Friday, June 14, 2013


काली  
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।। कालिका के भेद ।।

काली सम्बन्ध में तंत्र-शास्त्र के 250-300 के लगभग ग्रंथ माने गये हैं, जिनमें बहुत से ग्रथं लुप्त है, कुछ पुस्तकालयों में सुरक्षित है । अंश मात्र ग्रंथ ही अवलोकन हेतु उपलब्ध हैं । ‘काम-धेनु तन्त्र’ में लिखा है कि – “काल संकलनात् काली कालग्रासं करोत्यतः” । तंत्रों में स्थान-स्थान पर शिव नेश्यामा काली (दक्षिणा-काली) और सिद्धिकाली (गुह्यकाली) को केवल “काली” संज्ञा से पुकारा हैं । दशमहाविद्या के मत से तथा लघुक्रम और ह्याद्याम्ताय क्रम के मत से श्यामाकाली को आद्या, नीलकाली (तारा) को द्वितीया और प्रपञ्चेश्वरी रक्तकाली (महा-त्रिपुर सुन्दरी) को तृतीया कहते हैं, परन्तु श्यामाकाली आद्या काली नहीं आद्यविद्या हैं । पीताम्बरा बगलामुखी को पीतकाली भी कहा है 
कालिका द्विविधा प्रोक्ता कृष्णा – रक्ता प्रभेदतः ।
कृष्णा तु दक्षिणा प्रोक्ता रक्ता तु सुन्दरीमता ।।


काली के अनेक भेद हैं -
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पुरश्चर्यार्णवेः- १॰ दक्षिणाकाली, २॰ भद्रकाली, ३॰ श्मशानकाली, ४॰ कामकलाकाली, ५॰ गुह्यकाली, ६॰ कामकलाकाली, ७॰ धनकाली, ८॰ सिद्धिकाली तथा ९॰ चण्डीकाली ।
जयद्रथयामलेः- १॰ डम्बरकाली, २॰ गह्नेश्वरी काली, ३॰ एकतारा, ४॰ चण्डशाबरी, ५॰ वज्रवती, ६॰ रक्षाकाली, ७॰ इन्दीवरीकाली, ८॰ धनदा, ९॰ रमण्या, १०॰ ईशानकाली तथा ११॰ मन्त्रमाता ।
सम्मोहने तंत्रेः- १॰ स्पर्शकाली, २॰ चिन्तामणि, ३॰ सिद्धकाली, ४॰ विज्ञाराज्ञी, ५॰ कामकला, ६॰ हंसकाली, ७॰ गुह्यकाली ।
तंत्रान्तरेऽपिः- १॰ चिंतामणि काली, २॰ स्पर्शकाली, ३॰ सन्तति-प्रदा-काली, ४॰ दक्षिणा काली, ६॰ कामकला काली, ७॰ हंसकाली, ८॰ गुह्यकाली ।
उक्त सभी भेदों में से दक्षिणा और भद्रकाली ‘दक्षिणाम्नाय’ के अन्तर्गत हैं तथा गुह्यकाली, कामकलाकाली, महाकाली और महा-श्मशान-काली उत्तराम्नाय से सम्बन्धित है । काली की उपासना तीन आम्नायों से होती है । तंत्रों में कहा हैं “दक्षिणोपासकः का`लः” अर्थात् दक्षिणोपासकमहाकाल के समान हो जाता हैं । उत्तराम्नायोपासाक ज्ञान योग से ज्ञानी बन जाते हैं ।ऊर्ध्वाम्नायोपासक पूर्णक्रम उपलब्ध करने से निर्वाणमुक्ति को प्राप्त करते हैं । दक्षिणाम्नाय में कामकला काली को कामकलादक्षिणाकाली कहते हैं । उत्तराम्नाय के उपासक भाषाकाली में कामकला गुह्यकाली की उपासना करते हैं । विस्तृत वर्णन पुरुश्चर्यार्णव में दिया गया है ।
गुह्यकाली की उपासना नेपाल में विशेष प्रचलित हैं । इसके मुख्य उपासक ब्रह्मा, वशिष्ठ, राम, कुबेर, यम, भरत, रावण, बालि, वासव, बलि, इन्द्र आदि हुए हैं ।

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