मंत्र
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ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
हवन विधि
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जप के समापन के दिन हवन के लिए बिल्वफल,तिल,चावल,चन्दन,पंचमेवा,जायफल,गुगुल,करायल,गुड़,सरसों धूप,घी मिलाकर हवन करे।रोग शान्ति के लिए,दूर्वा,गुरूचका चार इंच का टुकड़ा,घी मिलाकर हवन करे।श्री प्राप्ति के लिए बिल्वफल,कमलबीज,तथा खीर का हवन करे।ज्वरशांति में अपामार्ग,मृत्युभय में जायफल एवं दही,शत्रुनिवारण में पीला सरसों का हवन करें।हवन के अंत में सुखा नारियल गोला में घी भरकर खीर के साथ पुर्णाहुति दें।इसके बाद तर्पण,मार्जन करे।एक कांसे,पीतल की थाली में जल,गो दूध मिलाकर अंजली से तर्पण करे।मंत्र के दशांश हवन,उसका दशांश तर्पण,उसका दशांश मार्जन,उसका दशांश का शिवभक्त और ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए।तर्पण,मार्जन में मूल मंत्र के अंत मे तर्पण में "तर्पयामी" तथा मार्जन मे "मार्जयामी" लगा लें।अब इसके दशांश के बराबर या १,३,५,९,११ ब्राह्मणों और शिव भक्तों को भोजन कर आशिर्वाद ले।जप से पूर्व कवच का पाठ भी किया जा सकता है,या नित्य पाठ करने से आयु वृद्धि के साथ रोग से छुटकारा मिलता है ...........
RAMESH DUBEY -- 94170 47374....
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