Wednesday, May 29, 2013


                                MAA   KAMAKHYA

Maa kamakhya is a shakti of shiva and she is a goddess of tantra. All tantrik in this world devotee her. She gave him power of tanatra n mediation. She is Adhi Vidhya and Mahashakti. Her temple is situated in Assam.Maa Kamakhya, temple is situated on Nilachal Hill in Guwahati, which is away from eight km west of the city. This temple honour the Mother Goddess Kamakhya, the essence of female energy. It is one of the 108 Shakti Peethas of Maa Aadishakti. Legend has it that Kamakhya came into existence when Lord Shiva was carrying the corpse of his wife Sati, and her "yoni" (female genitalia) fell to the ground at the spot where the temple now stands. The temple is a natural cave with a spring. Down a flight of steps to the bowel of earth, is located a dark, mysterious chamber. Here, draped with a silk sari and covered with flowers, is kept the "matra yoni".


The most important three days festival observed here is the Ambuvaci (Ameti) fertility festival where in it is believed that the Goddess (mother Earth) undergoes her menstrual period. It’s happen every year last week of June that’s called Ambuvachi. It’s a great tantrik festival for Maa kamakhya devotee.


“KAMAKHYE KAMASAMPANNE KAMESWARI HARAPRIYA

KAMANAM DEHI ME NITYAM KAMESWARI NAMO ‘STUTE.”



                             या  देवी  सर्व - भूतेषु   प्रक्रति   रूपेण  संस्थिता  
                   नमस्तस्ये   नमस्तस्ये  नमस्तस्ये  नमो  नमः 
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असली रत्न इतने महंगे होते है कि कभी-कभी साधारण इंसान के बस की बाहर की बात हो जाती है। तो उन रत्नों के बदले वृक्ष की जड़ भी काम आती है अलगअलग ग्रह के लिए अलग-अलग वृक्ष की जड़ होती है उनके नाम इस प्रकार है---
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ग्रह-----------------रत्न-----------------------जड़
सूर्य-------------माणिक्य ---------------बेल की जड़ (बिल्व मूल)
चन्द्र-------मोती या मून स्टोन---------खिरनी (खिरिका मूल)
मंगल-----लाल मूंगा(red coral)-------अनंत मूल
बुध-------------पन्ना---------------------विधारा(वृद्धाधारक मूल)
बृहस्पति------पोखराज़ -----------------वामन-हाटी(हल्दी की जड़)
शुक्र-------------हीरा----------------------रामवासकी मूल
शनि------------नीलम--------------------बिच्छू की जड़(स्वेट बेडाल)
राहु-------------गोमेद---------------------स्वेत-चन्दन
केतु------------कैट्स आई ---------------अश्व गंध या असगंध



कुछ और जड़े भी है जो ज्यादा शक्तिशाली है। जैसे---

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१---शुक्र के लिए ''स्वेत-लज्जावती''
२---नवग्रह के लिए ''महासमुद्रम''
३---राहु के लिए बन-चंडाल
४---शत्रु बाधा के लिए इछार मूल
५---शुगर के लिए भी जड़ होती hai ''गोलोंच'' नाम कि…

Wednesday, May 22, 2013



महामाया  स्तवन 
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शुक उवाच
भल्लाटनगरं त्यक्त्वा विष्णुभक्तः शशिध्वजः |
आत्मसंसारमोक्षाय मायास्तवमलं जगौ ||
शशिध्वज उवाच
ॐ ह्रीङ्कारां सत्त्वसारां विशुद्धां
ब्रह्मादीनां मातरं वेदबोध्याम् |
तन्वीं स्वाहां भूततन्मात्रकक्षां
वन्दे वन्द्यां देवगन्धर्वसिद्धैः ||
लोकातीतां द्वैतभूतां समीडे
भूतैर्भव्यां व्याससामासिकाद्यैः |
विद्वद्गीतां कालकल्लोललोलां
लीलापाङ्गक्षिप्तसंसारदुर्गाम् ||
पूर्णां प्राप्यां द्वैतलभ्यां शरण्यां
आद्ये शेषे मध्यतो या विभाति |
नानारूपैर्देवतिर्यङ्मनुष्यैः
तामाधारां ब्रह्मरूपां नमामि ||
यस्या भासा त्रिजगद्भाति भूतैः
न भात्येतत्तदभावे विधातुः |
कालो दैवं कर्म चोपाधयो ये
तस्या भासा तां विशिष्टां नमामि ||
भूमौ गन्धो रसताऽप्सु प्रतिष्ठा
रूपं तेजस्येव वायौ स्पृशत्वम् |
खे शब्दो वा यच्चिदा भाति नाना
तामभ्येतां विश्वरूपां नमामि ||
सावित्री त्वं ब्रह्मरूपा भवानी
भूतेशस्य श्रीपतेः श्रीस्वरूपा |
शची शक्रस्यापि नाकेश्वरस्य
पत्नी श्रेष्ठा भासि माये जगत्सु ||
बाल्ये बाला युवती यौवने त्वं
वार्धक्ये या स्थविरा कालकल्पा |
नाना कार्यैर्यागयोगैरुपायैः
ज्ञानातीता कामरूपा विभासि ||
वरेण्या त्वं वरदा लोकसिद्धा
साध्वी धन्या लोकमान्या सुकन्या |
चण्डी दुर्गा कालिका कालिकाख्या
नाना देशे रूपवैषैर्विभासि ||
तव चरणसरोजं देवि देवादिवन्द्यं
यदि हृदयसरोजे भावयन्तीह भक्त्या |
श्रुतियुगकुहरे वा संश्रुतं धर्मसम्पत्
जनयति जगदाद्ये सर्वसिद्धिं च तेषाम् ||
मायास्तवमिदं पुण्यं शुकदेवेन भाषितम् |
मार्काण्डेयादवाप्यापि सिद्धिं लेभे शशिध्वजः ||
|| इति शिवम् ||

श्री   माता  कुब्जिका   स्त्रोत 
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श्रीभैरव उवाच
जय त्वं मालिनी देवी निर्मले मलनाशिनी |
ज्ञानशक्तिः प्रभुर्देवी बुद्धिस्त्वं तेजवर्धिनी ||
जननी सर्वभूतानां संसारेऽस्मिन् व्यवस्थिता |
माता वीरावली देवी कारुण्यं कुरु वत्सले ||
जयति परमतत्त्वनिर्वाणसंभूति तेजोमयी निःसृता व्यक्तरूपा परा ज्ञानशक्तिस्त्वमिच्छा क्रिया ऋज्विरेखा पुनः सुप्तनागेन्द्रवत् कुण्डलाकाररूपा प्रभुर्नादशक्तिस्तु संगीयसे भासुरा ज्योतिरूपा सुरूपा शिवा ज्येष्ठनामा च वामा च रौद्री अनाख्याम्बिका बिन्दुरूपावधूतार्ध चन्द्राकृतिस्त्वं त्रिकोणा अ उ म कारा इकारा एकार संयोजितैकत्त्वमापद्यसे तत्त्वरूपा भगाकारवत् स्थायिनी आदितत्त्वोद्भवा योनिरूपा च श्रीकण्ठसंबोधिनी रुद्रमाता ततानन्तशक्तिः सुसूक्ष्मा त्रिमूर्त्यामरीशार्घिनी भारभूतिस्तिथीशात्मिका स्थाणुभूता हराख्या च झण्टीश भौक्तीश सद्यात्मिकानुग्रहेशार्चिता क्रूरसङ्गे महासेनसंभोगिनी षोडशान्तामृता बिन्दुसन्दोह निष्यन्द देहप्लुताशेष सम्यक्परानन्द निर्वाणसौख्यप्रदे भैरवी भैरवोद्यानक्रीडानुसक्ते परा मालिनी रुद्रमालार्चिते रुद्रशक्तिः खगी सिद्धयोगेश्वरी सिद्धमाता विभुः शब्दराशीति योन्यार्णवी वाग्विशुद्धासि वागेश्वरी मातृकासिद्धमिच्छा क्रिया मङ्गला सिद्धलक्ष्मी विभूतिः सुभूतिर्गतिः शाश्वता ख्याति नारायणी रक्तचण्डा करालेक्षणा भीमरूपा महोच्छुष्म यागप्रिया त्वं जयन्त्याजिता रुद्रसम्मोहिनी त्वं नवात्मानदेवस्य चोत्सङ्गयानाश्रिता मन्त्रमार्गानुगैर्मन्त्रिभिः वीरबोधानुरक्तैः सुभक्तैश्च संपूज्यसे देवि पञ्चामृतैर्दिव्य पानोत्सवैरेकजन्म द्विजन्म त्रिजन्म चतुःपञ्चषट् सप्त जन्मोद्भवैस्तैश्च नारैः शुभैः तर्प्यसे मद्यमांसप्रिये मन्त्रविद्याव्रतोद्भासिभिः मुण्डकङ्काल कापालिभिः दिव्यचर्यानुरूढैः नमस्कार ॐकार स्वाहास्वधाकार वौषड्वषट्कार फट्कार हूङ्कार जातीभिरेतैश्च मन्त्राक्षरोच्चारिभिः चाक्षसूत्रावळीजापिभिः साधकैः पुत्रकैर्मातृभिर्मण्डले दीक्षितैर्योगिभिः योगिनीवृन्दमेलापकैः रुद्रक्रीडालसैः पूज्यसे योगिनां योगसिद्धिप्रदे देवि त्वं पद्मपत्रोपमैर्लोचनैः स्नेहपूर्णैस्तु यं पश्यसे तस्य दिव्यान्तरिक्षस्थिता सप्तपाताल षट्खेचरी सिद्धिरव्याहता वर्तते |
भक्तितो यः पठेद्दण्डकं एककालं द्विकालं त्रिकालं शुचिः संस्मरेद्यः सदा मानवः सोऽपि शस्त्राग्निचौरार्णवे पर्वताग्रेऽपि संरक्षसे देवि पुत्रानुरागान् महालक्ष्मि ये हेमचौरान्यदारानुसक्तांश्च ब्रह्मघ्न गोघ्ना महादोषदुष्टा विमुञ्चन्ति संस्मृत्य देवि त्वदीयं मुखं पूर्णचन्द्रानुकारं स्फुरद्दिव्यमाणिक्य सत्कुण्डलोद्घृष्ट गण्डस्थलं येऽपि बद्धा दृढैर्बन्धनैः नागपाशैः भुजाबद्ध पादार्गळैस्तेऽपि त्वन्नामसङ्कीर्तनाद्देवि मुञ्चन्ति घोरैर्महाव्याधिभिः संस्मृत्य पादारविन्दद्वयं ते महाकालि कालग्नितेजःप्रभे स्कन्दगोविन्दब्रह्मेन्द्र चन्द्रार्कपुष्पायुधैः मौलिमालालि सत्पद्मकिञ्जल्कसत्किञ्जरैः सेव्यसे सर्ववीराम्बिके भैरवी भैरवस्ते शरण्यागतोऽहं क्षमस्वापराधं क्षमस्वापराधं शिवे ||
|| नमः श्रीपुरभैरव्यै ||

Monday, May 20, 2013



यदि आप किसी क्षेत्र में सफल होना चाहते है अथवा आपके कार्यों में बाधायें आ रही है, तो आप शनिवार के दिन काले धागे में पीपल के 8 पत्तों को एक गांठ में एक साथ बांधें। अगले शनिवार को जब नई गांठ बांधे तो पहली वाली गांठ को उतार कर बहते हुये जल में प्रवाहित कर दें। आप बाधाओं से मुक्त हो जायेंगे।

श्री  सीता  - राम  स्त्रोत  :-
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अयोध्यापुरनेतारं मिथिलापुरनायिकाम् |
राघवाणामलङ्कारं वैदेहानामलङ्क्रियाम् ||
रघूणां कुलदीपं च निमीनां कुलदीपिकाम् |
सूर्यवंशसमुद्भूतं सोमवंशसमुद्भवाम् ||
पुत्रं दशरथाख्यस्य पुत्रीं जनकभूपतेः |
वसिष्ठानुमताचारं शतानन्दमतानुगाम् ||
कौसल्यागर्भसम्भूतं वेदिगर्भोदितां स्वयम् |
पुण्डरीकविशालाक्षं स्फुरदिन्दीवरेक्षणाम् ||
चन्द्रकान्ताननाम्भोजं चन्द्रबिम्बोपमाननाम् |
मत्तमातङ्गगमनं मत्तहंसवधूगताम् ||
शरणागतगोप्तारं प्रणिपातप्रसादिकाम् |
कालमेघनिभं रामं कार्तस्वरसमप्रभाम् ||
दिव्यसिंहासनासीनं दिव्यस्रग्वस्त्रभूषणाम् |
अनुक्षणं कटाक्षाभ्यां अन्योन्येक्षणकाङ्क्षिणौ ||
अन्योन्यसदृशाकारौ त्रैलोक्यगृहदम्पतौ |
इमौ युवां प्रणाम्यहं भजाम्यहं कृतार्थताम् ||
अनेन स्तौति यः स्तुत्यं रामं सीतां च भक्तितः |
तस्य तौ तनुतां शीघ्रं सम्पदः सकलार्थदाः ||
अस्य श्रीरामचन्द्रस्य जानक्याश्च विशेषतः |
कृतं हनुमता पुण्यं स्तोत्रं सौख्यविमुक्तिदम् |
यः पठेत् प्रातरुत्थाय सर्वान् कामानवाप्नुयात् ||
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RAMESH DUBEY -- 9417047374

Sunday, May 19, 2013



तन्त्र   शास्त्र   में  नारी  
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तंत्र शास्त्र के बारे में बहुत-सी भ्रांतियां प्रचलित हैं। विशेषत: पचं 'मकार' साधना को लेकर, जिसमें मत्स्य, मदिरा, मुद्रा मैथुन आदि का वर्णन है। इसी कारण कुंआरी कन्या तथा मैथुन पर समय-समय पर आक्षेप लगते रहे हैं। 

वस्तुत: इन शब्दों का अर्थ शाब्दिक न होकर गुप्त था जिसमें कुंआरी कन्या का महत्व नारी में अंतरनिहित चुंबकीय शक्ति (मैग्नेटिक फोर्स) से था।

नारी जितना पुरुष के संसर्ग में आती है वह उतनी ही चुंबकीय शक्ति का क्षरण करती जाती है। चुंबकीय शक्ति ही आद्याशक्ति है जिसे अंतर्निहित करके काम शक्ति को आत्मशक्ति में परिवर्तित किया जाता है। यह शक्ति दो केंद्रों में विलीन होती है।

प्रथमत: मूलाधार चक्र में, जहां से यह ऊर्जा जननेंद्रिय के मार्ग से नीचे प्रवाहित होकर प्रकृति में विलीन हो जाती है और यदि यही ऊर्जा भौंहों के मध्य स्‍थि‍त आज्ञा चक्र से जब ऊपर को प्रवाहित होती है तो सहस्रार स्‍थि‍त ब्रह्म से एकीकृत हो जाती है।

अत: कुंआरी कन्या का प्रयोग तांत्रिक उसकी शक्ति की सहायता से दैहिक सुख प्राप्त करने हेतु नहीं, ‍अपितु उसे भैरवी रूप में प्रतिष्ठित करके ब्रह्म से सायुज्य प्राप्त करने हेतु करता है.........



माँ  शैल- पुत्री   की पूजन  विधि :-

भगवती दुर्गा का प्रथम स्वरूप भगवती शैलपुत्रीके रूप में है। हिमालय के यहां जन्म लेने से भगवती को शैलपुत्रीकहा गया। 
भगवती का वाहन वृषभ है, उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल का पुष्प है। इस स्वरूप का पूजन आज के दिन किया जाएगा।
आवाहन, स्थापना और विसर्जन ये तीनों प्रात:काल ही होंगे। किसी एकांत स्थल पर मृत्तिका से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं, बोयें। उस पर कलश स्थापित करें। कलश पर मूर्ति स्थापित करें, भगवती की मूर्ति किसी भी धातु अथवा मिट्टी की हो सकती है। कलश के पीछे स्वास्तिक और उसके युग्म पा‌र्श्व में त्रिशूल बनायें। जिस कक्ष में भगवती की स्थापना करें, उस कक्ष के उत्तर और दक्षिण दिशा में दो स्वास्तिक लगा दें।
ध्यान:-
****वन्दे वांछितलाभायाचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्रीयशस्विनीम्।
पूणेन्दुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा।
पटाम्बरपरिधानांरत्नकिरीठांनानालंकारभूषिता।
प्रफुल्ल वंदना पल्लवाधंराकातंकपोलांतुगकुचाम्।
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितम्बनीम्।
स्तोत्र:-
****प्रथम दुर्गा त्वंहिभवसागर तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायनींशैलपुत्रीप्रणमाम्हम्।
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।
भुक्ति मुक्ति दायनी, शैलपुत्रीप्रणमाम्यहम्।
कवच:-
*****ओमकार: मेशिर: पातुमूलाधार निवासिनी
हींकारपातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी।
श्रींकारपातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी।
हुंकार पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत।
फट्कार:पातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा।
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शैलपुत्रीके पूजन से मूलाधार चक्र जाग्रत होता है, जिससे अनेक प्रकार की उपलब्धियां होती हैं।


मंत्र
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ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

हवन विधि
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जप के समापन के दिन हवन के लिए बिल्वफल,तिल,चावल,चन्दन,पंचमेवा,जायफल,गुगुल,करायल,गुड़,सरसों धूप,घी मिलाकर हवन करे।रोग शान्ति के लिए,दूर्वा,गुरूचका चार इंच का टुकड़ा,घी मिलाकर हवन करे।श्री प्राप्ति के लिए बिल्वफल,कमलबीज,तथा खीर का हवन करे।ज्वरशांति में अपामार्ग,मृत्युभय में जायफल एवं दही,शत्रुनिवारण में पीला सरसों का हवन करें।हवन के अंत में सुखा नारियल गोला में घी भरकर खीर के साथ पुर्णाहुति दें।इसके बाद तर्पण,मार्जन करे।एक कांसे,पीतल की थाली में जल,गो दूध मिलाकर अंजली से तर्पण करे।मंत्र के दशांश हवन,उसका दशांश तर्पण,उसका दशांश मार्जन,उसका दशांश का शिवभक्त और ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए।तर्पण,मार्जन में मूल मंत्र के अंत मे तर्पण में "तर्पयामी" तथा मार्जन मे "मार्जयामी" लगा लें।अब इसके दशांश के बराबर या १,३,५,९,११ ब्राह्मणों और शिव भक्तों को भोजन कर आशिर्वाद ले।जप से पूर्व कवच का पाठ भी किया जा सकता है,या नित्य पाठ करने से आयु वृद्धि के साथ रोग से छुटकारा मिलता है ...........

RAMESH DUBEY -- 94170 47374....

Saturday, May 18, 2013



Attitude!
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How we react, what we do or say, all depends on our attitude. It determines whether we'll be happy or sad. Attitude can help, or hinder us in all areas of our lives. 

If your thoughts are constantly of doom and gloom, you will receive the same in return. 

Your thoughts and your perception of the world influences all that you do, and all that you are, and all that you can be. 

Changing your attitude is really changing the way you see things. To begin the change, you must start looking for the good in every situation, rather than the negative.

So, you see the choice is yours. If we compare attitude to swimming, which are you doing?

Are you swimming - even against the currents and the waves, you keep going, you see your destination and you are taking action to reach it.

Are you floating - just allowing the waves to carry you, you end up where ever the water takes you.

Are you drowning - you see the waves and the currents as difficulties you cannot overcome. ...


                                                 महा-कालीम त्रि- नयनं नाना-भूषण भूषितां !
                                                नीलांजन-सम्प्रख्याम दस-पादा -ननाम भजे !!
                                                 मधु-कैटभ -नाशार्थ याम तुष्टा वाम्बु-जासंः
                                               एवं ध्याये-न -महाकालीम कामबीज स्वरुपिणी !!!


                                                RAMESH DUBEY -- 9417047374
सभी  मित्रों  को हार्दिक  अभिनंदन 

अति प्रभावशाली आकर्षण मंत्र: झां झां झां हां हां हां हें हें (jham jhaam jhaam haam haam haam haim haim)
यह एक सिद्ध आकर्षण प्रयोग है!इस मंत्र से आप किसी भी इंसान,यक्ष,किन्नर,अप्सरा,यक्षिणी,नागिनी,देवी देवता आदि किसी का भी आकर्षण कर सकतें है! इस मंत्र को सिर्फ ५०० बार रुद्राक्ष की माला से पूर्व या उत्तर दिशा में लाल रंग के आसन पर बैठकर जपने से आप किसी को आकर्षित कर सकतें है एवं आकर्षण शक्ति प्राप्त कर सकतें है!इसे सिर्फ ५०० बार जिसका ध्यान कर या जिसकी तस्वीर के सामने जपा जायेगा वे आपके आकर्षण में आ जायेगा! जब तक काम ना बने जपते रहिये!इसके अलावा रोज़ सिर्फ इसे ५०० बार जपा जाए तो आकर्षण सिद्धि( सर्वजन आकर्षण) प्राप्त होती है !
भगवान की भक्ति में एक महत्वपूर्ण क्रिया है प्रतिमा की परिक्रमा। वैसे तो भक्तों द्वारा सामान्यत: सभी देवी-देवताओं की एक ही परिक्रमा की जाती है परंतु शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं के लिए परिक्रमा की अलग संख्या निर्धारित की गई है।
किस देवी-देवता की कितनी परिक्रमा:

- शिवजी की आधी परिक्रमा की जाती है।

- देवी मां की तीन परिक्रमा की जानी चाहिए।

- भगवान विष्णुजी एवं उनके सभी अवतारों की चार परिक्रमा करनी चाहिए।

- श्रीगणेशजी और हनुमानजी की तीन परिक्रमा करने का विधान है।

Tuesday, May 14, 2013


इस साधना को करने के बाद आप अपने शत्रुओं का स्तम्भन कर सकते है ! यह साधना बहुत सरल है इस साधना से शत्रु की गतिविधिया रुक जाती है और वह पराजित हो जाता है !
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ॐ नमो नमो नमो चामुण्डा माई
कालिया भैरूआ सुकिया समुकिया
इन्ही वैरी बला को बांध,
बांध याकु मुख बांध चित बांध
बुद्धि बांध हाथ बांध पांव बांध
चिरा चिरमिरी बांध,
आँख नाक कांख अंग अंग बांध
जो न बांधे तो चमार को चमरोद
चंडाली की कुण्डी में गिर,
लोना चमारी की अरज
सौ सौ महाकाल की आन,
अलख निरंजन फु फु करे
मेरो वैरी को वैर जरे,
मन्त्र सांचा पिंड काचा गुरु की शक्ति !

|| विधि ||

इस मन्त्र को अष्टमी से शुरू करे रात्रि 10 बजे के बाद माँ का पूजन करे और फिर गुरुमंत्र की एक माला जाप करे और फिर इस मन्त्र की एक माला जपे अंत में दोबारा गुरुमंत्र की एक माला जपे !

ऐसा नवमी तिथि तक करे और माँ को नारीयल और श्रृंगार का सामान भेंट करे और कम से कम एक कन्या का पूजन कर उसे भोजन और दक्षिणा दे !

|| प्रयोग ||

जब प्रयोग करना हो तो इस मन्त्र को सात बार जपकर शत्रु की तरफ फूक मार दे, शत्रु स्तंभित हो जायेगा !

Sunday, May 12, 2013

परम कल्याणकारी महायंत्र

क्रौं क्रौं क्रौं क्रौं क्रौं क्रौं क्रौं
अं आं इं ईं उं ऊं ॠं
जं झं ञं टं ठं डं ॠं
छं भं मं यं रं ढं ऌं
चं बं सं हं लं णं ऌं
ङ फं षं शं बं तं एं
घं पं नं धं दं यं ऐं
गं खं कं अः अं ओं आं
क्रौं क्रौं क्रौं क्रौं क्रौं क्रौं क्रौं
                                                    ॐ  गं   गणपतये   नमः 

Saturday, May 11, 2013

हनुमान मंदिर, कनाट प्लेस नई दिल्ली:
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यह मंदिर महाभारत काल के 5 मंदिरों में से एक है। हनुमान जी की मूर्ति का मुख दक्षिण दिशा में है जो इसे हनुमान जी के दूसरी प्रतिमाओं से अलग करता है! इस मंदिर की मान्यता सम्पूर्ण इंडिया में है



बिना  पूंछे  ज्ञान  नहीं  देना  चाहिये 

Friday, May 10, 2013

pranam ka  mahtwa

इस साधना को करने के बाद आप अपने शत्रुओं का स्तम्भन कर सकते है ! यह साधना बहुत सरल है इस साधना से शत्रु की गतिविधिया रुक जाती है और वह पराजित हो जाता है !
++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
ॐ नमो नमो नमो चामुण्डा माई
कालिया भैरूआ सुकिया समुकिया
इन्ही वैरी बला को बांध,
बांध याकु मुख बांध चित बांध
बुद्धि बांध हाथ बांध पांव बांध
चिरा चिरमिरी बांध,
आँख नाक कांख अंग अंग बांध
जो न बांधे तो चमार को चमरोद
चंडाली की कुण्डी में गिर,
लोना चमारी की अरज
सौ सौ महाकाल की आन,
अलख निरंजन फु फु करे
मेरो वैरी को वैर जरे,
मन्त्र सांचा पिंड काचा गुरु की शक्ति !

|| विधि ||

इस मन्त्र को अष्टमी से शुरू करे रात्रि 10 बजे के बाद माँ का पूजन करे और फिर गुरुमंत्र की एक माला जाप करे और फिर इस मन्त्र की एक माला जपे अंत में दोबारा गुरुमंत्र की एक माला जपे !

ऐसा नवमी तिथि तक करे और माँ को नारीयल और श्रृंगार का सामान भेंट करे और कम से कम एक कन्या का पूजन कर उसे भोजन और दक्षिणा दे !

|| प्रयोग ||

जब प्रयोग करना हो तो इस मन्त्र को सात बार जपकर शत्रु की तरफ फूक मार दे, शत्रु स्तंभित हो जायेगा !

GOMATI CHAKRAS



   Gomati chakras, obtained from the Gomati river in Dwarka, is considered meritorious to give wealth, health and success. Gomati Chakra is protective for children. These chakras are used in religious ceremonies and worshipping of yantras. Sandal paste and sacred water (Gangajal) is offered to them during Puja Gomati Chakra is a rare natural product, a form of shell stone, and is found in Gomti River in Dwarka, Gujarat in India. It is believed to bring luck and is used in spiritual and Tantric rituals. Gomati Chakra resembles the Sudarshan Chakra or Discus of Lord Krishna. It is used as a Yantra and also is used in worships. 
It is believed that those people who possess Gomti Chakra will be blessed with money, good health and prosperity. It is also believed to protect children. Some people hang it in front of the house, shops and buildings for peace and prosperity. In some regions, eleven Gomti Chakras are wrapped in a red cloth and placed in rice or wheat containers. This is for food security. In some region, Gomti Chakra is worshipped on the Diwali day along with Goddess Lakshmi. 



MAALA



  A mala is a string of 108 beads with one bead as the summit bead called a 'sumeru'. It is a tool used to keep your mind on the meditation practice. Malas are generally made from different materials such as tulsi (basil) wood, sandal wood, rudraksh seeds or crystal. Each type of material has certain properties which subtly affect the subconscious mind of the practitioner. 
Meditation can be quite a tricky practice because the mind is like a naughty child. By its very nature, the mind tends to wander off during the meditation practice. If ones energy is low at the time of meditation, falling asleep can result. If the energy is too high, fantasy and distraction become the barriers. At such times, the mala provides the much needed anchor. The mala beads are moved in rhythm with the breath and the mantra, so that both-sleep as well as excessive mental distraction-are prevented by this action upon the beads. 

श्री गणेश स्तुती – 
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वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजंबूफलचारुभक्षणम् ।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम् ॥
सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गजकर्णकः ।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो गणाधिपः ।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः ।
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ।
विद्यारंभे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा ।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ॥
मूषिकवाहन् मोदकहस्त चामरकर्ण विलम्बित सूत्र ।
वामनरूप महेश्वरपुत्र विघ्नविनायक पाद नमस्ते ॥