माँ दुर्गा के लोक कल्याणकारी सिद्ध मन्त्र
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१॰ बाधामुक्त होकर धन-पुत्रादि की प्राप्ति के लिये
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“सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:॥”
(अ॰१२,श्लो॰१३)
२॰ बन्दी को जेल से छुड़ाने हेतु
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“राज्ञा क्रुद्धेन चाज्ञप्तो वध्यो बन्धगतोऽपि वा।
आघूर्णितो वा वातेन स्थितः पोते महार्णवे।।”
(अ॰१२,
श्लो॰२७)
३॰ सब प्रकार के कल्याण के लिये
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“सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥”
(अ॰११,
श्लो॰१०)
४॰ दारिद्र्य-दु:खादिनाश के लिये
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“दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदु:खभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽर्द्रचित्ता॥” (अ॰४,श्लो॰१७)
४॰ वित्त, समृद्धि, वैभव एवं दर्शन हेतु
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“यदि चापि वरो देयस्त्वयास्माकं महेश्वरि।।
संस्मृता संस्मृता त्वं नो हिंसेथाः परमापदः।
यश्च मर्त्यः स्तवैरेभिस्त्वां स्तोष्यत्यमलानने।।
तस्य वित्तर्द्धिविभवैर्धनदारादिसम्प दाम्।
वृद्धयेऽस्मत्प्रसन्ना त्वं भवेथाः सर्वदाम्बिके।। (अ॰४,
श्लो॰३५,३६,३७)
५॰ समस्त विद्याओं की और समस्त स्त्रियों में मातृभाव
की प्राप्ति के लिये
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“विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता:
सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुति:
स्तव्यपरा परोक्ति :॥” (अ॰११, श्लो॰६)
६॰ शास्त्रार्थ विजय हेतु
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“विद्यासु शास्त्रेषु विवेकदीपेष्वाद्येषु च का त्वदन्या।
ममत्वगर्तेऽति महान्धकारे, विभ्रामयत्येतदतीव
विश्वम्।।” (अ॰११, श्लो॰ ३१)
७॰ संतान प्राप्ति हेतु
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“नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भ सम्भवा।
ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी” (अ॰११,
श्लो॰४२)
८॰ अचानक आये हुए संकट को दूर करने हेतु
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“ॐ इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति।
तदा तदावतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम्ॐ।।” (अ॰११,
श्लो॰५५)
९॰ रक्षा पाने के लिये
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शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च॥
१०॰ शक्ति प्राप्ति के लिये
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सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥
११॰ प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये
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प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि।
त्रैलोक्यवासिनामीडये लोकानां वरदा भव॥
१२॰ विविध उपद्रवों से बचने के लिये
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रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र।
दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं
परिपासि विश्वम्॥
१३॰ बाधा शान्ति के लिये
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“सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥” (अ॰११, श्लो॰३८)
१४॰ सर्वविध अभ्युदय के लिये
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ते सम्मता जनपदेषु धनानि तेषां तेषां यशांसि न च
सीदति धर्मवर्ग:।
धन्यास्त एव
निभृतात्मजभृत्यदारा येषां सदाभ्युदयदा भवती प्रसन्ना॥
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१॰ बाधामुक्त होकर धन-पुत्रादि की प्राप्ति के लिये
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“सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:॥”
(अ॰१२,श्लो॰१३)
२॰ बन्दी को जेल से छुड़ाने हेतु
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“राज्ञा क्रुद्धेन चाज्ञप्तो वध्यो बन्धगतोऽपि वा।
आघूर्णितो वा वातेन स्थितः पोते महार्णवे।।”
(अ॰१२,
श्लो॰२७)
३॰ सब प्रकार के कल्याण के लिये
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“सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥”
(अ॰११,
श्लो॰१०)
४॰ दारिद्र्य-दु:खादिनाश के लिये
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“दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदु:खभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽर्द्रचित्ता॥” (अ॰४,श्लो॰१७)
४॰ वित्त, समृद्धि, वैभव एवं दर्शन हेतु
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“यदि चापि वरो देयस्त्वयास्माकं महेश्वरि।।
संस्मृता संस्मृता त्वं नो हिंसेथाः परमापदः।
यश्च मर्त्यः स्तवैरेभिस्त्वां स्तोष्यत्यमलानने।।
तस्य वित्तर्द्धिविभवैर्धनदारादिसम्प
वृद्धयेऽस्मत्प्रसन्ना त्वं भवेथाः सर्वदाम्बिके।। (अ॰४,
श्लो॰३५,३६,३७)
५॰ समस्त विद्याओं की और समस्त स्त्रियों में मातृभाव
की प्राप्ति के लिये
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“विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता:
सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुति:
स्तव्यपरा परोक्ति :॥” (अ॰११, श्लो॰६)
६॰ शास्त्रार्थ विजय हेतु
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“विद्यासु शास्त्रेषु विवेकदीपेष्वाद्येषु च का त्वदन्या।
ममत्वगर्तेऽति महान्धकारे, विभ्रामयत्येतदतीव
विश्वम्।।” (अ॰११, श्लो॰ ३१)
७॰ संतान प्राप्ति हेतु
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“नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भ सम्भवा।
ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी” (अ॰११,
श्लो॰४२)
८॰ अचानक आये हुए संकट को दूर करने हेतु
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“ॐ इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति।
तदा तदावतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम्ॐ।।” (अ॰११,
श्लो॰५५)
९॰ रक्षा पाने के लिये
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शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च॥
१०॰ शक्ति प्राप्ति के लिये
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सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥
११॰ प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये
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प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि।
त्रैलोक्यवासिनामीडये लोकानां वरदा भव॥
१२॰ विविध उपद्रवों से बचने के लिये
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रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र।
दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं
परिपासि विश्वम्॥
१३॰ बाधा शान्ति के लिये
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“सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥” (अ॰११, श्लो॰३८)
१४॰ सर्वविध अभ्युदय के लिये
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ते सम्मता जनपदेषु धनानि तेषां तेषां यशांसि न च
सीदति धर्मवर्ग:।
धन्यास्त एव
निभृतात्मजभृत्यदारा येषां सदाभ्युदयदा भवती प्रसन्ना॥
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