Saturday, June 29, 2013



Very Useful Birthday Chart for You !!
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This is very useful birthday chart that predicts your character based on the day you were born on. Check it out yourself and see what this birthday chart reveals for you. 

If you are a Dog:
A very loyal and sweet person. Your loyalty can never be doubted. You are quite honest
and sincere when it comes to your attitude towards working. You are a very simple person, indeed.
Absolutely hassle free, humble and down-to-earth! That explains the reason why your friends cling on to you!
You have a good taste for clothes. If your wardrobe is not updated with what is trendy, you sure are
depressed. Popular and easy-going. You have a little group of dignified friends, all of them being
quality-personified.

If you are a Mouse:
Always up to some sort of a mischief! The mischievous gleam in your eyes is what
makes you so cute and attractive to everyone. You are an extremely fun-to-be-with kind of person. No
wonder, people seek for your company and look forward to include you for all get-togethers. However, you
are sensitive, which is a drawback. People need to select their words while talking to you. If someone tries to
fiddle around and play with words while dealing with you, it is enough to invite your wrath. God bless the
person then!

If you are a Lion:
Quite contradictory to your name, you are a peace loving person. You best try to avoid a
situation wherein you are required to fight. An outdoor person, you dislike sitting at one place for a long
duration. You are a born leader, and have it in you how to tactfully derive work from people. You love being
loved, and when you receive your share of limelight from someone, you are all theirs! Well, hence some
people could even take an advantage, flatter you to the maximum and get their work done. So be careful.

If you are a Cat:
An extremely lovable, adorable person, sometimes shy, with a passion for quick wit. At
times, you prefer quietness. You love exploring various things and going into depth of each thing. Under
normal circumstances you're cool, when given a reason to, you are like a volcano waiting to erupt. You're a
fashion bird. People look forward to you as an icon associated with fashion. Basically, you mingle along freely
but don't like talking much to strangers. People feel very easy in your company. You observe care in
choosing your friends.

If you are a Turtle:
You are near to perfect and nice at heart. The examples of your kindness are always
circulated in groups of people. You, too, love peace. You wouldn't like to retaliate even to a person who is in
the wrong. You are loved due to this. You do not wish to talk behind one's back. People love the way you
always treat them. You can give, give and give love, and the best part is that you do not expect it back in
return. You are generous enough. Seeing things in a practical light is what remains the best trait of you guys.

If you are a Dove:
You symbolize a very happy-go-lucky approach in life. Whatever the surroundings may
be, grim or cheerful, you remain unaffected. In fact, you spread cheer wherever you go. You are the leader of
your group of friends and good at consoling people in their times of need. You dislike hypocrisy and tend to
shirk away from hypocrites. They can never be in your good books, no matter what. You are very methodical
and organized in your work. No amount of mess, hence, can ever encompass you. Beware, it is easy for you
to fall in love.

If you are a Panther:
You are mysterious.. You are someone who can handle pressure with ease, and can
handle any atmosphere without going berserk. You can be mean at times, and love to gossip with your
selected group. Very prim and proper. You like all situations and things to be in the way you desire, which,
sometimes is not possible. As a result, you may lose out in some relationships. But otherwise, you love to
help people out from difficult and tight spots when they really need you.

If you are a Monkey :
Very impatient and hyper! You want things to be done as quick as possible. At heart,
you are quite simple and love if you are the center of attraction. That way, you people are unique. You would
like to keep yourself safe from all the angles. Shall your name be dragged or featured in any sort of a
controversy, you then go all panicky. Therefore, you take your precautions from the very beginning. When
you foresee anything wrong, your sixth sense is what saves you from falling in traps. Quite a money minded
bunch you people are.


कुछ  प्राकृतिक   उपाय  
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ग्रह-नक्षत्रों से किस्मत चमकाने के  उपाय, अपने घर पर  करें :-
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नौ ग्रह बताए गए हैं जो कि हमारी बिगड़ी किस्मत बनाने की क्षमता रखते हैं। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह अशुभ फल दे रहा है तो यहां कुछ प्राकृतिक उपाय बताए रहे हैं, जिनसे सभी परेशानियां दूर हो जाएंगी-
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चंद्रमा : प्रत्येक सोमवार प्रदोषकाल में गाय के दूध से शिवजी का 'ऊँ सोमाय नम:' मंत्र के साथ अभिषेक करें। किसी गरीब महिला को दूध और सफेद वस्तु का दान करें। खरगोश को मूली खिलाएं।

मंगल : गुड़ की रोटी प्रत्येक मंगलवार लाल गाय को खिलाएं। लाल फूलों की माला बनाकर देवी प्रतिमा को पहनाएं। लाल कनेर के 108 फूलों से मां दुर्गा की पूजा करें। गुड़हल का पेड़ घर में लगाएं। रत्नों में मूंगा जो प्राकृतिक रूप से समुद्री प्रवाल होता है, उसका दान किसी युवा ब्राह्मण को मंगलवार के दिन करना लाभकारी होता है। कुंडली में यदि मांगलिक दोष है तो प्रतिदिन तुलसी के पौधे की पूजा करें, जल चढ़ाएं। मगर, बुधवार और रविवार को तुलसी को नहीं छुएं।

बुध : बुध ग्रह से पीडि़त व्यक्ति को अधिक से अधिक संख्या में पौधे लगाने चाहिए। साथ ही घर में भी छोटा बगीचा बनाएं। प्रत्येक बुधवार गणेशजी को 21, 41, 108 दूर्वा यथाशक्ति चढ़ाएं। प्रतिदिन कम से कम तीन इलायची का सेवन करें। मेहंदी और इलायची का पौधा घर में लगाएं। प्रत्येक बुधवार यदि हो सके तो हाथी के दर्शन कर केला खिलाएं।

गुरु : गुरु को बलवान करने के लिए सबसे प्रभावी उपाय है गुरुवार को केले के पेड़ की पूजा कराना। हल्दी युक्त जल समर्पित करें। बरगद के पेड़ में हर गुरुवार हल्दी युक्त कच्चा दूध चढ़ाएं। यदि संभव हो तो केले की जड़ गुरु-पुष्य योग में अपनी दाहिनी बांह पर बांधें। ये व्यापार की वृद्धि में सहायक होगा। पीली कदली के पुष्पों को घर में लगाएं और गरीबों को पीली वस्तु और पुस्तकें दान करें।

शुक्र : जीवन में प्रसन्नता और वैभव की वृद्धि के लिए शुक्र ग्रह को बलवान बनाना आवश्यक है। इसके लिए प्रत्येक शुक्रवार सुगंधित फूलों से महालक्ष्मी की पूजा-अर्चना करें। इत्र का दान करें एवं सफेद गाय को चावल खिलाएं। सफेद कनेर के पुष्पों की माला तथा कमल के पुष्पों को लक्ष्मीनारायण भगवान को अर्पित करें। सफेद और हल्के रंग वाले फूलों के पौधे घर में लगाएं। आंवले के पेड़ की पूजा करें और प्रत्येक शुक्रवार आंवले की पत्ती लक्ष्मी जी को चढ़ाएं।

शनि : यदि सरकारी नौकरी पाने की इच्छा है तो शनि ग्रह को ह्रश्वाक्ष में करना जरूरी है। प्रत्येक शनिवार पीपल के पेड़ के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाएं। शकर और जल का मिश्रण पीपल की जड़ में चढ़ाएं। पीपल के पेड़ की पूजा से शनि पीड़ा शांत होती है। प्रतिदिन पीपल की पूजा करें लेकिन बुधवार और रविवार को पीपल को नहीं छुएं। कौवे और काले कुत्ते को गुड़ वाली तेल की रोटी खिलाएं। काली गाय को हर शनिवार उड़द की दाल भिगोकर खिलाएं।

राहु-केतु : राहु और केतु ग्रह से पीडि़त व्यक्ति को रोजाना कबूतरों को बाजरा और काले तिल मिलाकर खिलाना चाहिए। कुष्ठ रोगियों को दो रंग वाली वस्तुओं का दान करें। मोरपंख की पूजा करें या हो सके तो उसे हमेशा अपने पास रखें। गिलहरी को दाना डालें। दो रंग के फूलों को घर में लगाएं और गणेश जी को अर्पित भी करें। हर मंगलवार या शनिवार को चीटियों को मीठा खिलाएं।

प्रकृति हमें परोपकार का पाठ पढ़ाती है। ईश्वर ने इस सृष्टि में प्रत्येक जीव को कुछ न कुछ परोपकार के लिए भेजा है। यहां बताया गया है कि किस प्रकार हम इन पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं की सहायता से अपनी कुंडली के ग्रहों के शुभफल में और अधिक सुधार कर सकते हैं। इन उपायों से मनुष्य अपनी भागती-दौड़ती जिंदगी में सुख और शांति ला सकता है। बस मन में श्रद्धा और सकारात्मक सोच होनी चाहिए, जिससे वह सदैव ऊर्जावान बना रहे।

Monday, June 24, 2013

शबर ( साबर  ) मंत्र 
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" शबर " शब्द का उल्लेख "अमर कोष " "विश्व " एवं " मेदिनी- कोष " में आता है ! यथा -----
भेदाः किरात-शबर पुलिन्दा म्लेच्छ - जातयः , 
शबरो म्लेच्छ - भेदे च , पानीये शंकरे - अपि च 

उक्त कोशों के अनुसार " शबर " - शब्द किरात भील - वाची तो है ही .... शंकर - वाची भी है .......

इसी बात को सन्त - शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास ने अपने " रामचरितमानस " के बाल-काण्ड में निम्न रूप से बताया है ---------

कलि विलोकि जग - हित हर - गिरिजा ,,
साबर -- मन्त्र --जाल जिन्ह सिरिजा !!!
अनमिल आखर अरथ न जापू ,,
प्रगट --- प्रभाव --- महेश --प्रतापू !!!

इसका एक कारण यह भी बताया गया है की अन्य सभी मन्त्रों को कीलित किया गया है ........इसलिए वो "उत्कीलन " किये जाने पर ही अपना प्रभाव दिखाते हैं ..... मगर " साबर - मन्त्रों " को कीलित नहीं किया गया है .....इसलिए अन्य मन्त्रों की अप्पेक्षा कम समय में और अल्प साधना से ही ...सिद्ध हो जाते हैं ....कुछ साबर मन्त्रों को सिद्ध भी नहीं करना पड़ता है ..... सिर्फ उनके उच्चारण से ही लाभ होता है ...... रमेश दुबे ....

नोट :- साबर मंत्र सिद्ध या प्रयोग करने से पहले " सबरी - माता " की साधना
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अवश्य कर लेनी चाहिए ..... गुरु के निर्देशन में ......
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रमेश दुबे ...............

Friday, June 21, 2013


त्रैलोक्य - मोहन  कवच 
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त्रिलोक्यमोहनकवचः.......
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त्रिपुरारि ऋषिः - विराट् छन्दः - भगवति कामकलाकाली देवता ।

फ्रें बीजं - योगिनी शक्तिः- क्लीं कीलकं - डाकिनि तत्त्वं

भ्गावती श्री कामकलाकाली अनुग्रह प्रसाद सिध्यर्ते जपे विनियोगः॥
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ॐ ऐं श्रीं क्लीं शिरः पातु फ्रें ह्रीं छ्रीं मदनातुरा।
स्त्रीं ह्रूं क्षौं ह्रीं लं ललाटं पातु ख्फ्रें क्रौं करालिनी॥ १

आं हौं फ्रों क्षूँ मुखं पातु क्लूं ड्रं थ्रौं चन्ण्डनायिका।
हूं त्रैं च्लूं मौः पातु दृशौ प्रीं ध्रीं क्ष्रीं जगदाम्बिका॥ २

क्रूं ख्रूं घ्रीं च्लीं पातु कर्णौ ज्रं प्लैं रुः सौं सुरेश्वरी।
गं प्रां ध्रीं थ्रीं हनू पातु अं आं इं ईं शमशानिनी॥ ३

जूं डुं ऐं औं भ्रुवौ पातु कं खं गं घं प्रमाथिनी।
चं छं जं झं पातु तासां टं ठं डं ढं भगाकुला॥ ४

तं थं दं धं पात्वधरमोष्ठं पं फं रतिप्रिया।
बं भं यं रं पातु दन्तान् लं वं शं सं चं कालिका॥ ५

हं क्षं क्षं हं पातु जिह्वां सं शं वं लं रताकुला।
वं यं भं वं चं चिबुकं पातु फं पं महेश्वरी॥ ६

धं दं थं तं पातु कण्ठं ढं डं ठं टं भगाप्रिया।
झं जं छं चं पातु कुक्षौ घं गं खं कं महाजटा॥ ७

ह्सौः ह्स्ख्फ्रैं पातु भुजौ क्ष्मूं म्रैं मदनमालिनी।
ङां ञीं णूं रक्षताज्जत्रू नैं मौं रक्तासवोन्मदा ॥ ८

ह्रां ह्रीं ह्रूं पातु कक्षौ में ह्रैं ह्रौं निधुवनप्रिया।
क्लां क्लीं क्लूं पातु हृदयं क्लैं क्लौं मुण्डावतंसिका॥ ९

श्रां श्रीं श्रूं रक्षतु करौ श्रैं श्रौं फेत्कारराविणी।
क्लां क्लीं क्लूं अङ्गुलीः पातु क्लैं क्लौं च नारवाहिनी॥ १०

च्रां च्रीं च्रूं पातु जठरं च्रैं च्रौं संहाररूपिणी।
छ्रां छ्रीं छ्रूं रक्षतान्नाभिं छ्रैं छ्रौं सिद्धकरालिनी॥ ११

स्त्रां स्त्रीं स्त्रूं रक्षतात् पार्श्वौ स्त्रैं स्त्रौं निर्वाणदायिनी।
फ्रां फ्रीं फ्रूं रक्षतात् पृष्ठं फ्रैं फ्रौं ज्ञानप्रकाशिनी॥ १२

क्षां क्षीं क्षूं रक्षत् कटिं क्षैं क्षौं नृमुण्डमालिनी।
ग्लां ग्लीं ग्लूं रक्षतादूरू ग्लैं ग्लौं विजयदायिनी॥ १३

ब्लां ब्लीं ब्लूं जानुनी पातु ब्लैं ब्लौं महिषमर्दिनी।
प्रां प्रीं प्रूं रक्षताज्जङ्घे प्रैं प्रौं मृत्युविनाशिनी॥ १४

थ्रां थ्रीं थ्रूं चरणौ पातु थ्रैं थ्रौं संसारतारिणी।
ॐ फ्रें सिद्ध्विकरालि ह्रीं छ्रीं ह्रं स्त्रीं फ्रें नमः॥ १५

सर्वसन्धिषु सर्वाङ्गं गुह्यकाली सदावतु।
ॐ फ्रें सिद्ध्विं हस्खफ्रें ह्सफ्रें ख्फ्रें करालि ख्फ्रें हस्खफ्रें ह्स्फ्रें फ्रें ॐ स्वाहा॥ १६

रक्षताद् घोरचामुण्डा तु कलेवरं वहक्षमलवरयूं।
अव्यात् सदा भद्रकाली प्राणानेकादशोन्द्रियान् ॥ १७

ह्रीं श्रीं ॐ ख्फ्रें ह्स्ख्फ्रें हक्षम्लब्रयूं
न्क्ष्रीं नज्च्रीं स्त्रीं छ्रीं ख्फ्रें ठ्रीं ध्रीं नमः।
यत्रानुक्त्तस्थलं देहे यावत्तत्र च तिष्ठति॥ १८

उक्तं वाऽप्यथवानुक्तं करालदशनावतु
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं हूं स्त्रीं ध्रीं फ्रें क्षूं क्शौं
क्रौं ग्लूं ख्फ्रें प्रीं ठ्रीं थ्रीं ट्रैं ब्लौं फट् नमः स्वाहा॥ १९

सर्वमापादकेशाग्रं काली कामकलावतु॥ २०


Wednesday, June 19, 2013

माँ   बगलामुखी  साधना की कामना पुर्तिकारक  प्रयोग 

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१. मधु , शर्करा  , युक्त  तिलों  से होम करने  से मनुष्य वश  में  होते हैं .......
२. मधु  , घृत , तथा  शर्करा  युक्त  लवण  ( नमक ) से 
होम करने से  आकर्षण  होता है .......
३. तेल  युक्त  नीम के पत्तों से होम करने से विद्वेष 
होता है .........
४. हरिताल  , नमक तथा  हल्दी से होम  करने पर 
शत्रुओं  का स्तम्भन  होता है .........
५. दूर्वा  , गिलोय  तथा लावा  को शहद , घृत   तथा शक्कर ( गुड़  वाली ) के साथ  मिला कर हवन करने से 
सभी रोग  शांत होते हैं ..................

रमेश  दुबे ...........

Tuesday, June 18, 2013

राम - रक्षा  स्त्रोतम 
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श्रीरामरक्षास्तोत्र 
ॐ श्रीगणेशाय नमः 

अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमंत्रस्य . बुधकौशिक ऋषिः
श्रीसीतारामचंद्रो देवता . अनुष्टुप् छंदः
सीता शक्तिः . श्रीमद् हनुमान कीलकम्
श्रीरामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः
अथ ध्यानम् 

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थम्
पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्
वामांकारूढ सीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभम्
नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामंडनं रामचंद्रम्
इति ध्यानम् 

चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम्
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् .. १
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम्
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमंडितम् .. २
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम्
स्वलीलया जगत्रातुं आविर्भूतं अजं विभुम् .. ३
रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्
शिरोमे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः .. ४
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियश्रुती
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः .. ५
जिव्हां विद्यानिधिः पातु कंठं भरतवंदितः
स्कंधौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः .. ६
करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित्
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः .. ७
सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः
ऊरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत् .. ८
जानुनी सेतुकृत्पातु जंघे दशमुखान्तकः
पादौ बिभीषणश्रीदः पातु रामोखिलं वपुः .. ९
एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् .. १०
पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः
न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः .. ११
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन्
नरो न लिप्यते पापैः भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति .. १२
जगजैत्रैकमंत्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्
यः कंठे धारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः .. १३
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत्
अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमंगलम् .. १४
आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षांमिमां हरः
तथा लिखितवान् प्रातः प्रभुद्धो बुधकौशिकः .. १५
आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम्
अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान् स नः प्रभुः .. १६
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ
पुंडरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ .. १७
फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ .. १८
शरण्यौ सर्वसत्त्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्
रक्षः कुलनिहंतारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ .. १९
आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशावक्षयाशुगनिषंगसंगिनौ
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम् .. २०
सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा
गच्छन्मनोरथोस्माकं रामः पातु सलक्ष्मणः .. २१
रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली
काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघुत्तमः .. २२
वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः
जानकीवल्लभः श्रीमान् अप्रमेय पराक्रमः .. २३
इत्येतानि जपन्नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशयः .. २४
रामं दुर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम्
स्तुवंति नामभिर्दिव्यैः न ते संसारिणो नरः .. २५
रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम्
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्
राजेंद्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शांतमूर्तिम्
वंदे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् .. २६
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः .. २७
श्रीराम राम रघुनंदन राम राम
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम
श्रीराम राम शरणं भव राम राम .. २८
श्रीरामचंद्रचरणौ मनसा स्मरामि
श्रीरामचंद्रचरणौ वचसा गृणामि
श्रीरामचंद्रचरणौ शिरसा नमामि
श्रीरामचंद्रचरणौ शरणं प्रपद्ये .. २९
माता रामो मत्पिता रामचंद्रः
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्रः
सर्वस्वं मे रामचंद्रो दयालुः
नान्यं जाने नैव जाने न जाने .. ३०
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वंदे रघुनंदनम् .. ३१
लोकाभिरामं रणरंगधीरम्
राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्
कारुण्यरूपं करुणाकरं तम्
श्रीरामचंद्रम् शरणं प्रपद्ये .. ३२
मनोजवं मारुततुल्यवेगम्
जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्
वातात्मजं वानरयूथमुख्यम्
श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये .. ३३
कूजंतं राम रामेति मधुरं मधुराक्षरम्
आरुह्य कविताशाखां वंदे वाल्मीकिकोकिलम् .. ३४
आपदां अपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् .. ३५
भर्जनं भवबीजानां अर्जनं सुखसम्पदाम्
तर्जनं यमदूतानां राम रामेति गर्जनम् .. ३६
रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोस्म्यहम्
रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर .. ३७
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने .. ३८
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इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम्

श्रीसीतारामचंद्रार्पणमस्तु


DHARAM--JYOTISH--MANTRA--REMEDIES: ॐ  नमः  शिवाय  का  महत्व :-*********************...

DHARAM--JYOTISH--MANTRA--REMEDIES:

ॐ  नमः  शिवाय  का  महत्व :-*********************...
: ॐ  नमः  शिवाय  का  महत्व :- **************************************** शिव भक्तों का सर्वाधिक लोग प्रिय मंत्र है "ॐ नमः शिवाय&q...

काल-भैरव    अष्टकम :--
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ll कालभैरवाष्टकम् ll
देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपंकजं । व्यालयज्ञसूत्रमिंदुशेखरं कृपाकरम् ॥
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबर । काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥१॥
भानुकोटिभास्वरं भावाब्धितारकं परं । नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् ॥
कालकालमम्बुजाक्षमक्षशूलमक्षरं । काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥२॥
शूलटंकपाशदण्डपाणिमादिकारणं । श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ॥
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रतांडवप्रियं । काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥३॥
भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तलोकविग्रहं । भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहं ।
विनिक्कणन्मनोज्ञहेमकिंकिणीलसत्कटिं । काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥४॥
धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं । कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुं ॥
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभितांगमण्डलं । काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥५॥
रत्न५पादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं । नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम् ॥
मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं । काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥६॥
अट्टाहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं । दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनं ॥
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं । काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥७॥
भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं । काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुं ॥
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं । काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥८॥
कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं । ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनं ॥
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनम् । प्रयान्ति कालभैरवांघ्रिसन्निधि नरा ध्‍रुवम् ॥९॥



ॐ  नमः  शिवाय  का  महत्व :-
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शिव भक्तों का सर्वाधिक लोग प्रिय मंत्र है "ॐ नमः शिवाय"। नमः शिवाय अर्थात शिव जी को नमस्कारपाँचअक्षर का मंत्र है "न", "म", "शि", "व" और "य" । प्रस्तुत मंत्र इन्ही पाँच अक्षरों की व्याख्या करता है। स्तोत्र के पाँच छंद पाँच अक्षरों की व्याख्या करते हैं। अतः यह स्तोत्र पंचाक्षर स्तोत्र कहलाता है। "ॐ" के प्रयोग से यह मंत्र छः अक्षर का हो जाता है। एक दूसरा स्तोत्र "शिव षडक्षर स्तोत्र इन छः अक्षरों पर आधारित है|

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय। 
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे "न" काराय नमः शिवायः॥

मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय। 
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे "म" काराय नमः शिवायः॥

शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय| 
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै "शि" काराय नमः शिवायः॥

वषिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय।
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै "व" काराय नमः शिवायः॥

यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय| 
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै "य" काराय नमः शिवायः॥

पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत शिव सन्निधौ| 
शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥ 


Monday, June 17, 2013



लक्ष्मी -- स्त्रोत्रं
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जय पद्मपलाशाक्षि जय त्वं श्रीपतिप्रिये । जय मातर्महालक्ष्मि संसारार्णवतारिणि ।।
... महालक्ष्मि नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वरि हरिप्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधे ।।
पद्ममालये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं च सर्वदे । सर्वभूतहितार्थाय वसुवृष्टिं सदा कुरु ।।
जगन्मातर्नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधे । दयावति नमस्तुभ्यं विश्वेश्वरि नमोऽस्तु ते ।। 
नमः क्षीरार्णवसुते नमस्त्रैलोक्यधारिणी । वसुवृष्टे नमस्तुभ्यं रक्ष मां शरणागतम् ।।5।।
रक्ष त्वं देवदेवेशि देवदेवस्य वल्लभे । दरिद्रात्त्राहि मां लक्ष्मि कृपां कुरु ममोपरि ।।6।।
नमस्त्रैलोक्यजननि नमस्त्रैलोक्यपावनि । ब्रह्मादयो नमस्ते त्वां जगदानन्ददायिनी ।।7।।
विष्णुप्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं जगद्धिते । आर्तिहन्त्रि नमस्तुभ्यं समृद्धि कुरु मे सदा ।। 8।।
अब्जवासे नमस्तुभ्यं चपलायै नमो नमः। चंचलायै नमस्तुभ्यं ललितायै नमो नमः ।।9।।
नमः प्रद्युम्नजननि मातस्तुभ्यं नमो नमः। परिपालय भो मातर्मा तुभ्यं शरणागतम्. ।।10।।
शरण्ये त्वां प्रपत्रोऽस्मि कमले कमलालये । त्राहि त्राहि महालक्ष्मि परित्राणपरायणे ।।11।।
पाण्डित्यं शोभते नैव न शोभन्ति गुणा नरे । शीलत्वं नैव शोभेत महालक्ष्मी त्वया विना ।।12।।
तावद्विराजते रुपं तावच्छीलं विराजते । तावद्रुणा नराणां च यावल्लक्ष्मीः प्रसीदति ।।13।।
लक्ष्मित्वयालंकृतमानवा ये पापैर्विमुक्ता नृपलोकमान्याः । गुणैर्विहीना गुणिनो भवन्ति दुःशीलिनः शीलवतां वरिष्ठाः ।।14।।
लक्ष्मीर्भूषयते रुपं लक्ष्मीर्भूषयते कुलम् । लक्ष्मीर्भूषयते विद्यां सर्वाल्लक्ष्मीर्विशिष्यते ।।15।।
लक्ष्मि त्वद्रुणकीर्तनेन कमलाभूर्यात्यलं जिह्मतां ।
रुद्राद्या रविचन्द्रदेवपतयो वक्तुं च नैव क्षमाः ।
अस्माभिस्तव रुपलक्षगुणान्वक्तुं कथं शक्यते । मातर्मा परिपाहि विश्वजननि कृत्वा ममेष्टं ध्रुवम् ।।16।।
दीनार्तिभीतं भवतापपीडितं धनैर्विहीनं तव पार्श्वमागतम् । कृपानिधित्वान्मम लक्ष्मि सत्वरं धनप्रदानाद्धननायकं कुरु ।।17।।
मां विलोक्य जननि हरिप्रिय निर्धनं तव समीपमागतम् ।

देहि में झटिति लक्ष्मि ।

कराग्रं वस्त्रकाञ्चनवरान्नमद् भुतम् ।।18।।
त्वमेव जननि लक्ष्मि पिता लक्ष्मी त्वमेव च ।।19।।
त्राहि त्रहि महालक्ष्मि त्राहि त्राहि सुरेश्वरी । त्राहि त्राहि जगन्मातर्दरिद्रात्त्राहि वेगतः ।।20।।
नमस्तुभ्यंजगद्धात्रि नमस्तुभ्यं नमो नमः । धर्माधारे नमस्तभ्यं नमः सम्पत्तिदायिनी ।।21।।
दरिद्रार्णवमग्नोऽहं निमग्नोऽहं रसातले । मज्जन्तं मां करे घृत्वा सूद्धर त्वं रमे द्रुतम् ।।22।। 
किं लक्ष्मि बहुनोक्तेन जल्पितेन पुनः पुनः । अन्यन्मे शरणं नास्ति सत्यं सत्यं हरिप्रिय ।।23।। 
एतच्छुत्वाऽगस्तिवाक्ययं हृष्यमाणा हरिप्रिया । उवाच मधुरां वाणी तुष्टाहं तव सर्वदा. ।।24।।
लक्ष्मीरुवाच ।
यत्त्वयोक्तमिदं स्तोत्रं यः पठिष्यति मानवः । श्रृणोति च महाभागस्तस्याहं वशवर्तिनी ।।25।। 
नित्यं पठति यो भक्तया त्वलक्ष्मीस्तस्य नश्यति । रणश्रव नश्यते तीब्रं वियोगं नैव पश्यति ।।26।। 
यः पठेत्प्रातरुत्थाय श्रद्धा-भक्तिसमन्वितः। गृहे तस्य सदा स्थास्य नित्यं श्रीपतिना सह ।।27।। 
सुखसौभाग्यसम्पन्नो मनस्वी बुद्धिमान् भवेत्. पुत्रवान् गुणवान् श्रेष्ठो भोगभोक्ता च मानवः ।।28।। 
इदं स्त्रोतं महापुण्यं लक्ष्म्यगस्तिप्रर्कीतितम् । विष्णुप्रसादजननं चतुर्वर्गफ़लप्रदम् ।।29।। 
राजद्वारे जयश्रवैव शत्रोश्चैव पराजयः । भूतप्रेतपिचाशचानां व्याघ्राणां न भयं तथा ।।30।। 
न शस्त्रानलतोयौघाद् भयं तस्य प्रजायते । दुर्वृत्तानां च पापानां बहुहानिकरं परम् ।।31।। 
मदुराकरिशालासु गवां गोष्ठे समाहितः । पठेत्तद्दोषशान्त्यर्थ महापातकनाशनम् ।।32।।
सर्वसौख्यकरं नृणामायुरारोग्यदं तथा । अगस्त्रिमुनिना पोक्तं प्रजानां हितकाम्यया ।।33।।

। इत्यगस्तिविरचितं लक्ष्मीस्तोत्रं पूर्णम् ।



शनि  -  स्तवराज :-
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ध्यात्वा गणपतिं राजा धर्मराजो युधिष्ठिरः।
धीरः शनैश्चरस्येमं चकार स्तवमुत्तमम।।
शिरो में भास्करिः पातु भालं छायासुतोवतु।
कोटराक्षो दृशौ पातु शिखिकण्ठनिभः श्रुती ।।
घ्राणं मे भीषणः पातु मुखं बलिमुखोवतु।
स्कन्धौ संवर्तकः पातु भुजौ मे भयदोवतु ।।
सौरिर्मे हृदयं पातु नाभिं शनैश्चरोवतु ।
ग्रहराजः कटिं पातु सर्वतो रविनन्दनः ।।
पादौ मन्दगतिः पातु कृष्णः पात्वखिलं वपुः ।
रक्षामेतां पठेन्नित्यं सौरेर्नामबलैर्युताम।।
सुखी पुत्री चिरायुश्च स भवेन्नात्र संशयः ।
सौरिः शनैश्चरः कृष्णो नीलोत्पलनिभः शन।।
शुष्कोदरो विशालाक्षो र्दुनिरीक्ष्यो विभीषणः ।
शिखिकण्ठनिभो नीलश्छायाहृदयनन्दनः ।।
कालदृष्टिः कोटराक्षः स्थूलरोमावलीमुखः ।
दीर्घो निर्मांसगात्रस्तु शुष्को घोरो भयानकः ।।
नीलांशुः क्रोधनो रौद्रो दीर्घश्मश्रुर्जटाधरः।
मन्दो मन्दगतिः खंजो तृप्तः संवर्तको यमः ।।
ग्रहराजः कराली च सूर्यपुत्रो रविः शशी ।
कुजो बुधो गुरूः काव्यो भानुजः सिंहिकासुत।।
केतुर्देवपतिर्बाहुः कृतान्तो नैऋतस्तथा।
शशी मरूत्कुबेरश्च ईशानः सुर आत्मभूः ।।
विष्णुर्हरो गणपतिः कुमारः काम ईश्वरः।
कर्ता हर्ता पालयिता राज्यभुग् राज्यदायकः ।।
छायासुतः श्यामलाङ्गो धनहर्ता धनप्रदः।
क्रूरकर्मविधाता च सर्वकर्मावरोधकः ।।
तुष्टो रूष्टः कामरूपः कामदो रविनन्दनः ।
ग्रहपीडाहरः शान्तो नक्षत्रेशो ग्रहेश्वरः ।।
स्थिरासनः स्थिरगतिर्महाकायो महाबलः ।
महाप्रभो महाकालः कालात्मा कालकालकः ।।
आदित्यभयदाता च मृत्युरादित्यनंदनः।
शतभिद्रुक्षदयिता त्रयोदशितिथिप्रियः ।।
तिथ्यात्मा तिथिगणनो नक्षत्रगणनायकः ।
योगराशिर्मुहूर्तात्मा कर्ता दिनपतिः प्रभुः ।।
शमीपुष्पप्रियः श्यामस्त्रैलोक्याभयदायकः ।
नीलवासाः क्रियासिन्धुर्नीलाञ्जनचयच्छविः ।।
सर्वरोगहरो देवः सिद्धो देवगणस्तुतः।
अष्टोत्तरशतं नाम्नां सौरेश्छायासुतस्य यः ।।
पठेन्नित्यं तस्य पीडा समस्ता नश्यति ध्रुवम् ।
कृत्वा पूजां पठेन्मर्त्यो भक्तिमान्यः स्तवं सदा ।।
विशेषतः शनिदिने पीडा तस्य विनश्यति।
जन्मलग्ने स्थितिर्वापि गोचरे क्रूरराशिगे ।।
दशासु च गते सौरे तदा स्तवमिमं पठेत् ।
पूजयेद्यः शनिं भक्त्या शमीपुष्पाक्षताम्बरैः ।।
विधाय लोहप्रतिमां नरो दुःखाद्विमुच्यते ।
वाधा यान्यग्रहाणां च यः पठेत्तस्य नश्यति ।।
भीतो भयाद्विमुच्येत बद्धो मुच्येत बन्धनात् ।
रोगी रोगाद्विमुच्येत नरः स्तवमिमं पठेत् ।।
पुत्रवान्धनवान् श्रीमान् जायते नात्र संशयः ।।
स्तवं निशम्य पार्थस्य प्रत्यक्षोभूच्छनैश्चरः ।
दत्त्वा राज्ञे वरः कामं शनिश्चान्तर्दधे तदा ।।

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Friday, June 14, 2013


काली  
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।। कालिका के भेद ।।

काली सम्बन्ध में तंत्र-शास्त्र के 250-300 के लगभग ग्रंथ माने गये हैं, जिनमें बहुत से ग्रथं लुप्त है, कुछ पुस्तकालयों में सुरक्षित है । अंश मात्र ग्रंथ ही अवलोकन हेतु उपलब्ध हैं । ‘काम-धेनु तन्त्र’ में लिखा है कि – “काल संकलनात् काली कालग्रासं करोत्यतः” । तंत्रों में स्थान-स्थान पर शिव नेश्यामा काली (दक्षिणा-काली) और सिद्धिकाली (गुह्यकाली) को केवल “काली” संज्ञा से पुकारा हैं । दशमहाविद्या के मत से तथा लघुक्रम और ह्याद्याम्ताय क्रम के मत से श्यामाकाली को आद्या, नीलकाली (तारा) को द्वितीया और प्रपञ्चेश्वरी रक्तकाली (महा-त्रिपुर सुन्दरी) को तृतीया कहते हैं, परन्तु श्यामाकाली आद्या काली नहीं आद्यविद्या हैं । पीताम्बरा बगलामुखी को पीतकाली भी कहा है 
कालिका द्विविधा प्रोक्ता कृष्णा – रक्ता प्रभेदतः ।
कृष्णा तु दक्षिणा प्रोक्ता रक्ता तु सुन्दरीमता ।।


काली के अनेक भेद हैं -
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पुरश्चर्यार्णवेः- १॰ दक्षिणाकाली, २॰ भद्रकाली, ३॰ श्मशानकाली, ४॰ कामकलाकाली, ५॰ गुह्यकाली, ६॰ कामकलाकाली, ७॰ धनकाली, ८॰ सिद्धिकाली तथा ९॰ चण्डीकाली ।
जयद्रथयामलेः- १॰ डम्बरकाली, २॰ गह्नेश्वरी काली, ३॰ एकतारा, ४॰ चण्डशाबरी, ५॰ वज्रवती, ६॰ रक्षाकाली, ७॰ इन्दीवरीकाली, ८॰ धनदा, ९॰ रमण्या, १०॰ ईशानकाली तथा ११॰ मन्त्रमाता ।
सम्मोहने तंत्रेः- १॰ स्पर्शकाली, २॰ चिन्तामणि, ३॰ सिद्धकाली, ४॰ विज्ञाराज्ञी, ५॰ कामकला, ६॰ हंसकाली, ७॰ गुह्यकाली ।
तंत्रान्तरेऽपिः- १॰ चिंतामणि काली, २॰ स्पर्शकाली, ३॰ सन्तति-प्रदा-काली, ४॰ दक्षिणा काली, ६॰ कामकला काली, ७॰ हंसकाली, ८॰ गुह्यकाली ।
उक्त सभी भेदों में से दक्षिणा और भद्रकाली ‘दक्षिणाम्नाय’ के अन्तर्गत हैं तथा गुह्यकाली, कामकलाकाली, महाकाली और महा-श्मशान-काली उत्तराम्नाय से सम्बन्धित है । काली की उपासना तीन आम्नायों से होती है । तंत्रों में कहा हैं “दक्षिणोपासकः का`लः” अर्थात् दक्षिणोपासकमहाकाल के समान हो जाता हैं । उत्तराम्नायोपासाक ज्ञान योग से ज्ञानी बन जाते हैं ।ऊर्ध्वाम्नायोपासक पूर्णक्रम उपलब्ध करने से निर्वाणमुक्ति को प्राप्त करते हैं । दक्षिणाम्नाय में कामकला काली को कामकलादक्षिणाकाली कहते हैं । उत्तराम्नाय के उपासक भाषाकाली में कामकला गुह्यकाली की उपासना करते हैं । विस्तृत वर्णन पुरुश्चर्यार्णव में दिया गया है ।
गुह्यकाली की उपासना नेपाल में विशेष प्रचलित हैं । इसके मुख्य उपासक ब्रह्मा, वशिष्ठ, राम, कुबेर, यम, भरत, रावण, बालि, वासव, बलि, इन्द्र आदि हुए हैं ।
।। १०८ नामावली श्रीबटुक-भैरव ।।
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भैरव, भूतात्मा, भूतनाथ को है मेरा शत-शत प्रणाम ।
क्षेत्रज्ञ, क्षेत्रदः, क्षेत्रपाल, क्षत्रियः भूत-भावन जो हैं,
जो हैं विराट्, जो मांसाशी, रक्तपः, श्मशान-वासी जो हैं,
स्मरान्तक, पानप, सिद्ध, सिद्धिदः वही खर्पराशी जो हैं,
वह सिद्धि-सेवितः, काल-शमन, कंकाल, काल-काष्ठा-तनु हैं ।
उन कवि-स्वरुपः, पिंगल-लोचन, बहु-नेत्रः भैरव को प्रणाम ।
वह देव त्रि-नेत्रः, शूल-पाणि, कंकाली, खड्ग-पाणि जो हैं,
भूतपः, योगिनी-पति, अभीरु, भैरवी-नाथ भैरव जो हैं,
धनवान, धूम्र-लोचन जो हैं, धनदा, अधन-हारी जो हैं,
जो कपाल-भृत हैं, व्योम-केश, प्रतिभानवान भैरव जो हैं,
उन नाग-केश को, नाग-हार को, है मेरा शत-शत प्रणाम ।
कालः कपाल-माली त्रि-शिखी कमनीय त्रि-लोचन कला-निधि
वे ज्वलक्षेत्र, त्रैनेत्र-तनय, त्रैलोकप, डिम्भ, शान्त जो हैं,
जो शान्त-जन-प्रिय, चटु-वेष, खट्वांग-धारकः वटुकः हैं,
जो भूताध्यक्षः, परिचारक, पशु-पतिः, भिक्षुकः, धूर्तः हैं,
उन शुर, दिगम्बर, हरिणः को है मेरा शत-शत-शत प्रणाम ।
जो पाण्डु-लोचनः, शुद्ध, शान्तिदः, वे जो हैं भैरव प्रशान्त,
शंकर-प्रिय-बान्धव, अष्ट-मूर्ति हैं, ज्ञान-चक्षु-धारक जो हैं,
हैं वहि तपोमय, हैं निधीश, हैं षडाधार, अष्टाधारः,
जो सर्प-युक्त हैं, शिखी-सखः, भू-पतिः, भूधरात्मज जो हैं,
भूधराधीश उन भूधर को है मेरा शत-शत-शत प्रणाम ।
नीलाञ्जन-प्रख्य देह-धारी, सर्वापत्तारण, मारण हैं,
जो नाग-यज्ञोपवीत-धारी, स्तम्भी, मोहन, जृम्भण हैं,
वह शुद्धक, मुण्ड-विभूषित हैं, जो हैं कंकाल धारण करते,
मुण्डी, बलिभुक्, बलिभुङ्-नाथ, वे बालः हैं, वे क्षोभण हैं ।
उन बाल-पराक्रम, दुर्गः को है मेरा शत-शत-शत प्रणाम ।
जो कान्तः, कामी, कला-निधिः, जो दुष्ट-भूत-निषेवित हैं,
जो कामिनि-वश-कृत, सर्व-सिद्धि-प्रद भैरव जगद्-रक्षाकर हैं,
जो वशी, अनन्तः हैं भैरव, वे माया-मन्त्रौषधि-मय हैं,
जो वैद्य, विष्णु, प्रभु सर्व-गुणी, मेरे आपद्-उद्धारक हैं ।
उन सर्व-शक्ति-मय भैरव-चरणों में मेरा शत-शत प्रणाम ।

।। फल-श्रुति ।।

इन अष्टोत्तर-शत नामों को-भैरव के जो पढ़ता है,
शिव बोले – सुख पाता, दुख से दूर सदा वह रहता है ।
उत्पातों, दुःस्वप्नों, चोरों का भय पास न आता है,
शत्रु नष्ट होते, प्रेतों-रोगों से रक्षित रहता है ।
रहता बन्धन-मुक्त, राज-भय उसको नहीं सताता है,
कुपित ग्रहों से रक्षा होती, पाप नष्ट हो जाता है ।
अधिकाधिक पुनुरुक्ति पाठ की, जो श्रद्धा-पूर्वक करते हैं,
उनके हित कुछ नहीं असम्भव, वे निधि-सिद्धि प्राप्त करते हैं ।


शिव: शक्त्या युक्तो यदि भवति शकत: प्रभवितुं 
न चेदेवं देवो न खलु कुशल: स्पन्दितुम्पी । 
अतस्तवामाराध्यां हरिहरविरित्र्च्यदिभिरपि
प्रणन्तुं स्तोतुं वा कथमकृतपुण्य: प्रभवति ..............

Wednesday, June 12, 2013

नमस्ते कुलनाथाय कौलसिद्दिप्रदायिने !
ज्ञानविज्ञानदेहाय मच्छन्दाय नमोस्तु ते !!


कन्याओं  के विवाह  के  लिए :--
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निम्न लिखित चौपाइयों का नित्य पाठ करने से कन्यायों का उत्तम और शीघ्र विवाह होता है रमेश दुबे .....................
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जय जय गिरिबरराज किशोरी -- जय महेस मुख चंद चकोरी 
जय गजबदन षडानन माता -- जगत जननी दामिनि दुति गाता
नहिं तव आदि मध्य अवसाना -- अमित प्रभाउ बेदु नही जाना 
भव भव बिभव पराभव कारिनि -- बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिन
*****
पति देवता सुतीय महूँ मातु प्रथम तव रेख ...
महिमा अमित न सकहिं कहि सहस सारदा सेष ...
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सेवत तोहि सुलभ फल चारी -- बर-दायनी पुरारि पियारी
देवि पूजि पद कमल तुम्हारे --सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे
मोर मनोरथ जानहु नीकें -- बसहु सदा उर पुर सबही कें
कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं -- अस कहि चरन गहे वैदेही
विनय प्रेम बस भई भवानी -- खसी माल मूरति मुसकानी
सादर सिय प्रसादु सिर धरेऊ -- बोली गौरी हरषु हिय भरेऊ
सुनु सिय सत्य असीस हमारी --पूजिहि मन कामना तुम्हारी
नारद बचन सदा सूचि साचा -- सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा
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छं० -- मनु जाहि राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो !! ...... करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो !!

....... एहि भाँती गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली
........तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली !!

सो० -- जानि गौरि अनुकूल सिय हिय हरषु न जाई कहि ,
.........मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे !!!!
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प्रस्तुतकर्ता :-- रमेश दुबे ...........


Tuesday, June 11, 2013



क्लीं --- क्लीं --- क्लीं
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The Bija 'Kleem' is a bija of 'Adi Sakthi' (primal energy). when we utter this Bija in correct notation the vibration starts from under the lower teeth (frontal) and goes from there through the sides of your mouth touching the side tips of the tongue. from there it posses through medulla to the brain activating the pineal gland and comes to the upper lip and compleats a circle joining the starting point of vibration.

when you are repeating the bija in continuous succession, the circle expands and expands. It will enfold the entire universe into it making you dissolve your conciousness with the universal conciousness.

It is a very powerful bija, so one should practice it only when he or she is capable of holding the power and been given it by ones guru ....


रमेश  दुबे .........

              रत्नों  को  धारण  करने कि विधि 
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रत्न धारण करने में हाथ का चयन:
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शास्त्र की मान्यता है कि पुरुष का दायां हाथ व महिला का बांया हाथ गर्म होता है। इसी प्रकार पुरुष का बांया हाथ व महिला का दांया हाथ ठंडा होता है। रत्न भी अपनी प्रकृति के अनुसार ठंडे व गर्म होते हैं। यदि ठंडे रत्न, ठंडे हाथ में व गर्म रत्न गर्म हाथ में धारण किये जाएं तो आशातीत लाभ होता है। 

प्रकृति के अनुसार गर्म रत्न - पुखराज, हीरा, माणिक्य, मूंगा।
प्रकृति के अनुसार ठंडे रत्न - मोती, पन्ना, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।

रत्न को धारण करने के बाद उसकी मर्यादा बनायी रखनी चाहिए। अशुद्ध स्थान, दाह-संस्कार आदि में रत्न पहन कर नहीं जाना चाहिए।
यदि उक्त स्थान में जाना हो तो उसे उतार कर देव-स्थान में रखना चाहिए तथा पुनः निर्धारित समय में धारण करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि रत्न शुक्ल पक्ष के दिन निर्धारित वार की निर्धारित होरा में धारण किये जाएं। खंडित रत्न कदापि धारण नहीं करना चाहिए....

रत्न धारण विधि:
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रत्न को धारण करने से पहले उसे तदनुरूप धातु की अंगूठी में बनवाये। तत्पश्चात् उसे शुद्ध व सिद्ध करना होगा। तभी वह अपना प्रभाव दिखायेगा। रत्न से संबंधित ग्रह के वार को उसे पहले गाय के कच्चे दूध में फिर गंगाजल मंे अभिषेक करके धूप-दीप जलाकर उस ग्रह के मंत्र की कम से कम तीन व अधिकतम ग्यारह माला जाप करके पूर्वाभिमुख होकर रत्न को ग्रह से संबंधित सही उंगली में धारण करें
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