वैभवस्फूर्तिः
दारित-दशमुख-कीर्तिः पुरतो मम भातु हनुमतो मूर्तिः ॥ 4

वानर-निकराध्यक्षं दानवकुल-कुमुदरविकर-सदृशम्
दीनजनावनदीक्षं पवन-तपः-पापपुञ्जकं-अद्राक्षम् ॥ 5

फल -श्रुति 

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एतत्पवनसुतस्य स्तोत्रं यः पठति पञ्चरत्नाख्यं
चिरमिह निखिलान् भोगान् भुक्त्वा श्रीरामभक्ति-
भाग्भवति ॥



प्रेषक :- रमेश  दुबे  " पंडित "



Sunday, March 22, 2015


हनुमान  पञ्च- रत्न  स्त्रोतम 
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वीताखिल-विषयेच्छं जातानन्दाश्रु-फुलकमत्यच्छं
सीतापति-दूताद्यं वातात्मजमद्य भावये हृदयम् ॥ 1

तरुणारुण-मुखकमलं करुणारस-पूर-पूरितापाङ्गं
संजीवनमाशासे मञ्जुल-महिमानं-अन्जनाभाग्यम् ॥ 2

शंबरवैरि-शरातिगं-अम्बुजदल-वपुललोचनोदारं
कंबुगलं-अनिलदिष्टं बिम्बज्वलितोष्टं-एकमवलम्बे ॥ 3

दूरीकृतसीतार्तिः प्रकटीकृतराम-वैभवस्फूर्तिः
दारित-दशमुख-कीर्तिः पुरतो मम भातु हनुमतो मूर्तिः ॥ 4

वानर-निकराध्यक्षं दानवकुल-कुमुदरविकर-सदृशम्
दीनजनावनदीक्षं पवन-तपः-पापपुञ्जकं-अद्राक्षम् ॥ 5

फल -श्रुति 

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एतत्पवनसुतस्य स्तोत्रं यः पठति पञ्चरत्नाख्यं
चिरमिह निखिलान् भोगान् भुक्त्वा श्रीरामभक्ति-
भाग्भवति ॥


प्रेषक :- रमेश  दुबे  " पंडित "



Thursday, March 19, 2015

नवरात्री   पर   विशेष  :-

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A - गोमती चक्र
1. अगर किसी का व्यापार न चल रहा हो या व्यापार को कोई नजर लग गई हो या व्यापार में कोई परेशानी बार बार आ रही हो तो अपने व्यापार कि चोखट पर ११ गोमती चक्र एवं ३ लघु नारियल सिद्ध करके शुभ महुर्त में किसी लाल कपड़े में बांध कर टांग दें व् उस पर लाल कामिया सिंदूर का तिलक कर दें ध्यान रखे ग्राहक उस के निचे से निकले बस कुछ ही दिनों में आप का व्यापार तरकी पर होगा

2. व्यवसाय स्थान पर पीतल के लोटे में जल रखा जाये और साथ गोमती चक्र उसके अन्दर डालकर खुला रखा जाये तथा जिस स्थान पर व्यापारी की बैठक है उसके दक्षिण-पश्चिम दिशा में इसे ऊपर की तरफ़ स्थापित करने के बाद रखा जाये सुबह को उस लोटे से सभी गोमती चक्र को निकाल कर उस पानी को व्यसाय स्थान के बाहर छिडक दिया जाये और नया पानी भरकर फ़िर से गोमती चक्र डालकर रख दिया जाये तो व्यवसाय में बारह दिन के अन्दर ही फ़र्क मिलना शुरु हो जाता है।

3. व्यापर स्थान पर ग्यारह सिद्ध गोमती चक्र और एक ९ मुखी रुद्राक्ष लाल कपड़े में बांध कर धन रखने वाले स्थान पर रख दे तो व्यापर में बढ़ोतरी होती जाएगी।

B - हत्था जोड़ी
प्राण प्रतिष्ठित की हुई हत्था जोड़ी लेकर मंगलवार के दिन लाल सिंदूर में डालकर पूजा स्थल पर रख दें. और प्रतिदिन संध्या में घी का दीपक जलाकर इस मंत्र का जाप करें. व्यापारी अपने तिजोरी में रखें।

मंत्र - ह्रीं ऐश्वर्य श्रीं धन धान्याधिपत्यै ऐं पूर्णत्य
लक्ष्मी सिद्धये नमः

C - सियार सिंगी
सिद्ध सियार सिंगी के जोड़े को व्यापर स्थल में स्थापित करने से समुचित धन लाभ होता है किन्तु ये व्यक्ति की गृह दशा से भी प्रभावित होती है और ऐसे में कभी कभी लाभ नहीं देती।
यदि ऐसा हो तो सियार सिंगी को शमी और नागदोन की जड़ के साथ व्यापर स्थल में स्थापित करें। नित्य धूप दें। कुछ ही दिनों में असर दिखने लगेगा।

D- इंद्रजाल
दुकान व्यापार स्थल के दक्षिण दिशा में लगाने से व्यापार में उन्नति होती है और दुश्मनों प्रतिद्वंदियों द्वारा किये कराये के असर से बचाव होता है।

E- मोती शंख
- किसी शुभ नक्षत्र या दीपावली में मोती शंख को घर में स्थापित कर रोज

श्री महालक्ष्मै नम:

108 बार बोलकर 1-1 चावल का दाना शंख में भरते रहें। इस प्रकार 11 दिन तक करें। बाद में शंख और चावल एक लाल कपड़े की पोटली बनाकर तिजोरी या रूपये गहने आदि रखने के स्थान पर रख दें। यह प्रयोग करने से आर्थिक तंगी समाप्त हो जाती है।
यदि गुरु पुष्य योग में मोती शंख को कारखाने में स्थापित किया जाए तो कारखाने में तेजी से आर्थिक उन्नति होती है।
व्यापार घाटे में हो तो धन स्थान पर मोतीशंख रखने से अर्थ लाभ होता है।

F- सहदेवी
. धन-धान्य-व्यापार वृद्धि के लिए :-
A. विधिवत सिद्ध की हुई जड़ को लाल वस्त्र में लपेट कर तिजोरी मे रखने से अभीष्ट धन-वृद्धि होती है l
B . दुकान या व्यापारिक प्रतिष्ठान के प्रवेश द्वार के ऊपर लाल वस्त्र में लघु नारियल के साथ अभिमंत्रित कर भीतर की और लटकने से व्यापार में उन्नति होती है।

G- काली हल्दी
1 किसी की जन्मपत्रिका में गुरू और शनि पीडि़त है, जिससे धन न रुकता हो या कम धंधा बार बार ठप हो जाता हो तो वह जातक यह उपाय करें- शुक्लपक्ष के प्रथम गुरूवार से नियमित रूप से काली हल्दी पीसकर तिलक लगाने से ये दोनों ग्रह शुभ फल देने लगेंगे।
2 . यदि किसी के पास धन आता तो बहुत है किन्तु टिकता नहीं है, उन्हे यह उपाय अवश्य करना चाहिए। शुक्लपक्ष के प्रथम शुक्रवार को चांदी की डिब्बी में काली हल्दी, नागकेशर व सिन्दूर को साथ में रखकर मां लक्ष्मी के चरणों से स्पर्श करवा कर धन रखने के स्थान पर रख दें। यह उपाय करने से धन रूकने लगेगा।
3 . यदि आपके व्यवसाय में निरन्तर गिरावट आ रही है, तो शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरूवार को पीले कपड़े में काली हल्दी, 11 अभिमंत्रित गोमती चक्र, चांदी का सिक्का व 11 अभिमंत्रित धनदायक कौड़ियां बांधकर 108 बार
ऊँ नमो भगवते वासुदेव नमः
का जाप कर धन रखने के स्थान पर रखने से व्यवसाय में प्रगतिशीलता आ जाती है।
4 . यदि आपका व्यवसाय मशीनों से सम्बन्धित है, और आये दिन कोई मॅहगी मशीन आपकी खराब हो जाती है, तो आप काली हल्दी को पीसकर केशर व गंगा जल मिलाकर प्रथम बुधवार को उस मशीन पर स्वास्तिक बना दें। यह उपाय करने से मशीन जल्दी खराब नहीं होगी।

H- दक्षिणावर्ती शंख
- विधिवत सिद्ध दक्षिणावर्ती शंख को व्यापारिक संसथान में स्थापित करने से ग्राहकों की कभी कमी नहीं होती और व्यापार दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करता है।
- इसमें रात्रि में गंगाजल मिश्रित दूध भर कर सुबह व्यापारिक प्रतिष्ठान में बाहर से भीतर की ओर छिड़कते हुए जाने से धंधे को किसी भी पडोसी या प्रतिद्वंदी की नज़र नहीं लगती, किसी भी प्रकार का तंत्र मंत्र द्वारा किया गया व्यापार बंध निष्फल हो जाता है।

I - डाब / कुश का बाँदा
किसी शुभ नक्षत्र या विशेषतः भरणी नक्षत्र में इसे प्राप्त कर विधि विधान श्री सुक्त या लक्ष्मी मंत्र से पूजन कर घर की या दुकान की तिजोरी में रखने से दुकान के द्वार के भीतरी ओर लटकाने से धन में वृद्धि होती है ग्राहकों का आवक बनी रहती है और धन चक्र उत्तम गति से चलता है।

J- श्वेतार्क गणपति
जिनके पास धन न रूकता हो या कमाया हुआ पैसा उल्टे सीधे कामोँ मेँ जाता हो उन्हेँ अपने घर मेँ श्वेतार्क गणपति की स्थापना करनी चाहिए।
जो लोग कर्ज मेँ डूबे हैँ उनके लिए कर्ज मुक्ति का इससे सरल अन्य कोई उपाय नही है।
दुकान में अलमारी या गल्ले में रखने से धनागम सुचारू रूप से चलता रहता है और व्यापर में न तो मंदी आती है न किसी विरोधी की बुरी नज़र या किये कराये का असर होता है।

K- जल कुम्भी
यदि व्यापर मंदा हो तो शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार को जल कुम्भी (तालाबों में उगने वाली बेल) करीब डेढ़ फुट लम्बी लाकर स्वछ जल से धोकर एक चौकी पर पिला वस्त्र बिछकर स्थापित करे। लक्ष्मी स्वरुप मानकर उसका विधिवत पूजन करे चन्दन रोली अर्पित करें अक्षत चढ़ाएं लौंग इलायची चढ़ाएं और सवा पाव चावल , ३ हल्दी की गांठ और 7 कमल गट्टे के बीज की ढेरी के साथ लपेट कर उसे उत्तर दिशा में लटका दें। नित्य धुप दें परन्तु बार बार खोलकर न देखे।
कुछ ही दिनों में आर्थिक स्थिरता आने लगेगी.

L - नवग्रह की समिधा
नवग्रह की स्समिधा लाकर उनका पूजन कर प्रतेक गृह के बीज मन्त्रों का २१ बार जप करें और उन्हें एक सफ़ेद वस्त्र में लपेट कर अपनी दुकान के मंदिर में स्थापित करें। इससे यदि ग्रहों के दुष्प्रभाव से व्यापर में मंडी आ रही होगी तो लाभ मिलेगा।

रमेश  दुबे  .......................  ९४१७० ४७३७४ .................

Friday, March 6, 2015

** बजरंग  बाण  का अमोघ - विलक्षण प्रयोग 


ये है बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग:-
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भौतिक मनोकामनाओं की पुर्ति के लिये बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग

* आप अपने इष्ट कार्य की सिद्धि के लिए मंगल अथवा शनिवार का दिन चुन लें। हनुमानजी का एक चित्र या मूर्ति जप करते समय सामने रख लें। ऊनी अथवा कुशासन बैठने के लिए प्रयोग करें। अनुष्ठान के लिये शुद्ध स्थान तथा शान्त वातावरण आवश्यक है। घर में यदि यह सुलभ न हो तो कहीं एकान्त स्थान अथवा एकान्त में स्थित हनुमानजी के मन्दिर में प्रयोग करें।

* हनुमान जी के अनुष्ठान मे अथवा पूजा आदि में दीपदान का विशेष महत्त्व होता है। पाँच अनाजों (गेहूँ, चावल, मूँग, उड़द और काले तिल) को अनुष्ठान से पूर्व एक-एक मुट्ठी प्रमाण में लेकर शुद्ध गंगाजल में भिगो दें। अनुष्ठान वाले दिन इन अनाजों को पीसकर उनका दीया बनाएँ। बत्ती के लिए अपनी खुद की लम्बाई के बराबर कलावे का एक तार लें अथवा एक कच्चे सूत को लम्बाई के बराबर काटकर लाल रंग में रंग लें। इस धागे को पाँच बार मोड़ लें। इस प्रकार के धागे की बत्ती को सुगन्धित तिल के तेल में डालकर प्रयोग करें। समस्त पूजा काल में यह दिया जलता रहना चाहिए। हनुमानजी के लिये गूगुल की धूनी की भी व्यवस्था रखें।

* जप के प्रारम्भ में यह संकल्प अवश्य लें कि आपका कार्य जब भी होगा, हनुमानजी के निमित्त नियमित कुछ भी करते रहेंगे।यदि आप परिवार के किसी और व्यक्ति के लिए कर रहे है तब संकल्प में उस व्यक्ति के नाम से संकल्प ले कि " में अमुक व्यक्ति के अमुक कार्य हेतु इस प्रयोग को कर रहा हूँ ."

* अब शुद्ध उच्चारण से हनुमान जी की छवि पर ध्यान केन्द्रित करके बजरंग बाण का जाप प्रारम्भ करें। “श्रीराम–” से लेकर “–सिद्ध करैं हनुमान” तक एक बैठक में ही इसकी एक माला जप करनी है।

* गूगुल की सुगन्धि देकर जिस घर में बगरंग बाण का नियमित पाठ होता है, वहाँ दुर्भाग्य, दारिद्रय, भूत-प्रेत का प्रकोप और असाध्य शारीरिक कष्ट आ ही नहीं पाते। समयाभाव में जो व्यक्ति नित्य पाठ करने में असमर्थ हो, उन्हें कम से कम प्रत्येक मंगलवार को यह जप अवश्य करना चाहिए।

बजरंग बाण ध्यान
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श्रीराम
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अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं।
दनुज वन कृशानुं, ज्ञानिनामग्रगण्यम्।।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं।
रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।।

दोहा
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निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।

चौपाई
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जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।।
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै।।
जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा।।
बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा।।
अक्षय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।।
लाह समान लंक जरि गई। जै जै धुनि सुर पुर में भई।।
अब विलंब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होई दुख करहु निपाता।।
जै गिरधर जै जै सुख सागर। सुर समूह समरथ भट नागर।।
ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले। वैरहिं मारू बज्र सम कीलै।।
गदा बज्र तै बैरिहीं मारौ। महाराज निज दास उबारों।।
सुनि हंकार हुंकार दै धावो। बज्र गदा हनि विलम्ब न लावो।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीसा।।
सत्य होहु हरि सत्य पाय कै। राम दुत धरू मारू धाई कै।।
जै हनुमन्त अनन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत है दास तुम्हारा।।
वन उपवन जल-थल गृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।
पाँय परौं कर जोरि मनावौं। अपने काज लागि गुण गावौं।।
जै अंजनी कुमार बलवन्ता। शंकर स्वयं वीर हनुमंता।।
बदन कराल दनुज कुल घालक। भूत पिशाच प्रेत उर शालक।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बैताल वीर मारी मर।।
इन्हहिं मारू, तोंहि शमथ रामकी। राखु नाथ मर्याद नाम की।।
जनक सुता पति दास कहाओ। ताकी शपथ विलम्ब न लाओ।।
जय जय जय ध्वनि होत अकाशा। सुमिरत होत सुसह दुःख नाशा।।
उठु-उठु चल तोहि राम दुहाई। पाँय परौं कर जोरि मनाई।।
ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमंता।।
ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल दल।।
अपने जन को कस न उबारौ। सुमिरत होत आनन्द हमारौ।।
ताते विनती करौं पुकारी। हरहु सकल दुःख विपति हमारी।।
ऐसौ बल प्रभाव प्रभु तोरा। कस न हरहु दुःख संकट मोरा।।
हे बजरंग, बाण सम धावौ। मेटि सकल दुःख दरस दिखावौ।।
हे कपिराज काज कब ऐहौ। अवसर चूकि अन्त पछतैहौ।।
जन की लाज जात ऐहि बारा। धावहु हे कपि पवन कुमारा।।
जयति जयति जै जै हनुमाना। जयति जयति गुण ज्ञान निधाना।।
जयति जयति जै जै कपिराई। जयति जयति जै जै सुखदाई।।--------------------- 

Thursday, February 12, 2015

गायत्री - मंत्र 

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गायत्री साधना द्वारा शक्तिकोशों का उद्भव:मन्त्र विद्या को वैज्ञानिक जानते हैं कि जीभ से जो भी शब्द निकलते हैं, उनका उच्चारण कंठ, तालू, मूर्धा, ओष्ठ, दन्त, जिह्वामूल आदि मुख के विभिन्न अंगों द्वारा होता है.
इस उच्चारण काल में मुख के जिन भागों से ध्वनि निकलती है, उन अंगों के नाडी तंतु शरीर के विभिन्न भागों तक फैलते हैं.
इस फैलाव क्षेत्र में कई ग्रंथियां होती हैं, जिन पर उन उच्चारणों का प्रभाव पड़ता है.
जिन लोगों की कुछ सूक्ष्म ग्रंथियां रोगी या नष्ट हो जाती हैं, उनके मुख से कुछ शब्द रुक रुक कर या अस्पष्ट निकलते हैं.
इसी को हकलाना या तुतलाना कहते हैं. मन्त्रों का गठन इसी आधार पर हुआ है. गायत्री मन्त्र में २४ अक्षर हैं. इसका सम्बन्ध शरीर में स्थित २४ ग्रंथियों से है,
जो जागृत होनेपर सद्बुद्धि प्रकाशक शक्तियों को सतेज करती है.
गायत्री मन्त्र के उच्चारण से सूक्ष्म शरीर का सितार २४ स्थानों को झंकार देता है और उससे ऐसी स्वर-लहरी उत्पन्न होती है,
अदृश्य जगत के महत्वपूर्ण तत्वों पर पड़ता है. यह प्रभाव ही गायत्री साधना के फलों का प्रभाव हेतु है.
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Saturday, January 31, 2015

दुर्गा - सप्तशती  के मंत्रो  द्वारा विभिन्न  

उपद्रवों  का  उपचार ----------------
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विविध उपद्रवों से बचने के लिए मां दुर्गा की आराधना इस मंत्र का जाप करते हुए करना चाहिए-
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रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र |
दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम् ||
विश्वव्यापी विपत्तियों के नाश के लिए मां दुर्गा की वंदना इस मंत्र के द्वारा करना चाहिए-
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देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोखिलस्य |
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ||
महामारी नाश के लिए मां दुर्गा की आराधना इस मंत्र के द्वारा करना चाहिए-
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जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी |
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते ||
स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति के लिए मां दुर्गा की स्तुति इस मंत्र के द्वारा करना चाहिए-
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सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी |
त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः ||
पापनाश और भक्ति प्राप्ति के लिए मां दुर्गा की वंदना इस मंत्र के द्वारा करना चाहिए-
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नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे |
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ||
प्रसन्नता प्राप्ति के लिए मां दुर्गा की आराधना इस मंत्र के द्वारा करना चाहिए-
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प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि |
त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकानां वरदा भव ||
जीवन में आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए मां दुर्गा की आराधना इस मंत्र से करना चाहिए-
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देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम् |
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ||
अपने पापों को मिटाने के लिये इस मन्त्र के द्वारा मां दुर्गा की अराधना करना चाहिए-
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हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत् |
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योनः सुतानिव ||
इस मंत्र के द्वारा विश्व के अशुभ तथा भय का विनाश करने के लिए मां दुर्गा की स्तुति करना चाहिए-
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यस्याः प्रभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तमलं बलं च |
सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु ||
सामूहिक कल्याण के लिए मां दुर्गा की वंदना इस मंत्र के द्वारा करना चाहिए-
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देव्या यया ततमिदं जग्दात्मशक्त्या निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूर्त्या |
तामम्बिकामखिलदेव महर्षिपूज्यां भक्त्या नताः स्म विदधातु शुभानि सा नः ||

Monday, January 26, 2015

राहू राहू ससुराल है राहू वह धमकी है जिससे आपको डर लगता है | जेल में बंद निर्दोष कैदी भी राहू है | राहू सफाई कर्मचारी है | स्टील के बर्तन राहू के अधिकार में आते हैं | हाथी दन्त की बनी सभी वस्तुए राहू के रूप हैं | रास्ते का पत्थर राहू है | राहू वह मित्र है जो पीठ पीछे आपकी निंदा करता है | दत्तक पुत्र भी राहू की देन होता है | नशे की वस्तुएं राहू हैं | दर्द का टीका राहू है | हस्पताल का पोस्ट मार्टम विभाग राहू है | राहू मन का वह क्रोध है जो सालों के बाद भी शांत नहीं हुआ है | न लिया हुआ बदला भी राहू है | शेयर मार्केट की गिरावट राहू है उछाल केतु है | ताला लगा मकान राहू है | बदनाम वकील भी राहू है | मिलावटी और सस्ती शराब राहू है | राहू वह धन है जिस पर आपका कोई हक़ नहीं है या जिसे अभी तक लौटाया नहीं गया है | यदि आपकी कुंडली में राहू अच्छा नहीं है तो किसी से कोई चीज़ मुफ्त में न लें क्योंकि हर मुफ्त की चीज़ पर राहू का अधिकार होता है | लेने वाले का राहू और खराब हो जाता है और देने वाले के सर से राहू उतर जाता है | बेटी को भी स्टील के बर्तन अपने मायके से नहीं लेने चाहियें |

राहू के बारे में कहावत है – ” राहु जिसे तारे उसे कौन मारे, राहु जिसे मारे उसे कौन तारे “
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Saturday, January 24, 2015

महान  मन्त्र  शक्ति 

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संसार में एक मात्र सत्य सनातन भारतीय हिंदू संस्कृति ही ऐसी है जिसमें मंत्राराधना तथा प्रार्थना के द्वारा जीवन की समस्त समस्याओं को सान्त्वना मिलती है। यहां तक कि जन्म जन्मांतर के दोषों का समाधान भी मंत्राराधना द्वारा किया जा सकता है। मंत्रों के द्वारा ही दुख दारिद्य रोग शत्रुभय से लेकर विषम से विषम समस्याओं का समाधान मंत्राराधना से किया जा सकता है। अर्थात् धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष चतुर्विध पुरुषार्थ मंत्र साधना से प्राप्त किया जाता रहा है। हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों ने साधना द्वारा ही ब्रह्ममांड विनायक जगनियंता परम पिता परमात्मा का साक्षात्कार करके संसार को समृद्धिशाली बनाने के लिये बेद वेदांग तथा अनेक शास्त्रों की महती संरचना की है। उन्होंने किसी यांत्रिक क्रिया से अखिल ब्रह्मांड की संरचना को उजागर नहीं किया। ब्रह्मांड से समस्त रहस्य उन्होंने साधना आराधना तथा मंत्र शक्ति के बल पर ही आत्मानुभूति द्वारा सहज संभाव्य कर दिया है। प्रकृति की दिव्यता में ही परमात्म के विराट स्वरूप के दर्शन उन्होंने किये हैं। प्रकृति की अनुकंपा तथा प्रकोप को शांत करने के लिये मंत्राराधना उनकी सहज प्रक्रिया थी। यहां तक कि भाषा के स्वर और व्यंजन का एक-एक अक्षर मंत्र का काम करता है फिर मंत्रों की महिमा तो महान् है। सृष्टि के शुभारंभ से ही हमारे मंत्रद्रष्टा मनीषियों ने समयानुसार पूरे सम्वत्सर में उत्सवों की परंपरा में मंत्रों तथा साधना का लाभ स्वाभाविक रूप में प्राप्त करने की रीति रिवाज प्रस्थापित करके मानव मात्र का उपकार कर दिया है। जैसे बासंतिक तथा शारदीय नवरात्र के समय शक्ति की साधना करके जनकल्याणकारी अनिवार्यता हमारे जन-जन की भावना में समाया है। चार्तुमास में संसार का कल्याण करने वाले सदाशिव की आराधना प्रार्थना साधना करके हम लाभान्वित होकर जीवनोत्कर्ष प्राप्त करते हैं। आर्थिक प्रभाव का समाधान करने के लिये हम जगमाता मां महालक्ष्मी की पूजा-आराधना करते हैं। श्रीसूक्तादि श्रेष्ठ स्तोत्रों का पठन-पाठन करते हैं। इसी प्रकार जातक के जन्मांगों में आई जटिल समस्याओं के समाधान के लिये ग्रहदासों को दूर करने के लिये ग्रहों के मंत्रों का जप साधना दान उपाय आदि किया जाता है। शिव-शक्ति की उपासना में संपूर्ण रुद्राष्टाध्यायी तथ्य दुर्गा सप्तशती, समस्त समस्याओं के समाधान के लिये सक्षम है। आवश्यकतानुसार मंत्रों का चयन करके उनके सवात्नक्षीय मंत्र जप से साधक इच्छा लाभ उठाते रहते हैं। मंत्र महोदधि की महिमा अनन्त है। हम उन्हीं कतिपय मंत्रों का विवरण विश्वास पूर्वक दे रहे हैं। जिनके द्वारा चार दशक से हम जनकल्याण की भावना से पीड़ित जनों को लाभान्वित किया जाता रहा है। मंत्र साधना में श्रद्धा विश्वास तथा नियम पूर्वक रहकर समर्पण भावना से साधन करना परमावश्यक है। ‘‘पहला सुख निरोगी काया।’’ के सिद्धांत को मानते हुये स्वास्थ्य की सुरक्षा सर्व प्रथम है। स्वास्थ्य लाभ के लिये महामृत्युंजय तथा मृत संजीवनी का प्रयोग करना चाहिये, महामृत्युंजय के भी कई उच्चारण सम्पुट भेद ऋषि-मुनियों द्वारा माने गये हैं जैसे ‘‘¬ हौं ¬ जूं सः भुर्भुवः स्वः त्रयम्बकं यजा महे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्यो र्मुक्षीय मा{मृतात।। ¬ भुर्भुवः स्वः जूं सः ह्रौं ¬ ।।’’ सामान्यतया रुद्राष्टाध्यायी में मूल मंत्र के श्लोक को इसक प्रकार सम्पुटित किया जाता है। ‘‘¬ हौं जूं सः ¬ भूर्वुवः स्वः त्रयम्बकं यजा महे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्यो र्मुक्षीय मा{मृतात।। स्वः भुवः भूः ¬ सः जूं हौ ¬ ।। श्लोक के साथ सम्पुट की विशेषता ही महामंत्र है। केवल मूल मंत्र में ‘‘¬ हौं जूं सः ।’’ का अधिकाधिक जप किया जाता है तो अच्छे परिणाम सामने आते हैं। मृत संजीविनी मंत्र के लिये अपने स्वयं के लिये निम्न प्रयोग किया जाता है। ‘‘¬ नमो भगवती मृत संजीविनी ‘मम’ रोग शान्ति कुरु कुरु स्वाहा।’’ दूसरों के लिये रोगी व्यक्ति का गोत्र नाम उच्चारण प्रत्येक मंत्र के साथ किया जाना चाहिये। मंत्रों के साथ आवश्यकतानुसार मृत्युंजय स्तोत्रों का पाठ अनुष्ठानों को विशेष बल प्रदान करने वाला होता है। इसमें अनुभवी विद्वानों द्वारा प्रेरित निर्दिष्ट होकर ही प्रयोग करना चाहिये। बिना विधि के परिचय विना प्रयोग प्रतिकूल फलदायी भी हो जाते हैं। ‘‘दूजा सुख घर में हो माया।’’ के अनुसार घर में सुख-समृद्धि के लिये स्तोत्र-मंत्र साधना निरंतर करनी चाहिये। प्रभावों से बचने के लिये समृद्धि की देवता महालक्ष्मी की उपासना करनी चाहिये। आर्थिक संपन्नता के लिये भी सूक्त, कनकधारा महालक्ष्मी स्तोत्र, श्री गोपाल सहस्रनाम स्तोत्र, ललिताम्बा, त्रिपुरसुंदरी आदि स्तोत्रों का नित्य नैमित्यिक घरों तथा प्रतिष्ठानों में किया जाना ही चाहिये। विशेषतः ऋणहरण गणेश स्तोत्र तथा मंत्र जप ऋण विमुक्ति का वरदान देता रहता है। केवल मंत्र का पुरश्चरण भी पर्याप्त होता है। मंत्र: ¬ गौं गणेशं )ण छिन्दि वरेण्यं हुं नमः फट्।’’ का विधिवत सवा लाख जप के साथ घर में हवन करें। प्रतिष्ठान में हवन नहीं करना चाहिये। ‘‘तीजा सुख वैठन को छाया।’’ के अनुसार भी हनुमान भगवान की उपासना, मंगलस्तोत्र का पाठ जप हितकर होता है। श्री हनुमान जी की उपासना में श्री हनुमान चालीसा के सवा लाख पाठ तथा श्री वज्रंग वंदना एवं वज्रांग विनय स्तोत्रों का सहारा लेना चाहिये। प्रति मंगलवार को व्रत करें अथवा वन्दरों को केले-चने अथवा नमकीन वस्तु खिलानी चाहिये। श्री वाल्मीकि रामायण का श्री हनुमद् उद्घोष जप करना चाहिये। श्री हनुमान अष्टक भी सर्व विघ्नों के शमन के लिये उपयोगी है। चैथा सुख सुयोग सन्तति का माना गया है। इसके लिये भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप की आराधना करनी चाहिये। संतान गोपाल मंत्र तथा स्तोत्र के साथ श्री हरिवंशमहापुराण का किसी सिद्ध वक्ता से करना चाहिये। सन्तान प्राप्ति के लिये। ‘‘देवकी सुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्णं तामहं शरणंगतः।।’’ का मंत्र जाप सर्वोपयोगी है। संतान की उत्पत्ति पैत्रिक ऋण से उऋण करती है। इसके अतिरिक्त जीवन में अनेक प्रभाव तथा समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। जन्मांगों, महादशाओं के दुष्प्रभावों के कारण व्यक्ति हताश होकर तिलमिला जाता है। राज्यकार्यों में असफलता की स्थिति में राज्य में विजयार्थ महामंत्रों का सहारा लेना पड़ता है। हमारे शास्त्रों में सभी महाकष्टों के उपाय तथा मंत्र उपस्थित है। जीवन में बहुत सी समस्यायें ऐसी आ जाती हैं जिनको सुलझाना कठिन हो जाता है। उनके लिये अन्ततः मंत्र शक्ति का सहारा लेना पड़ता है। जैसे विवाह विलंब, राज्य कार्यों में सफलता, खेल के मैदान में विजय, रोजगार में बंधन के कारण काफी असफलता, शत्रुबाधा, गृह कलह आदि में शांति समाधान। इन सभी के लिये विभिन्न मंत्रों स्तोत्रों तथा उपायों का सहारा लिये बिना सफलता नहीं मिलती है। अतः उनके लिये अनुभवी सज्जनों का निर्देशन आवश्यक है। पुस्तकों का परामर्श ही पर्याप्त नहीं होता। कभी-कभी मंत्रों का विपरीत प्रभाव हो जाता है अतः विधि विशेषज्ञता अवश्य समझनी आवश्यक है। संस्कृत के अतिरिक्त हमारे शाबर मंत्र बड़े मुटपटे होते हैं और तत्काल वृत्त फल देते हैं। श्री राम चरित मानस की सभी चैपाइयों को शाबर मंत्र मानना चाहिये। सकल जन साधारण अपने अटके कामों की सफलता के लिये श्री राम चरित मानस का अखंड पाठ करते कराते हैं। उन्हें अपने उद्देश्य की सहज सफलता प्राप्त हो जाती है। आवश्यकतानुसार चैपाइयों का स्वतंत्र जप करने से उद्देश्य सफल हो जाते हैं। हमारे मनीषी ऋषियों द्वारा प्रदत्त अनन्त साहित्य समृद्धि हमारे पास है। उसको समझकर तथा आवश्यकतानुसार सुधार करके हमारे ज्योतिष कार्यालय में सदाचारी विद्वानों द्वारा हम अनेक प्रयोग करते, करवाते हैं जिनमें हमें आशातीत सफलता प्राप्त हुई है। दश विद्वानों की साधना के अतिरिक्त कालसर्प के सफल प्रयोगों का हमारे यहां प्रयोग होता रहता है। हमारे सभी प्रयोग सत्य सनातन शास्त्रानुसार सात्विक सरल सदाचरित और सिद्धिदायक होते हैं। यही हमारी सत्य सैद्धांतिक सारगर्भित सफल सिद्धि निष्ठा है। मंत्रों में हमारा पूर्ण विश्वास है।

Friday, January 2, 2015


*************************************************देवराहा बाबा- अलौकिक शक्ति और चमत्कार**


देवराहा बाबा- अलौकिक शक्ति और चमत्कार
विचित्रता के
लिए
मशहूर
भारत
को साधु-
संतों की भूमि के
रूप
में
जाना जाता है।
अपनी साधना,
अलौकिक
शक्ति और चमत्कार के लिए कई संत
पूरी दुनिया में मशहूर हैं। इस बाबा का नाम
देवराहा बाबा है। देवराहा बाबा के भक्तों में कई बड़े
लोगों का नाम शुमार है। डॉ राजेंद्र प्रसाद,
इंदिरा गांधी, राजीव गांधी,
अटल बिहारी वाजपेयी, लालू
प्रसाद, मुलायम सिंह और
कमलापति त्रिपाठी जैसे राजनेता हर
समस्या के समाधान के लिए बाबा की शरण में
आते थे। मार्कण्डेय सिंह के मुताबिक, वह
किसी महिला के गर्भ से
नहीं बल्कि पानी से अवतरित
हुए थे। यमुना के किनारे वृन्दावन में वह 30 मिनट तक
पानी में बिना सांस लिए रह सकते थे।
उनको जानवरों की भाषा समझ में
आती थी। खतरनाक
जंगली जानवारों को वह पल भर में काबू कर
लेते थे।
वह यूपी के देवरिया जिले के रहने वाले थे।
मंगलवार, 19 जून सन् 1990
को योगिनी एकादशी के दिन
अपना प्राण त्यागने वाले इस बाबा के जन्म के बारे में
संशय
है। कहा जाता है कि वह करीब 900
साल तक जिन्दा थे। (बाबा के संपूर्ण जीवन के
बारे में अलग-अलग मत है, कुछ लोग
उनका जीवन 250 साल तो कुछ लोग 500 साल
मानते हैं।)
मार्कण्डेय महराज के मुताबिक, पूरे जीवन
निर्वस्त्र रहने वाले बाबा धरती से 12 फुट
उंचे लकड़ी से बने बॉक्स में रहते थे। वह
नीचे केवल सुबह के समय स्नान करने के
लिए आते थे। इनके भक्त पूरी दुनिया में फैले
हैं। राजनेता, फिल्मी सितारे और बड़े-बड़े
अधिकारी उनके शरण में रहते थे।
वह अवतारी व्यक्ति थे।
उनका जीवन बहुत सरल और सौम्य था।
वह फोटो कैमरे और
टीवी जैसी चीजों को देख
अचंभित रह जाते थे। वह उनसे
अपनी फोटो लेने के लिए कहते थे, लेकिन
आश्चर्य की बात यह
थी कि उनका फोटो नहीं बनता था।
वह नहीं चाहते तो रिवाल्वर से
गोली नहीं चलती थी।
उनका निर्जीव वस्तुओं पर नियंत्रण था।कुंभ
मेले के दौरान बाबा अलग-अलग जगहों पर प्रवास
किया करते थे। गंगा-यमुना के तट पर उनका मंच
लगता था।
वह 1-1 महीने दोनों के किनारे रहते थे।
जमीन से कई फीट ऊंचे स्थान पर
बैठकर वह लोगों को आशीर्वाद दिया करते थे।
जनश्रूति के मुताबिक, वह
खेचरी मुद्रा की वजह से
आवागमन से
कहीं भी कभी भी चले
जाते थे। उनके आस-पास उगने वाले बबूल के पेड़ों में कांटे
नहीं होते थे। चारों तरफ सुंगध
ही सुंगध होता था।
बाबा सभी के मन की बातें जान लेते
थे। उन्होंने पूरे जीवन कुछ
नहीं खाया। सिर्फ दूध और शहद
पीकर जीते थे।
श्रीफल का रस उन्हें बहुत पसंद था।

कामिया - सिन्दूर - मोहन - मंत्र 

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 “हथेली में हनुमन्त बसै, भैरु बसे कपार।
नरसिंह की मोहिनी, मोहे सब संसार।
मोहन रे मोहन्ता वीर, सब वीरन में तेरा सीर।
सबकी नजर बाँध दे, तेल सिन्दूर चढ़ाऊँ तुझे।
तेल सिन्दूर कहाँ से आया ? कैलास-पर्वत से आया।
कौन लाया, अञ्जनी का हनुमन्त, गौरी का गनेश लाया।
काला, गोरा, तोतला-तीनों बसे कपार।
बिन्दा तेल सिन्दूर का, दुश्मन गया पाताल।
दुहाई कमिया सिन्दूर की, हमें देख शीतल
हो जाए।
सत्य नाम, आदेश गुरु की। सत् गुरु, सत् कबीर।
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 विधि- आसाम के ‘काम-रुप कामाख्या, क्षेत्र में
‘कामीया-सिन्दूर’ पाया जाता है। इसे प्राप्त
कर लगातार सात रविवार तक उक्त मन्त्र
का १०८ बार जप करें। इससे मन्त्र सिद्ध
हो जाएगा। प्रयोग के समय ‘कामिया सिन्दूर’
पर ७ बार उक्त मन्त्र पढ़कर अपने माथे पर टीका लगाए। ‘टीका’ लगाकर जहाँ जाएँगे,
सभी वशीभूत होंगे।

 आकर्षण एवं वशीकरण के प्रबल सूर्य मन्त्र
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 १॰ “ॐ नमो भगवते श्रीसूर्याय ह्रीं सहस्त्र-
किरणाय ऐं अतुल-बल-पराक्रमाय नव-ग्रह-दश-
दिक्-पाल-लक्ष्मी-देव-वाय, धर्म-कर्म-
सहितायै ‘अमुक’ नाथय नाथय, मोहय मोहय,
आकर्षय आकर्षय, दासानुदासं कुरु-कुरु, वश कुरु-कुरु
स्वाहा।” विधि- सुर्यदेव का ध्यान करते हुए उक्त मन्त्र
का १०८ बार जप प्रतिदिन ९ दिन तक करने से
‘आकर्षण’ का कार्य सफल होता है।

२॰ “ऐं पिन्स्थां कलीं काम-पिशाचिनी शिघ्रं
‘अमुक’ ग्राह्य ग्राह्य, कामेन मम रुपेण
वश्वैः विदारय विदारय, द्रावय द्रावय, प्रेम-पाशे बन्धय बन्धय, ॐ श्रीं फट्।”
विधि- उक्त मन्त्र को पहले पर्व, शुभ समय में
२०००० जप कर सिद्ध कर लें। प्रयोग के समय
‘साध्य’ के नाम का स्मरण करते हुए प्रतिदिन
१०८ बार मन्त्र जपने से ‘वशीकरण’ हो जाता है।
---------------------------------------------------------- रमेश  दुबे  "पंडित "